आस्था के खून से ही कलम चलती है - कुमार प्रशांत

Only the blood of faith moves the pen - Kumar Prashant
आस्था के खून से ही कलम चलती है - कुमार प्रशांत
आस्था के खून से ही कलम चलती है - कुमार प्रशांत

डिजिटल डेस्क, मुंबई। आज हम एक चुनौती पूर्ण समय में जी रहे हैं। कलम के लोगों ने आज कलम को नाचने के लिए छोड़ दिया है। आस्था के खून से ही कलम चलती है। आस्था जहां संवेदना से जुड़ती है वहां से पत्रकारिता शुरू होती है।' यह विचार वरिष्ठ पत्रकार व गांधी शान्ति प्रतिष्ठान, दिल्ली के अध्यक्ष कुमार प्रशान्त ने कथाकार, पत्रकार हरीश पाठक की राजेन्द्र माथुर फेलोशिप के अंतर्गत लिखी पुस्तक ‘आंचलिक अखबारों की राष्ट्रीय पत्रकारिता' पर मुंबई प्रेस क्लब में आयोजित विमर्श में व्यक्त किये। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार विश्वनाथ सचदेव ने कहा कि आंचलिक पत्रकारिता जोखिम भरी है यह जमीन से जुड़ी पत्रकारिता है। जो पत्रकारिता जनता की आत्मा से जुड़ेगी वही पाठकों के दिल और दिमाग पर अरसे तक ठहरेगी। इस किताब ने बखूबी साबित किया है कि पिछले साठ सालों में किस स्तर की आंचलिक पत्रकारिता हुई है।

वरिष्ठ नीलकंठ पारटकर ने कहा, ‘यह किताब आजादी के बाद कि आंचलिक पत्रकारिता का ऐसा दस्तावेज है जो हर पत्रकार को पढ़ना चाहिए'। इस किताब के लेखक हरीश पाठक ने कहा,‘आज भी खाद बीज की तरह जरूरी है आंचलिक पत्रकारिता।' कार्यक्रम का संयोजन व संचालन वरिष्ठ पत्रकार-गीतकार ओमप्रकाश तिवारी ने किया। इस मौके पर मनहर चौहान,शीतलाप्रसाद दुबे,सीमा सहगल, वंदना शर्मा, हूबनाथ पांडेय, प्रकाश भातम्बकर, शिल्पा शर्मा, ओमा शर्मा, सुदर्शना द्विवेदी, अलका पांडेय, प्रमिला शर्मा, अजय ब्रह्मात्मज, संजय मासूम, जगदीश पुरोहित सहित कला,संस्कृति से जुड़े कई रचनाकार उपस्थित थे।


 

Created On :   9 Oct 2019 4:56 PM GMT

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story