लोकसभा चुनाव 2024: बीजेपी का अभेद किला दमोह लोकसभा सीट, तीन दशक से अधिक समय से है भाजपा का कब्जा

बीजेपी का अभेद किला दमोह लोकसभा सीट, तीन दशक से अधिक समय से है भाजपा का कब्जा
  • 1989 में भाजपा को मिली थी पहली जीत
  • तीन दशक से भाजपा का कब्जा
  • कांग्रेस को जीत की तलाश

डिजिटल डेस्क, दमोह। मध्यप्रदेश की दमोह लोकसभा सीट बुंदेलखंड की खास सीटों में से एक मानी जाती है। आजादी के 15 साल बाद से दमोह लोकसभा सीट अस्तित्व में आई, शुरुआती लोकसभा चुनाव में दमोह लोकसभा सीट पर कांग्रेस पार्टी की पकड़ काफी मजबूत रही। लेकिन साल 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में दमोह सीट पर पहली बार भाजपा ने जीत दर्ज की, यहीं से बीजेपी की जीत का सफर शुरु हुआ जो 2019 के लोकसभा चुनाव तक जारी रहा। आगामी लोकसभा चुनाव में कुछ महीने ही बाकी है। अब देखना है दमोह की जनता किस दल पर भरोसा करती है।

पिछले तीन दशक के लोकसभा चुनाव के नतीजों के हिसाब से कहे तो दमोह लोकसभा सीट पर बीजेपी ने कब्जा जमा लिया है। दमोह सीट बीजेपी नेताओं के लिए काफी लकी मानी जाती हैं। दमोह सीट से चुनाव जीतने वाले सांसद कई बड़े पदों पर भी पहुंच चुके हैं। दमोह का चुनावी इतिहास बताता है कि यहां पर जातिगत समीकरण कितना अहम किरदार निभाते हैं। प्रहलाद पटेल ने साल 2023 में नरसिंहपुर सीट से विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद दमोह लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था। वर्तमान में यह सीट रिक्त है। आज हम आपको बताएंगे दमोह लोकसभा सीट के चुनावी इतिहास के बारे में।

दमोह लोकसभा सीट का चुनावी इतिहास

आजादी के 15 साल बाद दमोह लोकसभा सीट के गठन के बाद साल 1962 में यहां पहला चुनाव हुआ था। शुरुआत में यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी। पहले आम चुनाव में दमोह सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी सहोद्राबाई राय ने जीत दर्ज की थी। साल 1967 में कांग्रेस को फिर जीत हासिल हुई लेकिन इस बार मणिभाई पटेल निर्वाचित हुए। 1971 के चुनाव में भी दमोह सीट से कांग्रेस ने जीत का परचम लहराया और वरा गिरी शंकर सासंद बने। शुरुआत के तीन चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस पार्टी की पकड़ दमोह सीट से कमजोर होती चली गई।

आपातकाल हटने के बाद साल 1977 में चुनाव हुए। इस चुनाव के नतीजों में कांग्रेस को भारतीय लोकदल से करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। तब दमोह सीट पर लोकदल के उम्मीदवार नरेंद्र सिंह यादवेंद्र सिंह सांसद बने थे। हालांकि, 1980 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने वापसी कर ली और प्रभूनारायण रामधन निर्वाचित हुए। कांग्रेस ने 1984 के लोकसभा में भी विजय हासिल की और डालचंद जैन सासंद बने। दमोह लोकसभा सीट से यह कांग्रेस को मिली आखिरी जीत थी। क्योंकि इसके बाद से कांग्रेस दमोह में आज तक नहीं जीत सकी।

साल 1989 में भारतीय जनता पार्टी ने दमोह सीट में एंट्री मारी। 1989 में भाजपा को पहली जीत मिली और लोकेंद्र सिंह सांसद बने। 1991 में भाजपा फिर जीती और रामकृष्ण कुसमरिया निर्वाचित हुए। रामकृष्ण कुसमरिया ने अगले तीन लोकसभा चुनाव 1996, 1998 और 1999 में लगातार जीत दर्ज की। साल 2004 में भी भाजपा ने विजय हासिल की और चंद्रभान भैया सांसद बने। इसके बाद साल 2009 में भी भाजपा को जीत मिली और शिवराज सिंह सासंद बने। 2014 में प्रहलाद पटेल ने भाजपा के टिकट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। प्रहलाद पटेल ने 2019 के आम चुनाव में भी अपनी सांसदी बरकरार रखते हुए भाजपा को जीत दिलाई।

