'हिंदुत्व' या 'सेकुलरिज्म', किसे चुने कांग्रेस?

Congress needs  to improve  their old image to fight with BJP
'हिंदुत्व' या 'सेकुलरिज्म', किसे चुने कांग्रेस?
'हिंदुत्व' या 'सेकुलरिज्म', किसे चुने कांग्रेस?

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। गुजरात के विधानसभा चुनावों में बीजेपी भले ही एक बार फिर अपनी सरकार बनाने में कामयाब रही हो, लेकिन ये बात तो वो भी मान गई होगी कि इस बार टक्कर कांटे की थी। सोमवार को जब गुजरात के नतीजे आने शुरू हुए तो बीजेपी की नैया डगमगाती दिखी। सुबह के 10 बजे तक बहुमत कभी बीजेपी के पास रहा तो थोड़ी ही देर में कांग्रेस के पास चला गया। जीत कभी बीजेपी के हाथ से फिसली तो कभी कांग्रेस के हाथ से गिरी। सुबह से शुरू हुआ ये खेल दोपहर तक खत्म हुआ और आखिरकार बीजेपी 6वीं बार अपनी सरकार बनाने में कामयाब रही।

बीजेपी की धर्म की राजनीति

इस बार के चुनावों में बीजेपी का वोट शेयर तो बढ़ा, लेकिन 16 सीटों का नुकसान हुआ। जबकि कांग्रेस को सीट और वोट शेयर दोनों में ही फायदा हुआ। इस जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि गुजरात में विकास की जीत हुई, लेकिन कांग्रेस हमेशा से बीजेपी पर धर्म की राजनीति का आरोप लगाती रही है। ऐसा माना जा रहा है कि बीजेपी पार्टी हिंदुत्व के नाम पर ही जीतती आ रही है। 2014 लोकसभा में और 2017 में यूपी विधानसभा के चुनाव में बीजेपी द्वारा जादुई आकड़ा प्राप्त करने के बाद तो ये आरोप और भी तेज हो गए। बता दें कि बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में अपने घोषणा पत्र में राममंदिर मुद्दे को भी रखा था। 

पिछले कई चुनावों में मुह की खाने वाली कांग्रेस ने गुजरात में इस बार "सॉफ्ट हिंदुत्व" का कार्ड खेला। राहुल ने चुनाव प्रचार की शुरूआत मंदिर जाने से की, प्रचार के दौरान भी उन्होंने कई लगभग 27 मंदिरों के दर्शन किए।

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"हिंदुत्व" की राजनीति का गुजरात में कांग्रेस पार्टी को फायदा तो हुआ है, लेकिन उतना नहीं , जितना बीजेपी को हुआ है। तो क्या मान लिया जाए कि गुजरात में कांग्रेस का "हिंदुत्व" कार्ड जनता को पंसद नही आया या फिर जनता ने उन पर अभी मोदी जितना भरोसा नहीं जताया। राममंदिर, अयोध्या विवाद पर बीजेपी ने अपनी स्पष्ट राय रखी है। लोकसभा 2014 में 2017 तक का सफर इसी छवि के साथ पूरा किया है। इस हिसाब से देखा जाए तो "हिंदुत्व" पर बीजेपी का ही कॉपीराइट है

तो फिर ऐसे में, कांग्रेस के पास क्या रास्ता है? आइए जानते हैं...


कैसे शुरू हुआ "हिंदुत्व" का खेल? 

लगातार कई चुनावों में हार के बाद कांग्रेस ने गुजरात में विधानसभा चुनावों के लिए जब प्रचार अभियान शुरू किया तो "हिंदुत्व" की राजनीति शुरू हुई। राहुल गांधी ने गुजरात में अपने चुनाव प्रचार की शुरुआत द्वारकाधीश मंदिर के दर्शन कर की। इसके बाद राहुल एक के बाद एक मंदिर जाते रहे और बीजेपी सिर्फ देखती ही रह गई। बस फिर क्या था, बीजेपी को राहुल का बार-बार मंदिर जाना पसंद नहीं आया और उसने राहुल पर हमले करना शुरू किए। यहां तक कि पीएम मोदी ने भी राहुल के मंदिर जाने पर सवाल उठाए। इसके बाद भी जब राहुल ने मंदिर जाना नहीं छोड़ा तो पीएम मोदी ने एक रैली में कह दिया कि "हमने अच्छे-अच्छों को मंदिर जाना सीखा दिया।" यहां से असली "हिंदुत्व की राजनीति" शुरू हुई। इसके बाद से मंदिर आने-जाने का सिलसिला शुरू हुआ। हालांकि गुजरात में राहुल ने बीजेपी से ज्यादा मंदिरों के दर्शन किए, लेकिन उसका फायदा उठाकर वो सरकार तो नहीं बना पाए लेकिन वोट के मामले में उन्हें जरूर फायदा मिला। 

