राम मंदिर मसला : 3 महीने में करवाएं मूल दस्तावेजों के अनुवाद, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 5 दिसंबर से

ayodhya demolition case hearing begins in supreme court today
राम मंदिर मसला : 3 महीने में करवाएं मूल दस्तावेजों के अनुवाद, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 5 दिसंबर से
राम मंदिर मसला : 3 महीने में करवाएं मूल दस्तावेजों के अनुवाद, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 5 दिसंबर से

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की अगली सुनवाई 5 दिसंबर से होगी। जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच ने शुक्रवार को हुई सुनवाई के बाद यह तारीख निर्धारित की है। कोर्ट ने इन तीन महीनों में यूपी सरकार और इस मामले की पार्टियों को अपने दस्तावेजों को इंग्लिश में ट्रांसलेट करने के आदेश दिए हैं। अभी ये दस्तावेज अलग-अलग भाषाओं में मौजूद हैं। इन दस्तावेजों में गवाहों के बयान भी शामिल हैं।

बेंच में जस्टिस दीपक मिश्रा के अलावा जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर भी शामिल हैं। सुनवाई के दौरान सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बेंच से कहा कि मूल ऐतिहासिक दस्तावेज फारसी, उर्दू और अरबी में हैं और इनका अनुवाद का काम अभी पूरा नहीं हुआ है। वहीं यूपी सरकार और इस मामले में अन्य पार्टियों के पास भी कई दस्तावेज हिंदी, संस्कृत या अन्य भाषा में हैं। ऐसे में कोर्ट ने सभी दस्तावेजों के इंग्लिश में अनुवाद के लिए 10 से 12 हफ्तों का समय दिया है।

गौरतलब है कि 2010 में आए इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सभी पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती दी थी, तभी से ये मामला सुप्रीम कोर्ट में अटका हुआ है। हाल ही में 9 अगस्त को ही शिया वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में एक एफिडेविट दायर कर इस मामले में एक नया मोड़ ला दिया था। 

क्या कहा था शिया वक्फ बोर्ड ने? 

शिया वक्फ बोर्ड की तरफ से पेश किए गए एफिडेविट में विवादित जगह पर राम मंदिर बनाने की पेशकश की थी। वक्फ बोर्ड ने कहा था कि विवादित जगह पर राम मंदिर बने जबकि इससे थोड़ी दूरी पर मस्जिद बनाई जाए। बोर्ड का कहना था कि अगर मंदिर-मस्जिद को साथ बनाया गया तो यहां पर रोज विवाद देखने को मिलेंगे। वक्फ बोर्ड ने एफिडेविट में कहा था कि 1946 तक ये जमीन शिया वक्फ बोर्ड के पास थी लेकिन ब्रिटिशर्स ने गलत तरीके से इस जमीन का मालिकाना हक सुन्नी वक्फ बोर्ड को दे दिया था। बोर्ड ने कहा कि वो इस पूरे विवाद को शांति से निपटाना चाहता है। 

हाई कोर्ट ने 3 हिस्सों में बांटने का दिया था आदेश

इससे पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने 2.77 एकड़ की इस विवादित जमीन को 3 हिस्सों में बांटने का फैसला सुनाया था। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में जमीन को निर्मोही अखाड़ा, रामलला और सुन्नी वक्फ बोर्ड के बीच बराबर बांटने का आदेश दिया था। हाई कोर्ट के इस फैसले पर सभी पक्षकारों ने आपत्ति जताई और इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। इसके बाद 9 मई 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षकारों की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट के इस फैसले पर रोक लगा दी थी। 

बातचीत के जरिए सुलझाएं मसला: सुप्रीम कोर्ट

देश की सबसे बड़ी अदालत ने इसी साल मार्च में बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुझाव दिया था कि इस पूरे विवाद को कोर्ट के बाहर बातचीत के जरिए भी सुलझाया जा सकता है। अगर जरूरत पड़ी वो इसमें मध्यस्थता करेगा।

क्या है पूरा विवाद? 

अयोध्या विवाद इस देश का सबसे बड़ा विवाद है, जिस पर राजनीति भी होती रही है और सांप्रदायिक हिंसा भी भड़की है। हिंदू पक्ष ये दावा करता है कि अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि है और इस जगह पर पहले राम मंदिर हुआ करता था। जिसे बाबर के सेनापति मीर बांकी ने 1530 में तोड़कर यहां पर मस्जिद बना दी थी। तभी से हिंदू-मुस्लिम के बीच इस जगह को लेकर विवाद चलता रहा है। अयोध्या विवाद ने 1989 के बाद से तूल पकड़ा और 6 दिसंबर 1992 को हिंदू संगठनों ने अयोध्या में राम मंदिर की जगह बनी विवादित बाबरी मस्जिद का ढांचा गिरा दिया। जिसके बाद ये मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट में गया और अब सुप्रीम कोर्ट में है। 
 

Created On :   11 Aug 2017 3:24 AM GMT

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