स्कूलों की पेयरिंग: उत्तर प्रदेश में योगी सरकार की 5,000 स्कूल मर्ज की योजना पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने लगाई रोक

- मामले पर अगली सुनवाई 21 अगस्त 2025 को होगी
- स्कूल मर्ज (एकीकरण) पर बच्चों और अभिभावकों को आपत्ति
- पेयरिंग वाला कदम आरटीई कानून का विरोधाभासी
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। राजस्थान के झालावाड़ में एक स्कूल की छत गिरने से कई मासूम बच्चों की मौत हो गई, घर से थैला टांगकर स्कूल पढ़ने आए इन बच्चों को क्या पता हम यहां मरने आए है। जर्जर स्कूलों में मौत की पाठशाला देश के कई इलाकों में चल रही है। हादसे के साथ कभी कभी सरकारों की साजिश वाले आदेश भी बच्चों के भविष्य को निगल रहे है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम बच्चों को देश का भविष्य कहते थे, और इस भविष्य को सिर्फ संभालती है शिक्षा। लेकिन सत्ता की कुर्सी पर बैठे मठाधीश मर्जर के नाम कहीं स्कूलों को बंद कर रहे है , तो कहीं शिक्षा की नीति के जरिए सरकारी स्कूलों को तोड़ रहे है। बात अगर गुजरात की जाए तो एक प्रसिद्ध न्यूज अंग्रेजी पेपर के मुताबिक गुजरात में 2020 से करीब 90 सरकारी प्राथमिक विद्यालयों को बंद कर दिया गया और 500 का विलय कर दिया गया। शिक्षा वभाग के अधिकारी और सरकार ने स्थानीय लोगों से बिना संवाद किए हुए, जमीनी हकीकत जाने बगैर विलय के फैसले को सही नहीं ठहरा सकते। विलय करने पर अच्छी शिक्षा मिलेगी सरकार के तर्क को जनता क्यों सहीं मानें ये सबसे लोगों को सोचना चाहिए।
सरकार की विलय योजना पर बच्चों को आपत्ति है, ये बच्चों के अधिकारों का हनन भी है। सरकार का स्कूल पेयरिंग वाला सिस्टम आरटीई अधिनियम 2009 के तहत मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन करता है। नामांकन के आधार पर स्कूलों के विलय का निर्णय वाला कदम उल्टा पड़ रहा है। क्योंकि विलय के दौरान बीच रास्ते में बच्चों का हाइवे मिलेगा, कई जगह रेलवे लाइन पार करने पडेगी, घर से दूरी बढ़ेगी, अभिभावकों के सामने बच्चों को स्कूल भेजने की परेशानी भी बढ़ेगी। इसकी कौन गारंटी ले सकता है कि विलय होने के बाद स्कूल में टीचर उपलब्ध होंगे, बेहतर सुविधा मिलेगी, खराब रास्ते नहीं मिलेगे, बच्चे स्कूल जाने के लिए तैयार हो जाएंगे, निजी स्कूलों में बच्चे नहीं जाएंगे। आगामी समय में दूरी की परेशानी बढ़ने से ये आशंका हमेशा बनी रहेगी कि आने वाले दिनों में स्कूलों से बच्चों की ड्रॉपआउट दर बढ़ेगी।
लोकल शिक्षा की बात करने वाली सरकारे बच्चों की शिक्षा को बाधित कर उनके विकास और उम्मीद की जड़ों को काट रही है। विलय के नाम पर नन्हें पैरों को कई किलोमीटर और कोसों की दूरी पर पैदल जाने के लिए मजबूर करने की प्लानिंग साजिश ही नजर आती है , क्योंकि पहले शिक्षा के अधिकार कानून के तहत बचपन में ही छात्रों को निजी स्कूलों में अच्छी पढ़ाई के बहाने अभिभावकों को ठगा गया, जब सरकारी स्कूलों में चिल्लाने वाली किलकारी प्राइवेट स्कूल में जाने लगी तो सरकारी स्कूल में स्वाभाविक तौर पर बच्चों की संख्या कम हो गई। और अब दो दशक बाद सरकार छात्रों की कम संख्या के पैमाने को मानकर स्कूल विलय की योजना से स्कूलों पर ताला जड रही है। विकास से कोसों दूर जंगल में बसे छोटे छोटे गांव स्कूल के जरिए आधुनिकता की दुनिया में जीने की उम्मीद का एक सपना जो देख रही थी। विलय ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। सियासी गद्दी पर विराजमान अपने आपको पढ़ा लिखा मानने वाले ये नेताओं को गरीब बच्चों की पढ़ाई रास नहीं आती। क्योंकि एक सर्वे कराने की जरूरत है कि जितने भी छात्र संख्या बल कम वाले विद्यालय है , जिन्हें विलय किया जा रहा है कि उसकी सामुदायिक व आर्थिक पृष्ठभूमि क्या है?
कम छात्र होने पर शिक्षा के संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल कर सकते है, जनसंख्या कम करने के लिए भी हम यहीं तर्क देते है कि कम जनसंख्या या छोटा परिवार सुखी परिवार , क्योंकि कम सदस्यों में संसाधनों का उचित उपयोग कर सकते है। हालांकि आपको बता दें भारत में स्कूलों के विलय की यह प्रक्रिया कोई नई नहीं है। आजादी से पहले भी ब्रिटिश सरकार ने शिक्षा से वंचित करने के लिए स्कूलों को विलय किया था। भले ही उत्तरप्रदेश में 5000 स्कूलों के विलय पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रोक लगा दी हो, लेकिन बीजेपी की योगी सरकार का ये कदम हजारों गरीब, वंचित, पिछड़े , विकलांग बच्चों को शिक्षा से दूर कर, उनके भविष्य को बर्बाद कर सकता है। सरकार को विलय कराने की बजाय स्कूलों में छात्रों की संख्या बढ़ाने या अन्य विकल्प को अपनाना चाहिए।
Created On :   25 July 2025 6:01 PM IST