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गुजरात में कैसे हारा कांग्रेस का "हिंदुत्व"?

शुरुआत में तो राहुल गांधी का "हिंदुत्व" बहुत आगे चल रहा था और बाद में तो उसने बीजेपी के "हिंदुत्व" को कड़ी टक्कर भी दी। इस कड़े मुकाबले में आखिरी तक आते-आते कांग्रेस का हिंदुत्व पिछड़ गया और हार गया। इसका कारण भी कांग्रेस ही रही। दरअसल, बार-बार मंदिर जाने का नुकसान कांग्रेस और राहुल गांधी को ही हुआ। बीजेपी और पीएम मोदी ने भी बार-बार राहुल के मंदिर जाने पर सवाल उठाए। कांग्रेस के हिंदुत्व को सबसे बड़ी मात "जनेऊ पॉलिटिक्स" के बाद मिली। राहुल जब सोमनाथ मंदिर गए और वहां राहुल का नाम बतौर "गैर-हिंदू" रजिस्टर्ड हुआ, तो बीजेपी हावी हो गई। बीजेपी ने राहुल के धर्म पर सवाल उठाए। इसका नतीजा ये हुआ कि कांग्रेस को आगे आना पड़ा और बताना पड़ा कि राहुल "जनेऊधारी" हैं। कांग्रेस के इस बयान से साफ हो गया था कि उनका हिंदुत्व अब कमजोर पड़ रहा है, लेकिन इतना कमजोर पड़ेगा इसकी शायद उम्मीद भी नहीं होगी।

अब क्या करे कांग्रेस? 
गुजरात में कांग्रेस ने "हिंदुत्व" का कार्ड खेला तो जरूर, लेकिन उसका फायदा पूरी तरह से नहीं मिला। इस बार कांग्रेस को ज्यादा सीटें मिली और उसका वोट शेयर भी बढ़ा है। गुजरात में जनता बदलाव मांग रही थी और शुरुआत में राहुल गांधी के रुप में जनता को बदलाव भी दिखा। लेकिन कांग्रेस जनता की इस बदलाव की मांग का फायदा नहीं उठा पाई। गुजरात चुनाव में हार के बाद कांग्रेस के पास दो रास्ते बचते हैं। पहला तो ये कि बीजेपी की तरह ही "हिंदुत्व की राजनीति" जारी रखे या जो कांग्रेस की छवि है, उसे ही सुधारे।इस हिसाब से राहुल को दूसरे रास्ते के साथ चलना ही ठीक होगा। राहुल को कांग्रेस में अब ज्यादा बदलाव करने की और अपनी छवि बदलने की जरूरत नहीं है। बल्कि वो उसी छवि को सुधारे, जो सालों से कांग्रेस की चली आ रही है।

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कैसे उठाए "सेकुलरिज्म" का फायदा? 

राहुल गांधी हिंदुत्व का फायदा तो नहीं उठा पाए, लेकिन सेकुलरिज्म का फायदा जरूर उठा सकते हैं। कांग्रेस इस देश की सबसे पुरानी पार्टी है। भले ही पार्टी इस वक्त सबसे मुश्किल दौर में चल रही है, लेकिन पार्टी ने कई बार हार-हार के वापसी की है। चाहे इंदिरा गांधी की इमरजेंसी के बाद जीत हो या फिर 2004 में सोनिया की वापसी। राहुल गांधी अब पार्टी के अध्यक्ष बन चुके हैं। ऐसे में पार्टी की पूरी जिम्मेदारी उनके ऊपर ही है। अगर जीत का सहरा राहुल के सिर बंधता है, तो हार का ठीकरा भी उन्हीं के सिर पर फूटेगा। इस सांप्रदायिक राजनीति के जमाने में राहुल को सेकुलरिज्म को आगे लाना ही होगा। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के पास हिंदू वोट नहीं है, लेकिन अल्पसंख्यकों के वोट लेकर कांग्रेस अच्छी वापसी कर सकती है। गुजरात में इस बार कांग्रेस ने 6 मुस्लिम उम्मीदवार खड़े किए और इनमें से 4 उम्मीदवारों ने बीजेपी को हराया। इसके अलावा क्रिश्चियनों को भी आगे कर पार्टी अच्छा प्रदर्शन कर सकती है। 