2019 लोकसभा चुनाव का रिजल्ट

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने प्रहलाद पटेल को दमोह सीट से मैदान में उतारा था। वहीं, कांग्रेस पार्टी ने प्रहलाद पटेल के सामने प्रताप सिंह को चुनावी मैदान में उतारा था। चुनाव के नतीजों में भाजपा के उम्मीदवार प्रहलाद पटेल को शानदार जीत मिली थी। प्रहलाद पटेल ने कांग्रेस प्रत्याशी प्रताप सिंह को 3 लाख 53 हजार 411 वोटों के अंतर से शिकस्त दी थी। 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 7 लाख 45 हजार 24 और कांग्रेस को 3 लाख 51 हजार 113 वोट मिले थे।

1989 से दमोह सीट पर भाजपा का कब्जा

बुंदेलखंड की दमोह लोकसभा सीट पर पिछले 34 सालों से भाजपा का कब्जा है। कांग्रेस पार्टी को साल 1984 में यहां अंतिम जीत मिली थी। तब सागर के रहने वाले डालचंद जैन ने कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की थी। साल 1989 के आम चुनाव से लगातार दमोह में भाजपा का भगवा ध्वज लहरा रहा है। तब लोकेंद्र सिंह दमोह लोकसभा सीट से भाजपा के पहले सासंद बने थे। कांग्रेस पार्टी ने दमोह सीट पर साल 1989 से लेकर 2019 के बीच हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा को हराने के लिए कई अलग अलग प्रत्याशियों को मैदान में उतारा। लेकिन भाजपा के सामने कांग्रेस को हर बार हार का सामना करना पड़ा।

बाहरी प्रत्याशियों को मिली सबसे ज्यादा जीत

दमोह लोकसभा सीट के इतिहास से एक बड़ा रोचक तथ्य निकलकर सामने आता है। दमोह में पहले आम चुनाव से लेकर अब तक अधिकतर जो भी प्रत्याशी सांसद बने हैं उनमें से अधिकतर बाहरी हैं। दमोह लोकसभा सीट से डॉ रामकृष्ण कुसमरिया ही इकलौते ऐसे सांसद रहे हैं जो बाहरी नहीं हैं। डॉ रामकृष्ण कुसमरिया ने कांग्रेस के टिकट से लगातार चार बार चुनाव जीता था।

राष्ट्रपति के बेटे ने चुनाव जीतने के लिए हेलीकॉप्टर से पर्चे फेंके

दमोह लोकसभा सीट से भारत के पूर्व राष्ट्रपति वीवी गिरी के बेटे बराहशंकर गिरी भी चुनाव लड़ चुके हैं। उन्होंने साल 1971 के आम चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था। खास बात यह थी कि उन्होंने यह चुनाव जीतने के लिए हेलीकॉप्टर से चुनाव प्रचार किया था। इस दौरान उनके हेलीकॉप्टर से नगरों, कस्बों और गांवों में पर्चे फेंके जाते थे। इस चुनाव के नतीजों में उन्हें जीत भी मिली थी। बराहशंकर गिरी ने तब नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी विजय कुमार मालवीय को हराया था।

2004 के बाद लोधी वोट बैंक के प्रत्याशी

दमोह संसदीय क्षेत्र में बीते कई सालों से लगातार लोधी वोट बैंक मजबूत होता रहा है। यही कारण रहा कि इस सीट पर साल 2004 से लगातार लोधी प्रत्याशी निर्वाचित हुए। 2004 में डॉ रामकृष्ण कुसमरिया का टिकट काटकर चंद्रभान सिंह को टिकट मिला और वे चुनाव जीत गए। इसके बाद साल 2009 में शिवराज सिंह और 2014 व 2019 में प्रहलाद पटेल लोधी समाज से सांसद बने।

सीट का जातिगत समीकरण

दमोह लोकसभा सीट पर जातिगत समीकरण का विशेष महत्व माना जाता है। राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार दमोह सीट पर जातिगत वोटबैंक को ध्यान में रखकर चुनाव लड़ा जाता है। दमोह में लोधी और कुर्मी समाज को मिलाकर ओबीसी वोटर्स की 22.4 फीसदी के साथ सबसे ज्यादा आबादी है, सवर्णों की संख्या 17 फीसदी है। जिसमें 7 फीसदी जैन और वैश्य वोटर्स हैं और 10 फीसदी ब्राम्हण-राजपूत समाज के वोटर्स हैं, आदिवासी वोटर्स की आबादी 9.6 फीसदी है, और यादव वोटर्स की संख्या 5.7 फीसदी है।

Created On :   27 Feb 2024 12:43 PM GMT

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