ऑन-लाइन दर्ज चोरी के मामलों ने बनाया दिल्ली को क्राइम-कैपिटल! (आईएएनएस इनसाइड स्टोरी)

On-line theft cases made Delhi a crime capital! (IANS Inside Story)
ऑन-लाइन दर्ज चोरी के मामलों ने बनाया दिल्ली को क्राइम-कैपिटल! (आईएएनएस इनसाइड स्टोरी)
ऑन-लाइन दर्ज चोरी के मामलों ने बनाया दिल्ली को क्राइम-कैपिटल! (आईएएनएस इनसाइड स्टोरी)

नई दिल्ली, 24 अक्टूबर (आईएएनएस)। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी क्राइम इन इंडिया-2017 रिपोर्ट पर बारीक नजर डालने पर पता चला है कि चोरी और वाहन चोरी के मद में ऑन-लाइन दर्ज हुई एफआईआर ने ही राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को क्राइम कैपिटल बना डाला है। वर्ष 2017 में दिल्ली में दर्ज कुल आपराधिक मामलों में 75 फीसदी हिस्सा सीधे-सीधे चोरी और वाहन चोरी की ऑनलाइन दर्ज एफआईआर के खाते में है। इसके बाद 25 या 26 फीसदी आंकड़े दिल्ली में घटित बाकी आपराधिक घटनाओं से संबंधित हैं।

यही वह सनसनीखेज तथ्य है, जो क्राइम इन इंडिया-2107 का जिन्न बाहर आने के बाद से दिल्ली पुलिस की आत्मा को कहीं न कहीं प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से कचोट रहा है। मौजूदा हालातों में ऐसा होना लाजिमी भी है। क्योंकि चोरी और वाहन चोरी के मद में दर्ज ऑन-लाइन एफआईआर ने ही तो दिल्ली को क्राइम-कैपिटल साबित करवा डाला है। भले ही दिल्ली पुलिस इस पर खुल कर कुछ नहीं बोल रही है, मगर दिल्ली पुलिस के अधिकांश आला-अफसरों के दिल में इस विषय पर हूक बार-बार उठ रही है।

यहां सवाल एनसीआरबी द्वारा जारी आंकड़ों के सही-गलत का कतई नहीं है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो ने आंकड़े तो क्राइम इन इंडिया-2017 में हर बार की तरह वही छापे हैं, जो उसे राज्यों से भेजे गए या फिर हासिल हुए हैं। मुद्दा यह है कि एनसीआरबी द्वारा राज्यों से हासिल आंकड़ों की आखिरकार गणना किस फार्मूले की मदद से की गई है?

देश के महानगरों में 2017 में दर्ज आपराधिक आंकड़ों के मुताबिक, सन 2017 में दिल्ली में आईपीसी के तहत कुल 2 लाख 33 हजार 580 आपराधिक मामले या एफआईआर दर्ज हुईं या मामले दर्ज किए गए। इस आंकड़े में चोरी और वाहन चोरी के मामलों की संख्या करीब एक लाख 65 हजार 765 थी। कुल दर्ज एफआईआर में से अगर वाहन चोरी और चोरी के मामलों को घटा दें तो दर्ज बाकी मामलों की संख्या घटकर महज 67 हजार 815 ही रह जाती है। यानी दिल्ली की देश में क्राइम रैंकिंग-रेटिंग बाकी बचे आपराधिक (67 हजार 815 मामले) मामलों पर ही की जानी चाहिए थी। जबकि रैंकिंग-रेटिंग तय हुई है 2 लाख 33 हजार 580 आपराधिक मामलों के आधार पर। बस यही वह ब्लैक-स्पॉट साबित हुआ, जहां दिल्ली के माथे पर क्राइम-कैपिटल लिख गया।

एक बार मान भी लिया जाए कि क्राइम इन इंडिया-2107 में दर्ज आंकड़ों के गुणा-गणित लगाए जाने का फार्मूला सही भी है। फिर सवाल यह पैदा होता है कि क्या दिल्ली पुलिस को उसका अपना ही वह फार्मूला खुद पर भारी साबित हुआ, जो उसने किसी जमाने में जनहित में चोरी और वाहन चोरी की ऑनलाइन फ्री एफआईआर रजिस्ट्रेन के नाम से लागू करवाया था। क्योंकि इसी मद में क्राइम इन इंडिया-2017 में दिल्ली के सर्वाधिक आपराधिक मामले दर्ज पाए गए हैं।

हांलांकि, दिल्ली पुलिस के ही एक उच्चाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, यदि देश के सभी 19 महानगरों की भी चोरी और वाहन चोरी की घटनाओं के आंकड़ों को घटाकर तुलना की गई होती तो दिल्ली सीधे-सीधे पहले स्थान से 9वें स्थान पर आ जाती।

आंकड़ों के कथित रूप से बिगड़े गुणा-गणित पर दिल्ली पुलिस अपराध शाखा के उपायुक्त (डीसीपी) आईपीएस राजन भगत ने आईएनएस से स्वीकार किया, हां, दिल्ली को कथित रूप से पहले पायदान की कैटेगरी में रखवाने में हमारे यहां लागू चोरी और वाहन चोरी की ऑनलाइन एफआईआर भी एक प्रमुख वजह हो सकती है।

उन्होंने आगे कहा, अगर 2017 में दर्ज कुल आपराधिक मामलों पर नजर डालें तो वाकई उनमें से करीब 75 फीसदी मामले सिर्फ ऑनलाइन चोरी-वाहन चोरी की मद में ही देखने को मिलेंगे।

इस बात को दिल्ली-हिमाचल प्रदेश कैडर के पूर्व आईपीएस (1990 के दशक में दिल्ली के पुलिस आयुक्त रहे और बाद में इंटेलीजेंस ब्यूरो के निदेशक पद से रिटायर हो चुके) अरुण भगत ने भी स्वीकार किया। उन्होंने आईएएनएस से बातचीत में कहा, हां, चोरी और वाहन चोरी के फ्री ऑनलाइन एफआईआर रजिस्ट्रेशन के आंकड़े दिल्ली को क्राइम-कैपिटल कैटेगरी में खड़ा करने के लिए काफी हैं। ऐसा मगर होना नहीं चाहिए। इसे रेटिंग-रैंकिंग को अंतिम रूप देने से पहले एनसीआरबी को खुद ही देखना चाहिए था।

पूर्व आईपीएस ने आगे कहा, क्राइम इन इंडिया-2017 हालांकि मैंने देखी पढ़ी नहीं है, मगर आपसे (आईएएनएस से) जो सुना उस नजिरए से पहले दिल्ली के ऑनलाइन चोरी और वाहन चोरी के मामलों को घटाकर बाकी बचे संगीन आपराधिक मामलों के आधार पर ही आंकड़ों की रेटिंग और रैंकिंग अगर होती तो इसमें कुछ गलत भी नहीं था। यह तो मेरा निजी विचार है। सब करना-धरना तो एनसीआरबी को है।

उन्होंने कहा, अब चूंकि एनसीआरबी ने आंकड़े जारी कर दिए हैं तो, इस पर मैं ज्यादा कुछ कहना मुनासिब नहीं समझता। वैसे इस मुद्दे पर आपत्ति या सुझाव जो भी है, उसे दिल्ली पुलिस या फिर जो भी प्रभावित राज्य पुलिस हो उसे, एनसीआरबी को एक बार जरूर बताना चाहिए।

Created On :   24 Oct 2019 3:00 PM GMT

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