मैसूर का दशहरा, यहां आज भी देखने मिलते हैं शाही ठाठ-बाट

Festival Of Dasara In mysore Karnataka, read here highlights
मैसूर का दशहरा, यहां आज भी देखने मिलते हैं शाही ठाठ-बाट
मैसूर का दशहरा, यहां आज भी देखने मिलते हैं शाही ठाठ-बाट

डिजिटल डेस्क, मैसूर। 15वीं शताब्दी के आसपास, जब यहां विजयनगर साम्राज्य का शासन था। बताया जाता है कि उसी वक्त दशहरा का प्रारंभ किया गया था। मैसूर, कनार्टक राज्य का दशहरा लगभग पूरी दुनिया में फेमस है। इसे स्थानीय भाषा में दसारा के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि मैसूर के दशहरे का प्रारंभ 1610 में राजा वडियार के द्वारा किया गया था। 

दुल्हन की तरह सजता है पैलेस 

दस दिनों के त्योहार के दौरान पूरा मैसूर तकरीबन 1 लाख बल्बस से झिलमिलाता हुआ नजर आता है। वह भी हर दिन शाम 7 से 10 के बीच तो इस शहर का नजारा देखते ही बनता है। मैसूर पैलेस दुल्हन की तरह सजा हुआ दिखाई देता है। जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। मैसूर पैलेस के बाहर ही दसारा या दशहरा एग्जीबीशन भी लगाई जाती है। जहां ऐसे भी स्टाॅल लगाए जाते हैं, जिनके परदादा भी इस मैसूर दशहरे में शामिल होने आते थे। 

कुश्ती सबसे अलग 

आपको जानकर आश्चर्य होगा, लेकिन देश के दूसरे शहरों और राज्यों में आयोजित होने वाले दशहरे से अलग यहां पर कुश्ती का आयोजन किया जाता है। जिसमें देश के विभिन्न राज्यों से बडे़-बड़े पहलवान शिरकत करने आते हैं। हर साल ही कुश्ती का ये नजारा सबसे अलग होता है। 

शाही ठाठ-बाट

जंबो अर्थात हाथी की सवारी में आप शाही ठाठ-बाट महसूस कर सकते हैं। इन्हें जुलूस के लिए अलग से राॅयल लुक दिया जाता है। हाथियों का विशाल जुलूस में हाथी पर देवी चामुंडेश्वरी सवार होती हैं। जिनका लोग आशीर्वाद प्राप्त करते हुए जाते हैं। इसे पंजिना कवयितु के नाम से जाना जाता है। 

Created On :   29 Sep 2017 7:33 AM GMT

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