सरकार की सख्ती के बावजूद किसान क्यों जलाते हैं पराली?

Despite farmers strictness, why do farmers burn stubble?
सरकार की सख्ती के बावजूद किसान क्यों जलाते हैं पराली?
सरकार की सख्ती के बावजूद किसान क्यों जलाते हैं पराली?
हाईलाइट
  • सरकार की सख्ती के बावजूद किसान क्यों जलाते हैं पराली?

नई दिल्ली, 27 सितंबर (आईएएनएस)। धान की कटाई शुरू होने के साथ पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने से देश की राजधानी दिल्ली के फिर गैस चैंबर के रूप में तब्दील होने की आशंका बढ़ गई है। पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने पर रोक है और इसे सख्ती से लागू करने के लिए दोनों प्रदेशों की सरकार की ओर इस बार भी जरूरी कदम उठाए गए हैं। इसके बावजूद अगर किसान पराली जलाते हैं तो इसकी वजह जानना जरूरी है।

किसानों की मानें तो पराली जलाना उनकी मजबूरी है। हरियाणा के एक किसान ने बताया कि धान की कटाई के बाद गेहूं की बुवाई करने के बीच बहुत कम समय होता है जबकि धान की पराली का प्रबंधन इतने कम समय में करना मुश्किल होता है, लिहाजा किसान मजबूरी में पराली जलाते हैं।

हालांकि पराली के प्रबंधन के लिए इस्तेमाल होने वाली मशीनों पर किसानों को 80 फीसदी तक सब्सिडी दी जाती है और किसान इन मशीनों का इस्तेमाल भी कर रहे हैं, लेकिन पराली जलाना उनके लिए आसान होता है, इसलिए वे ऐसा कदम उठाते हैं।

कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि पराली जलाने और पराली का प्रबंधन करने को आर्थिक दृष्टिकोण से देखा जाता है। पराली जलाने में कुछ भी खर्च नहीं होता है और खेत भी आसानी से खाली हो जाता है, जबकि प्रबंधन में खर्च होता है और वह भी सभी किसानों के लिए मुश्किल होता है।

पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने पराली प्रबंधन के लिए केंद्र सरकार से 100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से किसानों को मुआवजा देने की मांग की है, ताकि किसान पराली का पं्रबंधन आसानी से कर सकें।

कृषि वैज्ञानिक दिलीप मोंगा कहते हैं कि हैं कि जिस प्रकार कपास की फसल के अवशेष का इस्तेमाल ईंट-भट्ठे में होने लगा है, उसी प्रकार अगर पराली का इस्तेमाल पावर प्लांट में ईंधन के तौर पर या अन्य कार्यो के लिए उपयोग को बढ़ावा नहीं दिया जाएगा, तब तक पराली जलाने की समस्या का स्थायी हल नहीं होगा। उन्होंने कहा कि किसानों को जब पराली की कीमत मिलने लगेगी तो वे जलाना बंद कर देंगे।

हरियाणा में भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष गुरनाम सिंह ने भी कहा कि पराली का इस्तेमाल पावर प्लांट में करने का सुझाव उन्होंने दिया है। सिंह ने भी कहा कि धान की कटाई और अगली फसल की बुवाई के बीच समय बहुत कम होता है और किसान जल्दी खेत खाली करना चाहते हैं, इसलिए पराली जलाने को मजबूर होते हैं, हालांकि किसान भी पर्यावरण के प्रति जागरूक हैं और वे पराली के प्रबंधन का विकल्प अपनाने लगे हैं। लेकिन उन्होंने कहा कि पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने से दिल्ली में प्रदूषण की समस्या पैदा होने की बात को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया जा रहा है।

पंजाब सरकार ने पराली जलाने पर रोक लगाने को लेकर उठाए गए कतिपय उपायों के तहत गांवों में 8,000 नोडल अधिकारियों की नियुक्ति की गई। जानकारी के अनुसार, पराली के प्रबंधन के लिए किसानों को 23,500 मशीनें भी दी गई हैं।

धान की पराली जलाने की घटनाएं पंजाब, हरियाण और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हर साल सामने आती हैं, जिसके चलते सर्दी का मौसम शुरू होते ही दिल्ली-एनसीआर गैस चैंबर में तब्दील हो जाता है। इस साल, आशंका जताई जा रही है कि पराली जलाने के चलते प्रदूषण बढ़ने से कोराना महामारी का प्रकोप गहरा सकता है।

पीएमजे/एसजीके

Created On :   27 Sep 2020 7:00 PM GMT

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story