प्रेस की स्वतंत्रता परम नहीं है : सुप्रीम कोर्ट

Freedom of the press is not the ultimate: Supreme Court
प्रेस की स्वतंत्रता परम नहीं है : सुप्रीम कोर्ट
प्रेस की स्वतंत्रता परम नहीं है : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली, 19 मई (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा है कि बिना स्वतंत्र मीडिया (फ्री प्रेस) के नागरिकों की स्वतंत्रता कायम नहीं रह सकती है और पत्रकारों की स्वतंत्रता अभिव्यक्ति की आजादी का मूल है, लेकिन यह परम नहीं है।

न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम. आर. शाह ने रिपब्लिक टीवी के एडिटर-इन-चीफ अर्नब गोस्वामी से कहा कि वह पालघर की मॉब लींचिंग (हिंसक भीड़ द्वारा पिटाई) की घटना पर एक समाचार शो से संबंधित एफआईआर को रद्द कराने के लिए उचित अदालत का रुख करें।

शीर्ष अदालत ने जांच को महाराष्ट्र पुलिस से सीबीआई के पास स्थानांतरित करने से भी इनकार कर दिया। लेकिन अदालत ने गोस्वामी को दी गई प्रोटेक्शन अगले तीन हफ्तों तक प्रदान करके कुछ राहत जरूर दी।

पीठ ने 11 मई को गोस्वामी की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने निर्णय सुनाते हुए कहा कि भारत की प्रेस की स्वतंत्रता तब तक रहती है जब तक कि पत्रकार ²ढ़ता से सच बोल सकें, लेकिन यह स्वतंत्रता परम यानी निरंकुश नहीं है।

पीठ ने कहा कि अगर स्वतंत्र न बोले तो नागरिकों की स्वतंत्रता कायम नहीं रह सकती। अदालत ने कहा, पत्रकारिता की स्वतंत्रता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल में है।

गोस्वामी ने पालघर लिंचिंग और बांद्रा प्रवासी भीड़ से संबंधित अपने शो के सिलसिले में दायर एफआईआर के हस्तांतरण की मांग की थी। गोस्वामी ने शीर्ष अदालत से आग्रह किया था कि उनके खिलाफ दर्ज मामलों को रद्द किया जाए, क्योंकि यह एक पत्रकार के रूप में उन्हें चुप कराने की कोशिश है।

शीर्ष अदालत ने दोहराया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करना अदालत का कर्तव्य है और गोस्वामी के खिलाफ कई शिकायतों का प्रभाव पड़ेगा। गोस्वामी के खिलाफ विभिन्न राज्यों में पालघर हत्या मामले पर उनके शो को लेकर कई एफआईआर दर्ज की गईं हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अर्नब गोस्वामी के खिलाफ वर्तमान यानी नागपुर में दर्ज एफआईआर, जिसे मुंबई ट्रांसफर किया गया है, को छोड़कर बाकी केस को रद्द कर दिया है।

Created On :   19 May 2020 5:30 PM GMT

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