'आधार' नहीं होने के कारण गरीबों का हक नहीं छीना जा सकता : SC

Dont deny benefits of poors due to lack of Aadhaar says Supreme Court
'आधार' नहीं होने के कारण गरीबों का हक नहीं छीना जा सकता : SC
'आधार' नहीं होने के कारण गरीबों का हक नहीं छीना जा सकता : SC

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। आधार कार्ड की अनिवार्यता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को फिर बहस हुई। इस मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को चेताते हुए कहा कि आधार न होने पर किसी भी गरीब को कल्याणकारी योजनाओं से वंचित न किया जाए। कोर्ट ने कहा कि गरीबों के लिए कल्याणकारी योजनाओं में आधार के अलावा पहचान के लिए वोटर कार्ड या राशन कार्ड का इस्तेमाल किया जाए। सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल की दलील पर ये बात कही। बता दें कि सिब्बल ने कोर्ट में कहा था कि आधार नहीं होने की वजह से गरीबों को कई सरकारी योजनाओं का फायदा नहीं मिल रहा है।


कपिल सिब्बल ने क्या दलील दी?

कांग्रेस लीडर और सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट को बताया कि किसी गरीब का आधार न होने पर उसे मिड-डे मील, विधवा पेंशन जैसी कई सुविधाएं देने से सरकारी महकमे इंकार कर देते हैं। सिब्बल ने कोर्ट को ये सुझाव दिया था कि इसे रोकने के लिए वो स्पष्ट आदेश जारी करें। वहीं, दूसरी तरफ से सिब्बल की दलीलों पर केंद्र सरकार की तरफ से पेश अटॉर्नी जनरल के.के वेणुगोपाल ने कोर्ट को बताया कि सरकार ने पहले ही इन योजनाओं के लिए आधार रजिस्ट्रेशन की डेडलाइन 31 मार्च 2018 तक बढ़ा दिया है। इसके साथ ही अटॉर्नी जनरल ने ये भी साफ कर दिया कि इन सरकारी योजनाओं से किसी को भी वंचित नहीं रखा जाएगा।

गरीबों का हक न छीना जाए : SC

वहीं सिब्बल की इस दलील को मानते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि आधार ने होने की वजह से किसी गरीब का हक न छीना जाए। अगर किसी के पास आधार नहीं है, तो उसकी जगह पर वोटर कार्ड या राशन कार्ड का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। 5 जजों की बेंच में शामिल जस्टिस एके सीकरी ने कहा कि कई लोगों को इस बात की जानकारी भी नहीं है कि वो दूसरे आइडेंटिटी डॉक्यूमेंट्स भी दे सकते हैं, तो ऐसे में ये सरकार की जिम्मेदारी है कि वो लोगों को जागरूक करे।

क्यों हो रही है आधार पर सुनवाई? 

दरअसल, पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में आधार की अनिवार्यता के खिलाफ सुनवाई की गई थी, जिसपर फैसला देते हुए कोर्ट ने इसे संविधान के तहत निजता का अधिकार माना था। कोर्ट ने कहा था कि ये व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। उस वक्त पिटीशनर्स का कहना था कि आधार को हर चीज से लिंक कराना निजता के अधिकार (राइट टू प्राइवेसी) का उल्लंघन है। पिटीशन में कहा गया था कि इससे संविधान के आर्टिकल 14, 19 और 21 के तहत मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है। उस वक्त सुप्रीम कोर्ट में 9 जजों की बेंच ने इसे निजता का अधिकार माना था।

पिटीशनर्स का क्या है कहना? 

आधार को लिंक कराने के खिलाफ पिटीशन फाइल करने वाले पिटीशनर्स का कहना है कि सरकार ने शुरू में सिर्फ 6 स्कीम्स के लिए आधार को जरूरी किया था, लेकिन बाद में इसे 139 से भी ज्यादा स्कीम्स के लिए जरूरी कर दिया गया। बता दें कि आधार को बैंक अकाउंट समेत कई योजनाओं से लिंक कराने की अनिवार्यता के खिलाफ कई पिटीशंस फाइल की गई हैं। इन पिटीशंस में कहा गया है कि आधार को कल्याणकारी योजनाओं के लिए अनिवार्य नहीं किया जाना चाहिए।

Created On :   9 Feb 2018 7:05 AM GMT

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