यहां आदिवासी अनोखे तरीके से मनाते है दिवाली, लगता है 'घुंगरु बाजार'

Here tribals Community celebrate in an unusual way Diwali
यहां आदिवासी अनोखे तरीके से मनाते है दिवाली, लगता है 'घुंगरु बाजार'
यहां आदिवासी अनोखे तरीके से मनाते है दिवाली, लगता है 'घुंगरु बाजार'

डिजिटल डेस्क, अमरावती। एक ओर जहां आज के अत्याधुनिक तकनीकी युग ने जीवन को सहज और सरल बना दिया है उतना ही अपनी आत्मीय शांति और सुकून से दूर भी कर दिया है। अपनी जड़ों और संस्कृतियों से दूर जाकर आज का अत्याधुनिक समाज अपनी मानसिक शांति खोता जा रहा है जबकि दूसरी ओर अत्याधुनिक संसाधनों सेे दूर घने वनो में प्रकृति के सानिध्य में जीवन गुजारने वाला आदिवासी समाज आज भी अपनी जड़ों को पकड़े हुए अपनी संस्कृति का जतन करते हुए छोटे-छोटे पलों में भी जीवन को भरपूर उल्लास और उमंग के साथ जी रहा है। अमरावती जिले के मेलघाट में आदिवासियों की कई जनजातियां निवास करती हैं, उनमें से ही एक है गोंड समाज जो दीपोत्सव पर्व अनूठे ढंग से मनाता आ रहा है।    

घुंगरू बाजार की परंपरा

आदिवासी बंधुओं के लिए होली और दीपोत्सव जैसे त्यौहार उल्लास, उमंग और उत्साह के रंग लेकर आते हैं। जिस तरह से मेलघाट के कोरकू समाजबंधु होली के बाद लगभग छह दिन तक फगवा उत्सव मनाते हैं, उसी तरह गोंड समाज बंधु भी दीपावली का पर्व बेहद धूमधाम से मनाते हैं। दीपोत्सव के दौरान यहां पर घुंगरू बाजार की परंपरा अनेक वर्षों से चली आ रही है। इस बाजार को थाट्या बाजार के नाम से भी जाना जाता है। दीपावली के बाद यहां सप्ताहभर मनोरंजन का दौर चलता है। इसके अलावा थाटिया नृत्य व सांस्कृतिक कार्यक्रम भी थाटिया समाज की ओर से आयोजित किए जाते हैं। इसे मेलघाट क्षेत्र की पौराणिक एवं सांस्कृतिक सभ्यता का अंग माना जाता है।

दिवाली पर्व समाप्त होते ही मेलघाट के आदिवासियों का घुंगरू बाजार शुरू हो जाता है। पहले पाड़वा उत्सव मनाया जाता है। उसके बाद घुंगरू बाजार की शुरूआत होती है। धारणी तहसील के साथ ही कलमखार, चाकर्दा, बिजुधावड़ी, वैरागड़, टिटंबा, हरिसाल और सुसर्दा में घुंगरू बाजार की धूम मची रहती है। मेलघाट के पशुपालक समाज यानी गोंड समाजबंधुओं के लिए घुंगरू बाजार विशेष महत्व रखता है। इस समाज को मेलघाट में थाट्या नाम से संबोधित किया जाता है जिस कारण बाजार को भी थाट्या बाजार के नाम से भी जाना जाता है।

विशेष पोशाक

समाज के पुरुष विशेष पोषाख परिधान कर घुंगरू बाजार में आते हैं। सफेद शर्ट, सफेद धोती, काला कोट, आंखों पर काला चष्मा, हाथ में लकड़ी, बांसुरी, सिर पर तुर्रेदार पगड़ी इस तरह की उनकी वेशभूषा होती है। साथ ही ढोल, टिमका और बांसुरी के साथ भैंस के सिंग की बजने वाली पुंगी की धुन पर सभी मिलकर लयबध्द तरीके से गोंडी नृत्य करते हैं जो कि विशेष आकर्षण का केंद्र रहता है।

8 दिन चलता है आनंदोत्सव

यहां के घुंगरू बाजार में दूरदराज ग्रामीण क्षेत्रों के लोग शामिल होकर मेले की शान बढ़ाते हैं। मेले में पूरे सप्ताह मेलघाट व पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश के गोंडी समाज बंधुओं के लगाए गए सामूहिक बाजार में थाटिया नृत्य की धूम मची रहती है। गोंडी नृत्य करते समय आदिवासी बंधुओं में से दो लोग कपड़े की झोली लेकर पुरस्कार मांगते हैं। सालभर पशुओं को चराने के बाद एक बार उन्हें अपने कार्य के पुरस्कार की अपेक्षा होती है। इसमें नगद राशि के साथ जो भी दुकान का सामान दिया जाता है, उसका आदिवासी बंधु प्रेमपूर्वक स्वीकार करते हैं। दीपावली के बाद आठ दिन तक मेलघाट में घुंगरू बाजार का आनंदोत्सव देखते ही बनता है। इसमें समाज कोे महिला-पुरुष पारंपारिक वेशभूषा में थाटिया नृत्य पेश कर बाजार की रौनक बढ़ाते हैं जिससे इस उत्सव में चार चांद लग जाते हैं।

Created On :   24 Oct 2017 4:56 AM GMT

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