सरदार पटेल न होते तो पूरे कश्मीर पर होता पाकिस्तान का कब्जा

सरदार पटेल न होते तो पूरे कश्मीर पर होता पाकिस्तान का कब्जा
सरदार पटेल न होते तो पूरे कश्मीर पर होता पाकिस्तान का कब्जा
सरदार पटेल न होते तो पूरे कश्मीर पर होता पाकिस्तान का कब्जा

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की आज 142वीं जन्मतिथी है। उनका जन्म 31 अक्टूबर 1875 में गुजरात के एक छोटे से गांव नाडियाड में हुआ था। आजादी के बाद बनी सरकार में उन्हें देश का पहला उप-प्रधानमंत्री और गृहमंत्री बनाया गया, जिस समय देश आजाद हुआ उस समय देश विभिन्न रियासतों में बंटा हुआ था। सरदार पटेल ने इन रियासतों के एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि कश्मीर मसले में अगर सरदार वल्लभ भाई पटले की चली होती तो आज कश्मीर संकट नहीं रहता। उन्होंने जम्मू-कश्मीर रियासत के महाराजा हरि सिंह को भारत में विलय के लिए राजी कर लिया था, लेकिन नेहरू और शेख अब्दुल्ला की दोस्ती के चलते वह कश्मीर का भारत में विलय नहीं करा पाए। दरअसल सरदार पटेल हैदराबाद के तुरंत बाद कश्मीर को भी भारतीय गणतंत्र का हिस्सा बना लेना चाहते थे, लेकिन नेहरू से अहसमतियों के चलते वह ऐसा नहीं कर पाए। सरदार पटेल न होते तो शायद आज पूरे कश्मीर पर पाकिस्तान का कब्जा होता। सरदार पटेल ने सभी लोगों की असहमति के बाद भी महाराजा हरि सिंह के आग्रह पर घाटी से कबाइलियों को खदेड़ने के लिए सैन्य हस्तक्षेप किया, जिसकी वजह से आज यह भूभाग भारत का हिस्सा है।


पटेल की चलती तो संकट नहीं बन पाता कश्मीर 
पटेल बहुत डिसीसिव थे। कश्मीर पर उनकी स्पष्ट राय थी। जवाहरलाल नेहरू और गोपाल स्वामी आयंगार अगर कश्मीर मामले में हस्तक्षेप नहीं करते तो इस नासूर बन गई समस्या का 60 साल पहले ही समाधान हो जाता। सरदार पटेल हैदराबाद के बाद कश्मीर का भी भारत में विलय कराना चाहते थे, लेकिन कश्मीर पर बने अंतर्राष्ट्रीय दबाव और जवाहरलाल नेहरू की निजी दिलचस्पी की वजह से पटेल की यह योजना परवान नहीं चढ़ सकी। हालांकि समय ने एक बार फिर करवट बदली और पाक परस्त कबाइलियों के आक्रमण के बाद जब महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी तो पटेल ने एक बार फिर महाराजा को विलय का प्रस्ताव भेजा, इस पर वह राजी हो गए। इस तरह कश्मीर के भारत में सर्शत विलय पर मुहर लग गई।

इसके बाद भारतीय सेना ने कठिन और विपरीत परिस्थितियों में श्रीनगर पहुंचकर कबाइलियों को खदेड़ने का अभियान शुरू किया। जिस तरह भारतीय सेना पाक परस्त कबाइलियों को ध्वस्त कर रही थी उससे लग रहा था कि जल्द ही उनके कब्जे वाले कश्मीर को पूरी तरह मुक्त करा लिया जाएगा। इसी बीच युद्धविराम की घोषणा हो गई और भारतीय सेना को अपना अभियान रोकना पड़ा। इसका नतीजा यह हुआ कि गिलगित और कुछ हिस्से पर पाकिस्तानी सेना और कबाइलियों का नियंत्रण रह गया, जो आज तक भारत के लिए नासूर बना हुआ है।


 

हरि सिंह तैयार थे,  संकट बनी नेहरू-शेख अब्दुल्ला की मित्रता 
पटेल कश्मीर को किसी भी तरह के विशेष राज्य का दर्जा देने के खिलाफ थे, लेकिन नेहरू ने जब कश्मीर का मुद्दा गृहमंत्रालय से लेकर अपने अधिकार में ले लिया तो सरदार पटेल विवश हो गए। नेहरू की कश्मीर के प्रमुख नेता शेख अब्दुल्ला से बेहद निकटता थी। इस वजह से भी सरदार पटेल इस मुद्दे पर ज्यादा कुछ नहीं कर पाए। सरदार पटेल पर कई किताबें लिखने वाले पीएन चोपड़ा अपनी किताब "कश्मीर एवं हैदराबादः सरदार पटेल" में लिखते हैं कि "सरदार पटेल मानते थे कि कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में नहीं ले जाना चाहिए था।

