Ayodhya Dispute: सुप्रीम कोर्ट ने रद्द की 32 याचिकाएं, अगली सुनवाई 23 मार्च को
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट अब अयोध्या मामले में केवल उन्हीं याचिकाओं पर सुनवाई करेगा जो तीसरे पक्ष की नहीं है। 2.7 एकड़ के इस भूमि विवाद मामले में अलग-अलग वकीलों और संगठनों की तरफ से दाखिल की गई 32 हस्तक्षेप याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को रद्द कर दिया। इसमे बीजेपी नेता सुब्रमण्यन स्वामी की वह याचिका भी शामिल है, जिसमें उन्होंने बाबरी मस्जिद-राम मंदिर संपत्ति विवाद में दखल की कोशिश की थी। सुप्रीम कोर्ट मामले की अगली सुनवाई 23 मार्च को करेगा।
अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद प्रोपर्टी विवाद में बुधवार को एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने स्वामी की याचिका समेत कुल 32 याचिकाओं को खारिज कर दिया जिनमें अपर्णा सेन, श्याम बेनेगल और तीस्ता सीतलवाड़ की याचिकाएं भी शामिल हैं। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा, वह किसी भी पार्टी को समझौते के लिए नहीं कह सकती है। किसी पर भी समझौते के लिए दबाव नहीं डाला जा सकता। वहीं इससे पहले फरवरी में मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि अदालत की नजर में ये एक प्रोपर्टी से जुड़ा मामला है। आस्था जैसी बात अदालत के लिए कोई मायने नहीं रखती है।
जानिए इस केस से जुड़ी कुछ खास बातें
- सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल के अलावा अन्य याचिकाकर्ताओं ने मांग की थी कि कम से कम 7 जजों की बेंच इस पूरे मामले पर सुनवाई करे।
- उत्तर प्रदेश के सेन्ट्रल शिया वक्फ बोर्ड ने इस विवाद को लेकर समाधान के तौर पर अपनी राय दी थी कि अयोध्या में विवादित स्थल से कुछ दूरी पर मुस्लिम बाहुल्य इलाके में मस्जिद का निर्माण किया जा सकता है।
- 8 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार के सामने हुई मीटिंग में सभी पक्षों ने कहा कि कागजी कार्रवाई और अनुवाद का काम लगभग पूरा हो गया है। बता दें कि पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कागजी कार्रवाई और अनुवाद का काम पूरा करने के आदेश दिए थे।
- कोर्ट के आदेश पर अनुवाद का यह काम उत्तर प्रदेश सरकार ने किया है। 9 हजार से ज्यादा पन्नों के हिन्दी, पाली, उर्दू, अरबी, पारसी, संस्कृत आदि सात भाषाओं के अदालती दस्तावेजों का अंग्रेजी में अनुवाद पूरा हो चुका है।
- रामायण, रामचरितमानस व गीता आदि के जो दस्तावेज हाईकोर्ट में सुनवाई में थे उनका भी अंग्रेज़ी में अनुवाद का काम हो चुका है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिया था ये फैसला
राम मंदिर के लिए होने वाले आंदोलन के दौरान 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था। इस मामले में आपराधिक केस के साथ-साथ दीवानी कचहरी में भी मुकदमा चला। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को अयोध्या टाइटल विवाद में फैसला दिया था। इस फैसले में कहा गया था कि विवादित जमीन को 3 बराबर हिस्सों में बांटा जाए। जिस जगह रामलला की मूर्ति है उसे रामलला विराजमान को दिया जाए। सीता रसोई और राम चबूतरा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए, जबकि बाकी का एक तिहाई जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को दी जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा यथास्थिति बनाए रखें
सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2011 को इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए मामले की सुनवाई करने की बात कही थी। उच्च न्यायालय ने भी अपने आदेश में कहा है। काफी समय से भगवान राम टाटपट्टी में हैं, इसलिए अब वहां मंदिर बनना आवश्यक हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट में इसके बाद से यह मामला लंबित है। महंत कौशल किशोर शरण दास ने कहा कि रामजन्मभूमि विवाद की निपटारा शीघ्र हो जाए जिससे देश में अमन-चैन बना रहे। उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि इस विवाद का निपटारा बातचीत से न होकर सुप्रीम कोर्ट से ही होगा। गौरतलब है कि यह विवाद लगभग 68 वर्षों से कोर्ट में है।
Created On :   14 March 2018 6:06 PM IST