जम्मू कश्मीर में शहीद दिवस पर बवाल: उमर अब्दुल्ला ने नक्शबंद साहब दरगाह का फांदा गेट, अंदर जाने पर पुलिस से हुई झड़प, सीएम ने मारपीट के लगाए आरोप

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। जम्मू कश्मीर में शहीद दिवस को लेकर सियासत तेज हो गई है। इस बीच सोमवार को मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने प्रशासन पर हाथापाई करने का आरोप लगाया है। इसके अलावा उन्होंने प्रशासन द्वार रोके जाने पर नक्शबंद साहब के दरवाजे को फांदकर अंदर गए। इसके बाद उन्होंने फातिहा पढ़ी।
सोशल मीडिया एक्स पर सीएम अब्दुल्ला ने इस घटना का वीडियो पोस्ट किया। उन्होंने लिखा, "13 जुलाई 1931 के शहीदों की कब्रों पर श्रद्धांजलि अर्पित की और फातिहा पढ़ी। अनिर्वाचित सरकार ने मेरा रास्ता रोकने की कोशिश की और मुझे नौहट्टा चौक से पैदल चलने पर मजबूर किया। उन्होंने नक्शबंद साहब की दरगाह का दरवाजा बंद कर दिया और मुझे दीवार फांदने पर मजबूर किया। उन्होंने मुझे पकड़ने की कोशिश की, लेकिन आज मैं रुकने वाला नहीं था।"
सीएम अब्दुल्ला ने आगे लिखा, "बड़े अफसोस की बात है कि वो लोग जो खुद इस बात का दावा करते हैं कि उनकी जिम्मेदारी सिर्फ सिक्योरिटी एंड लॉ एंड ऑर्डर है, लेकिन हमें यहां आकर फातिहा पढ़ने की इजाजत नहीं दी गई। सभी को घरों में बंद रखा गया। यहां तक कि जब गेट खुलने शुरू हुए तो मैंने कंट्रोल रूम को बताया कि मैं यहां आना चाहता हूं, तो मिनटों के अंदर मेरे गेट के बाहर बंकर लगा। रात के 12-1 बजे तक उसको हटाया नहीं गया। आज मैंने इनको बताया ही नहीं, मैं बिना बताये गाड़ी में बैठा...इनकी बेशर्मी देखिए, आज भी हमें रोकने की कोशिश की।"
सीएम ने कहा, ''नौहट्टा चौक पर मैंने गाड़ी खड़ी की, सीआरपीएफ का बंकर सामने लगाया। जम्मू-कश्मीर पुलिस भी थी। हाथापाई करने की कोशिश की। पुलिसवाले जो वर्दी पहनते हैं कभी-कभी ये कानून भूल जाते हैं। मैं इनसे पूछना चाहता हूं कि किस कानून के तहत हमें रोकने की कोशिश की है। अगर रुकावट थी तो कल के लिए थी, कहने के लिए ये कहते हैं कि ये आजाद मुल्क है, लेकिन बीच-बीच में ये समझते हैं कि हम इनके गुलाम हैं। हम किसी के गुलाम नहीं हैं। हम अगर गुलाम हैं तो यहां के लोगों के गुलाम हैं।''
उमर अब्दुल्ला ने कहा, "ये लोग वर्दी पहनकर कानून का इस तरह इस्तेमाल करें, ये बातें हमें समझ नहीं आती है। हमने इनकी कोशिशों को नाकाम किया, हमारे झंडे को फाड़ने की कोशिश की। इनकी तमाम कोशिशें नाकाम रही। हम आए फातिहा पढ़ी, इनलोगों को शायद गलतफहमी है कि यहां 13 जुलाई को ही कब्रें हैं, ये भूल जाते हैं कि ये कब्रें हमारे शहीदों के साल के तमाम दिन यहां पर हैं। 13 जुलाई नहीं सही, दिसंबर, जनवरी, फरवरी, ये हमें कब तक रोकेंगे। हमारी जब मर्जी होगी हम यहां आएंगे और शहीदों को याद करेंगे।"
Created On :   14 July 2025 5:21 PM IST