मप्र में शिव राज के साथ महाराज!

Maharaj with Shiva Raj in MP!
मप्र में शिव राज के साथ महाराज!
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हाईलाइट
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भोपाल, 2 जुलाई (आईएएनएस)। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान सरकार के मंत्रिमंडल के दूसरे विस्तार से भाजपा में नई सियासत का दौर शुरू हो गया है। शिवराज को जहां महाराज यानी राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया का साथ मिला है तो वहीं, संगठन भी उनके साथ खड़ा नजर आ रहा है।

भाजपा ने विधानसभा चुनाव हमारे नेता तो शिवराज, माफ करो महाराज का नारा बुलंद कर लड़ा था, मगर अब लगभग डेढ़ साल बाद हालात ऐसे बन गए कि शिवराज और महाराज साथ-साथ हो लिए। सिंधिया का साथ मिलने से ही भाजपा को आफ्टर द ब्रेक सत्ता हासिल हुई है। यही कारण है कि भाजपा सिंधिया और उनके समर्थकों को महत्व दे रही है।

मुख्यमंत्री चौहान ने मंत्रिमंडल गठन के बाद सभी सदस्यों के साथ बैठक की और कहा, आप अपना एक क्षण भी बर्बाद न करें, कोरोनाकाल चल रहा है, इसलिए तय करें कि कोई स्वागत नहीं कराएंगे और न ही भीड़ जमा करेंगे। न तो मैं चैन से बैठूंगा और न ही आप लोगों को चैन से बैठने दूंगा।

शिवराज ने राज्य में विकास के काम पर जोर देने की बात कहते हुए कहा, विकास के लिए सभी को मिलकर काम करना है, अब तो महाराज का संग है।

एक तरफ जहां शिवराज के मंत्रिमंडल में महाराज समर्थकों को पर्याप्त स्थान दिया गया है, वहीं सिंधिया भी शिवराज की प्रशंसा में पीछे नहीं हैं। उनका कहना है कि कमल नाथ ने कोरोना को लेकर एक भी बैठक नहीं ली, वहीं शिवराज सिंह चौहान को साधुवाद देना चाहता हूं कि उन्होंने कोरोना को नियंत्रित करने के लिए कदम उठाए और किसानों के हित में फैसले लिए। प्रदेश के लिए ऐसा ही जनसेवक चाहिए।

राज्य की भाजपा सियासत में शिवराज, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और सिंधिया का नया गठजोड़ बन रहा है। इसमें प्रदेश के संगठन का उन्हें पूरा साथ मिलता नजर आ रहा है, क्योंकि मंत्रिमंडल के दूसरे विस्तार में संगठन के दखल के चलते सिंधिया समर्थकों को बड़ी संख्या में स्थान मिला है और आगामी समय में होने वाले विधानसभा उपचुनाव के मद्देनजर ग्वालियर-चंबल क्षेत्र के पूर्व विधायकों व भाजपा के वर्तमान विधायकों को मंत्री पद दिया गया है।

राजनीतिक विश्लेषक संतोष गौतम का कहना है कि भाजपा ने सिंधिया के समर्थन से सत्ता हासिल की है, लिहाजा भाजपा ने पहले राज्यसभा में भेजकर और फिर मंत्रिमंडल विस्तार में सिंधिया को वह अहमियत दी है जो उसे बदले में देनी चाहिए थी। अब आने वाले समय में उपचुनाव जीतना चुनौती है, इसलिए उन क्षेत्रों के नेताओं को विधायक न होते हुए भी मंत्री बनाना पड़ा है। यह राजनीतिक सूझबूझ का परिचायक है ।

Created On :   2 July 2020 7:31 PM IST

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