यहां लगता है गधों का मेला, 50 हजार में बिका हीरा
डिजिटल डेस्क सतना। हिन्दुओं के तीर्थ चित्रकूट में दीपावली पर लगने वाले मेले के साथ ही साल हर साल गधा मेला भी आयोजित किया जाता है। इस मेले में देश भर के व्यापारी पहुंचते हैं। इस वर्ष भी यह मेला चल रहा है। बताया जाता है कि यह मेला 4 शताब्दियों से चल रहा है और इस मेले की शुरूआत मुग़ल शासक औरंगजेब के शासन काल में सन 1850 के बाद हुई।
चित्रकूट का दीपावली मेला आज भी हिन्दू समाज की आस्था का सबसे बड़ा प्रमाण है, लोग पूरे देश से यहां पहुंचकर भगवान राम के प्रति अपनी आस्था नन्हे-नन्हे दीपकों के रूप में कामदगिरि पर्वत और मंदाकिनी गंगा की धारा में प्रवाहित करते हैं। औरंगजेब हिन्दू विरोधी शासक के रूप में जाना जाता है। बताया जाता है कि जब उसे यह पता चला कि चित्रकूट धाम में कई लाख लोग दीपावली के समय दीप दान करने पहुंचते हैं और यह पर्व भगवान राम के लंका विजय उपरांत अयोध्या वापसी की खुशी में मनाया जाता है तो उसने चित्रकूट में ही मंदाकिनी तट पर गधा मेला शुरू करने का आदेश दिया। गधे के बारे में यह कहा जाता है कि वह सर्वाधिक बेअकल प्राणियों में से एक है। औरंगजेब ने चाहें जिस मकसद से चित्रकूट में गधा मेले की शुरूआत की हो, लेकिन कालांतर में वह लोगों की जरूरत बन गया। यह हिन्दू समाज के भीतर मौजूद विवेक और समय के साथ एकाकार होने का सबसे बड़ा प्रमाण है।
खरीददारों ने हाथों हाथ खरीद लिया
इस वर्ष चित्रकूट में लगे 3 दिवसीय गधा मेले में बिकने आए हीरा नाम के गधे का मूल्य 50 हजार रूपए लगाया गया और खरीददारों ने हाथों हाथ उसे खरीद भी लिया। वैसे इस मंहगाई के दौर में यहां आया एक भी गधा 5 हजार से कम में नहीं बिका। गधों का मूल्य उनकी कद, काठी और उम्र तथा बालों को देखकर तय किया जाता है। इस मेले में कम से कम तीन बार ऐसे मौके आए जब 50 हजार से भी अधिक मूल्य पर गधे बिके। फिलहाल इस मेले में कई सौ गधे अभी भी मौजूद हैं जबकि मेला एक दिन बाद तक चलेगा।
वैज्ञानिक दौर में भी उपयोगिता बरकरार
भारतीय समाज की संरचना इतनी समरस है कि यहां आवश्यकतानुसार सभी जरूरी काम करने वाले लोग एक गांव में ही मिल जाया करते थे। धीरे-धीरे वैज्ञानिक खोजों ने बहुत सारे पारम्परिक उद्योगों को तबाह किया है, किन्तु फिर भी गधा आज भी कई जगहों पर वह काम कर जाता है जहां सारे अविष्कार और युक्तियां फेल हो जाती हैं। न केवल सकरी गलियों वाले पुराने शहरों में वरन कई पहाड़ी और ठंडे क्षेत्रों में सेना के लिए रसद व गोला-बारूद तक दुर्गम स्थानों में पहुंचाने का काम गधों के माध्यम से ही किया जाता है। कुछ पारम्परिक काम करने वाले लोग भी गधों का उपयोग पहले की तरह अभी भी करते हं। मेले में बिकने वाले गधे मुख्य रूप से उन्हीं के काम आते हैं।
Created On :   21 Oct 2017 6:16 PM IST