पूर्व पुलिस अधिकारियों का मानना, दिल्ली हिंसा में मूक दर्शक बनी रही पटनायक टीम (आईएएनएस स्पेशल)

Former police officials believe Patnaik team remains silent spectator in Delhi violence (IANS Special)
पूर्व पुलिस अधिकारियों का मानना, दिल्ली हिंसा में मूक दर्शक बनी रही पटनायक टीम (आईएएनएस स्पेशल)
पूर्व पुलिस अधिकारियों का मानना, दिल्ली हिंसा में मूक दर्शक बनी रही पटनायक टीम (आईएएनएस स्पेशल)
हाईलाइट
  • पूर्व पुलिस अधिकारियों का मानना
  • दिल्ली हिंसा में मूक दर्शक बनी रही पटनायक टीम (आईएएनएस स्पेशल)

नई दिल्ली, 1 मार्च (आईएएनएस)। भारत के कुछ प्रमुख पूर्व पुलिस अधिकारियों ने राय व्यक्त करते हुए माना है कि इसी सप्ताह अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पहली आधिकारिक भारत यात्रा के दौरान राष्ट्रीय राजधानी में हुई खूनी सांप्रदायिक हिंसा के दौरान दिल्ली पुलिस मूक दर्शक बनी रही।

दिल्ली के पूर्व पुलिस आयुक्त अजय राज शर्मा ने कहा, मैं अगर पुलिस आयुक्त होता तो मैं किसी भी कीमत पर दंगाइयों को कानून हाथ में नहीं लेने देता, चाहे सरकार मेरा ट्रांसफर कर देती या चाहे बर्खास्त कर देती।

दंगा रोकने में दिल्ली पुलिस की पूर्ण असफलता पर सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) प्रकाश सिंह ने कहा, (दिल्ली पुलिस आयुक्त) अमूल्य पटनायक द्वारा वर्दी पर लगाया गया दाग क्षमायोग्य नहीं है। मुझे वास्तव में उनपर तरस आता है।

दंगा स्थलों पर पुलिस के कथित रूप से समय पर नहीं पहुंचने पर उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने कहा, दिल्ली पुलिस ने इंद्रधनुष की तरह काम किया और बारिश (दंगा) थमने के बाद नजर आई।

भारी आलोचना का सामना कर रहे अमूल्य पटनायक के नेतृत्व पर विक्रम सिंह ने चुटकी लेते हुए कहा, नेपोलियन जब अपनी सेना के साथ चलता था तो वह सबसे आगे चलता था। यहां पटनायक और उनके प्रमुख अधिकारी (घटनास्थल से) गायब थे।

उत्तर पूर्वी दिल्ली में 24 फरवरी को दंगे भड़कने के 48 घंटों के अंदर दंगाइयों पर सख्त कार्रवाई नहीं कर पाने के मुद्दे पर दिल्ली के पूर्व पुलिस आयुक्त नीरज कुमार ने आईएएनएस से कहा, हिंसा में इस्तेमाल किए गए हर प्रकार के हथियारों को देखकर ऐसा लगता है कि ये दंगे पूर्व नियोजित थे। शक्तिशाली सुरक्षा उपकरण उपलब्ध होने के बावजूद पुलिस दंगाइयों को रोकने के लिए नहीं आई। ये पुलिस की नालायकी है।

जब वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी और जम्मू एवं कश्मीर के पूर्व पुलिस प्रमुख बी.एस. बेदी (87) से पूछा गया कि राष्ट्रीय राजधानी में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) विरोधी आंदोलन एक दंगे में कैसे बदल गया तो उन्होंने कहा, पुलिस अगर जाफराबाद विवाद (विरोध प्रदर्शन के दौरान) को समय रहते सुलझा लेती तो स्थिति पटनायक के नियंत्रण से बाहर नहीं होती। लगता है कि पुलिस शायद हिंसा के स्तर का आंकलन नहीं कर सकी और उसका खुफिया विभाग असफल प्रतीत होता है।

राजनीतिक दवाब और पुलिस कार्यशैली में दखल पर बेदी ने कहा कि यह सिर्फ एक भ्रम है।

उन्होंने कहा, कानून व्यवस्था की कैसी भी स्थिति में आयुक्त ही सर्वोच्च होता है ना कि मंत्री। राजनेता कभी ऐसी विकट परिस्थितियों में दखल नहीं देते।

आईएएनएस ने दिल्ली के पूर्व पुलिस आयुक्त टी.आर. कक्कड़ से सवाल किया, अगर आप आयुक्त होते तो ऐसी स्थिति में आप क्या कार्रवाई करते?

उन्होंने कहा, मैं हिंसा भड़कने के शुरुआती घंटों में सख्त कदम उठाता। न्यूनतम बल प्रयोग और जवानों की अल्प संख्या में तैनाती के कारण हिंसा बढ़ गई। पुलिस की छवि दुनिया की नजरों में आ गई है, क्योंकि राष्ट्रीय राजधानी में सभी बुरे काम तभी हुए जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप आधिकारिक भारत दौरे पर आए थे। कुछ स्थानों पर बरामद हथियार और पेट्रोल बमों से पता चलता है कि हिंसा पूर्व नियोजित थी। आयुक्त तथा उप राज्यपाल ने प्रतिक्रिया देर से की।

यह पूछने पर कि क्या राष्ट्रीय राजधानी में हिंसा फैलने के लिए शाहीन बाग में कई सप्ताहों से चल रहे विरोध प्रदर्शन की भी प्रमुख भूमिका है, अजय राज शर्मा ने कहा, अगर मैं वर्तमान आयुक्त (अमूल्य पटनायक) की जगह होता तो मैं प्रदर्शनकारियों को नजदीकी पार्क में बैठा देता। पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों को इतने लंबे समय तक एक व्यस्त सड़क को बंद करने की छूट देना ही गलत निर्णय था।

प्रकाश सिंह और विक्रम सिंह इस पर भी सहमत हुए कि पुलिस ने शाहीन बाग में सड़क बंद होने को गंभीरता से नहीं लिया, जो बाद में प्रशासन के लिए नासूर बन गया।

Created On :   1 March 2020 6:30 AM GMT

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