कई देशों से सीमाओं के जुड़ाव के कारण कश्मीर का विशेष सामरिक महत्व था। इस बात को पटेल बखूबी समझते थे, इसीलिए वह हैदराबाद की तर्ज पर बिना किसी शर्त कश्मीर को भारत में मिलाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने कश्मीर रियासत के महाराज हरि सिंह को तैयार भी कर लिया था, लेकिन शेख अब्दुल्ला से महाराजा के मतभेद और नेहरू से शेख की नजदीकियों ने सारा मामला बिगाड़ दिया।" एक बात और जानने की है कि कश्मीर में आज भारत का जो नियंत्रण है, उसके पीछे भी पटेल का ही दिमाग है। विपरीत परिस्थितियों में सेना को जम्मू कश्मीर में कबाइलियों से मुकाबले के लिए भेजने का साहस भी सरदार पटेल ने दी दिखाया था। 


 

पटेल की पहल पर कश्मीर भेजी सेना 
बहुत कम लोग जानते हैं कि जम्मू कश्मीर में कबाइलियों के आक्रमण के दौरान सेना भेजने के निर्णय के पीछे भी सरदार पटेल ही थे। शेख अब्दुल्ला के प्रमुख सहायक रहे बख्‍शी गुलाम मोहम्मद इस राज पर से पर्दा उठाते हैं। उन्होंने बताया कि कश्मीर में सेना भेजने का निर्णय लेने के लिए दिल्ली में एक बैठक का आयोजन किया गया था। बैठक में बख्‍शी गुलाम मोहम्मद भी शामिल थे। उन्होंने लिखा, " इस बैठक की अध्यक्षता लॉर्ड माउंटबेटन ने की। पंडितजी (जवाहलाल नेहरू), सरदार वल्लभभाई पटेल, रक्षा मंत्री सरदार बलदेव सिंह, जनरल बुकर, कमांडर-इन-चीफ जनरल रसेल, आर्मी कमांडर तथा मैं बैठक में शामिल हुए। कबाइलियों के हमले पर हाथ खड़े करते हुए जनरल बुकर ने कहा कि हमारे पास इनसे मुकाबले लायक संसाधन नहीं हैं। लॉर्ड माउंटबेटन का रवैया भी इस मुद्दे पर झिझक भरा रहा। नेहरू भी इस मसले पर चुप रहे।

 

सहसा सरदार पटेल अपनी सीट पर से उठे। उन्होंने निर्णायक स्वर में कहा, ‘‘जनरल हर कीमत पर कश्मीर की रक्षा करनी होगी। आगे जो होगा, देखा जाएगा। संसाधन हैं या नहीं, इसके बारे में मत सोचिए। हमें हर हाल में कबाइलियों को खदेड़ना है। ’’ जनरल के चेहरे पर उत्तेजना के भाव दिखाई दिए। बख्शी गुलाम मोहम्मद ने बताया यह सुन कर मुझमें आशा की किरण जागी। जनरल हिचकते रह गए लेकिन सरदार पटेल ने कहा , ‘‘हवाई जहाज से सामान पहुंचाने की तैयारी सुबह तक कर ली जाएगी।’’ बख्शी गुलाम मोहम्मद ने बताया कि अगर उस दिन सरदार पटेल आक्रामक नहीं होते, तो आज कश्मीर पाक का हिस्सा होता। 