क्या सिर्फ अल्पसंख्यक दिलाएंगे कांग्रेस को फायदा? 

तो इस सवाल का जवाब है "शायद ना"। क्योंकि भारत में कई ऐसी छोटी-छोटी पार्टियां हैं, जो सिर्फ अल्पसंख्यकों के दम पर ही चुनाव लड़ती है। भारत की राजनीति के केंद्र में हमेशा से हिंदू और मुस्लिम ही रहे हैं। जबकि क्रिश्चियनों को हमेशा नजरअंदाज किया गया। भारत में अभी 2 करोड़ के आसपास क्रिश्चियनों की आबादी है। जबकि कहा ये भी जाता है कि बहुत से ऐसे लोग भी हैं, जो क्रिश्चियन बन चुके हैं, लेकिन उनका कोई रिकॉर्ड नहीं है। ऐसे में अगर क्रिश्चियनों पर फोकस किया जाए, तो काफी हद तक इसका फायदा लिया जा सकता है। हालांकि मुसलमानों के मामले में ऐसा नहीं है, क्योंकि भारत में चुनावों के टाइम पर एक ही सीट से कई मुस्लिम उम्मीदवार खड़े हो जाते हैं। जिस वजह से वोट बंट जाते हैं और फायदा तीसरे को होता है। इसका उदाहरण हम उत्तरप्रदेश चुनावों में भी देख चुके हैं। यूपी में बीजेपी ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा, लेकिन उसके बाद भी 325 सीटें जीती। यूपी में मुस्लिम आबादी बाकी राज्यों के मुकाबले कहीं ज्यादा है, लेकिन इसका नुकसान बीजेपी को नहीं हुआ। 

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सिर्फ "सेकुलरिज्म" ही देगा कांग्रेस को फायदा

अगर कांग्रेस को वापसी करनी है, तो उसे "सेकुलरिज्म" को उठाना होगा। अकेले हिंदू और अकेले मुस्लिमों के दम पर कांग्रेस चुनाव लड़ तो सकती है, लेकिन जीत नहीं सकती। अब अगर कांग्रेस मुसलमानों को आगे बढ़ाए, तो बीजेपी इसे मुद्दा बनाएगी, जिसका नुकसान कांग्रेस को होगा। वहीं अगर हिंदुत्व को बढ़ावा देती है, तो बीजेपी इस पर भी सवाल खड़े करेगी, जिसका नुकसान भी कांग्रेस को ही होगा। इससे अच्छा है कि कांग्रेस वो करे, जिसका उसे फायदा मिले। कांग्रेस ने आजादी के बाद से सेकुलरिज्म की ही राजनीति की है। चाहे वो जवाहर लाल नेहरू हों या इंदिरा गांधी या फिर सोनिया गांधी। हमेशा से भारत में सेकुलरिज्म को ही बढ़ावा मिला। इसका नतीजा ये हुआ कि हिंदुत्व के मुद्दे को बढ़ाकर बीजेपी आगे बढ़ गई और जिस पार्टी ने 2 सीटों से शुरुआत की थी, वो आज 283 सीटों के साथ केंद्र में बैठी है। अब राहुल गांधी के पास भी यही रास्ता है कि वो इधर-उधर न जाकर, उन चीजों पर फोकस करें, जिसमें अच्छे हैं। यानी कि कांग्रेस की नई छवि बनाने की जगह, पुरानी ही छवि को और "चमकदार" बनाए। 

Created On :   19 Dec 2017 8:57 AM GMT

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