छत्तीसगढ़: आपसी संघर्ष में 65 इंसानों और 14 हाथियों की सालाना मौत

Chhattisgarh: 65 humans and 14 elephants die annually in mutual conflict
छत्तीसगढ़: आपसी संघर्ष में 65 इंसानों और 14 हाथियों की सालाना मौत
छत्तीसगढ़: आपसी संघर्ष में 65 इंसानों और 14 हाथियों की सालाना मौत
हाईलाइट
  • छत्तीसगढ़ में आपसी संघर्ष में हर साल 65 इंसानों और 14 हाथियों की जानें जा रही हैं
  • करोड़ों रुपये का नुकसान हो रहा है
  • पांच साल में 325 लोगों और 70 हाथियों को जान गंवानी पड़ी है

डिजिटल डेस्क, रायपुर। छत्तीसगढ़ में जंगली हाथी और इंसानी संघर्ष की घटनाओं को रोक पाना आसान नहीं है। साल-दर-साल मौतों का आंकड़ा कम होने का नाम नहीं ले रहा है। राज्य में आपसी संघर्ष में हर साल 65 इंसानों और 14 हाथियों की जानें जा रही हैं, करोड़ों रुपये का नुकसान हो रहा है। हाल ही में जारी आंकड़ों के अनुसार, राज्य में बीते पांच सालों में आपसी संघर्ष में औसतन हर साल 65 इंसान और 14 हाथियों की जान गई है।

पांच साल के आंकड़े को जुटाया जाए तो पता चलता है कि 325 लोगों और 70 हाथियों को जान गंवानी पड़ी है। वहीं जनहानि, फसल-संपत्ति के नुकसान पर 75 करोड़ का भार सरकार पर आया है। इस संघर्ष और हाथियों के उत्पात से पर्यावरण को हुए नुकसान अलग हैं।

राज्य में हाथियों के दूसरे राज्यों से आने का सिलसिला वर्ष 1988 में शुरू हुआ था। धीरे-धीरे हाथियों की संख्या बढ़ती गई। वर्तमान में हाथियों का दायर बढ़ते-बढ़ते सरगुजा, बिलासपुर व रायपुर वन सर्किल तक पहुंच गया है। इस तरह हाथियों की सक्रियता सरगुजा जिले के सूरजपुर, बलरामपुर, सरगुजा व जशपुर, बिलासपुर सर्किल के कोरबा, रायगढ़ व बिलासपुर और रायपुर सर्किल के महासमुंद व बलौदाबाजार में बनी हुई है। अभी राज्य में 254 से ज्यादा हाथी विचरण कर रहे हैं। ये हाथी 19 झुडों में विचरण कर रहे हैं। इनमें से 121 हाथी बिलासपुर सर्किल, 110 हाथी सरगुजा व 23 हाथी रायपुर सर्किल में हैं।

सरकार के सूत्र बताते हैं कि राज्य में हाथियों को नियंत्रित करने के प्रयास वर्ष 2005 से शुरू हो गए थे। इसके लिए राज्य विधानसभा में अशासकीय संकल्प पारित कर केंद्र सरकार को भेजा गया था, जिसमें राज्य के रायगढ़, जशपुर व कोरबा में प्रोजेक्ट एलीफेंट के अंतर्गत हाथी अभयारण्य बनाने के लिए आर्थिक सहयोग देने का अनुरोध किया गया था।

राज्य विधानसभा में पारित प्रस्ताव के आधार पर केंद्र सरकार ने वर्ष 2007 में विशेषज्ञों का दल भेजा। इस दल ने प्रस्तावित हाथी रिजर्व का भ्रमण किया और अपनी तकनीकी रिपोर्ट दी। इसमें लेमरु हाथी रिजर्व के अतिरिक्त बादलखोल, मनोरा व पिंगला को मिलाकर हाथी रिजर्व बनाने की अनुशंसा की गई थी। ये तीनों स्थान एक ही लैंडस्कैप में स्थित हैं। इस अनुशंसा के बाद राज्य सरकार ने अधिसूचना जारी कर सरगुजा-जशपुर हाथी रिजर्व का गठन कर दिया, जिसमें बादलखोल, मनोरा व पिंगला क्षेत्र आते हैं। वहीं लेमरु हाथी रिजर्व का गठन नहीं किया गया।

वन्य प्राणी विशेषज्ञों का मानना है कि सरगुजा-जशपुर हाथी रिजर्व के साथ ही लेमरु हाथी रिजर्व बन गया होता तो हाथियों की उत्पाती गतिविधियों पर अंकुश लगाया जा सकता था। ऐसा इसलिए क्योंकि उनके विचरण का वन क्षेत्र बड़ा हो जाता और इंसानी दखल नहीं होता। साथ ही उन्हें साल भर का चारा-पानी भी उपलब्ध हो जाता।

 

Created On :   19 Sept 2019 10:00 AM IST

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