रियासतों का विलय
सरदार पटेल का सबसे बड़ा काम रियासतों के विलय का था। आजादी के समय देश में कुल 565 रियासतें थीं। बहुत सारे राजा और नवाब देशभक्त थे और एकीकृत राष्ट्र की अवधारणा से सहमत थे, लेकिन बहुत सारे लोग अपना अलग अस्तित्व बनाए रखना चाहते थे। जब अंग्रेजो ने भारत छोड़ा तो अनेक राजा-महाराजा और नवाब स्वतंत्र शासक बनने का सपना देखने लगे। उनमे से कुछ रियासतों ने तो संयुक्त राष्ट्र संघ में अपना प्रतिनिधि नियुक्त करने तक की तैयारी शुरू कर दी थी। ऐसे में सरदार पटेल आगे आए। उन्होंने देशी रियासतों से आह्वान किया कि वे अखंड भारत के निर्माण में सहायता करें। उन्होंने देश की 565 रियासतों से स्पष्ट कहा कि अलग राज्य का सपना असंभव है। भारतीय गणतंत्र का हिस्सा बनने में ही उनकी भलाई है। इसके बाद उन्होंने छोटी रियासतों को संगठित करने का काम शुरू किया। इस मुहिम में ज्यादातर लोगों ने उनका सहयोग किया लेकिन हैदराबाद के निज़ाम और जूनागढ़ के नवाब अब भी अपना अलग अस्तित्व बनाए रखना चाहते थे। सरदार पटेल ने अपनी सूझबूझ से अंतत: उन्हें भारतीय गणतंत्र का हिस्सा बनने पर मजबूर कर दिया। इसी समय वह कश्मीर को भी भारतीय गणतंत्र का हिस्सा बनाना चाहते थे, लेकिन इस योजना को वह अनेक वजहों से आगे नहीं बढ़ा सके। 


संक्षिप्त जीवन परिचय

  • सरदार बल्‍लभ भाई पटेल का जन्‍म 31 अक्टूबर, 1875 ई. में नाडियाड, गुजरात में हुआ था।
  • इनके पिता का नाम  झवेरभाई पटेल एवं माता का नाम लाड़बाई था। 
  • सरदार पटेल ने सन 1897 में 22 साल की उम्र में मैट्रिक पास की। वकील बनने के लिए लन्‍दन जाना चाहते थे। धन के अभाव में सपना टूटा। 
  • सरदार पटेल ने प्राइवेट परीक्षार्थी के रूप में वकालत पास की और गोधरा में वकालत करने लगे। उन्होंने अपने बड़े भाई विट्टठलभाई को कानून की उच्च शिक्षा के लिए लंदन भेजा। वापस लौटने के बाद खुद पढ़ाई के लिए लंदन गए। 
  • सरदार पटेल 1913 में भारत वापस लौट आए और अहमदाबाद में वकालत की शुरूआत की। 
  • सरदार पटेल का विवाह सन 1893 में 16 वर्ष की अवस्‍था में झावेरबा के साथ हुआ। जिनकी 1908 में मौत हो गई। वह 33 साल की उम्र में विधुर हो गए।
  • उनकी दो संतानें थी। 1904 में पुत्री मणिबेन और 1905 में पुत्र दहया भाई का जन्म हुआ। 
  • 1918 में खेड़ा सत्याग्रह के दौरान गांधी के संपर्क में आए। इसके बाद उन्होंने वकालत छोड़ कर समाजसेवा अपना ली। 
  • सरदार पटेल के बारदोली सत्याग्रह का सफल नेतृत्व करने पर वहाँ की महिलाओं ने सरदार की उपाधि दी थी। 
  • देश के भारत के एकीकरण में उनके योगदान के लिये उन्हे भारत का "लौह पुरूष" कहा जाता है। 
  • 2 सितंबर 1946 को सरदार पटेल को अंतरिम सरकार में गृह, सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनाया गया। 
  • गृहमंत्री के रूप में सरदार पटेल पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीय नागरिक सेवाओं आईसीएस को भारतीय प्रशासनिक सेवाएं आईएएस बनाया।  
  • सरदार पटेल का निधन 15 दिसम्बर, 1950 को हुआ। 
  • सरदार पटेल को मरणोपरान्त सन 1991 में भारतरत्‍न से सम्‍मानित किया गया। 
  • सरदार पटेल के सम्‍मान में अहमदाबाद के हवाई अड्डे का नामकरण सरदार वल्लभभाई पटेल अन्तराष्ट्रीय हवाई अड्डा रखा गया है।
  • सरदार पटेल की 137वीं जयंती पर 31 अक्टूबर, 2013 को गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के नर्मदा ज़िले में सरदार पटेल के स्मारक स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी का उद्घाटन किया। 
  • सरदार पटेल की यादों को ताजा रखने के लिए अहमदाबाद के शाहीबाग में सरदार वल्‍लभ भाई पटेल मेमोरिल सोसाइटी में सरदार पटेल का थ्री डी संग्राहालय तैयार किया गया है। 

Created On :   30 Oct 2017 6:17 PM GMT

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