बिहार विधानसभा चुनाव 2025: जानिए महिला सशक्तिकरण की बात करने से लेकर तमाम वादे करने वाली पार्टियों ने महिलाओं को चुनाव में कितना मौका दिया?

डिजिटल डेस्क, पटना। बिहार विधानसभा चुनाव में 3.45 करोड़ महिला मतदाता है। इन महिला वोटर्स को साधने के लिए गठबंधन दल तमाम वादे कर रहे है, लेकिन प्रतिनिधित्व में भले ही 33 प्रतिशत आरक्षण संसद से पारित होकर कानून बन गया हो, लेकिन सत्तारूढ़ गठबंधन से लेकर महागठबंधन ने टिकट देने में अधिक रूचि नहीं दिखाई। बिहार विधानसभा चुनाव में सबसे अधिक महिलाओं को टिकट देने के मामले में बहुजन समाज पार्टी सबसे टॉप पर है, बिहार में अकेले के दम पर चुनाव लड़ रही बसपा ने 26 महिलाओं को हाथी के चुनाव चिह्न पर चुनावी मैदान में उतारा है। जो सभी पार्टियों की तुलना में सबसे अधिक है।
आपको बता दें चुनावी जंग में महिलाओं की भागीदारी का सवाल कोई नया नहीं है, चुनावी राजनीति में ये सवाल हर बार सिर उठाता है कि इस चुनाव में किस राजनीतिक दल ने कितनी महिलाओं को टिकट देकर चुनावी मैदान में उतारा है। क्योंकि बदलाव के साथ साथ महिलाओं की राजनीति में बढ़ती भागीदारी को अब अधिक समय तक नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
बिहार राज्य में महिलाओं की भागीदारी और प्रतिनिधित्व की बात की जाए तो स्थानीय निकायों में 1.4 लाख महिला-जनप्रतिनिधि हैं, लेकिन मौजूदा समय में केवल 3 महिलाएं लोकसभा में और 26 विधानसभा में हैं जो उनकी राजनीतिक सहभागिता और राजनीतिक चेतना के अनुरूप उचित नहीं है।
अब सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि चुनावी मौसम में महिला वोटर्स को रिझाने के लिए तमाम वादे और घोषणा करने वाले राजनैतिक दल वोट संख्या के आधार पर भागीदारी देने में पीछे क्यों हो जाते है। नीतीश के नेतृत्व में सत्तारूढ़ गठबंधन महिला सशक्तिकरण की बात तो जोरों शोरों से कर रहा है, पहले ही नीतीश सरकार 35% आरक्षण, प्रति महिला दस हजार रुपये जैसी घोषणाएं कर चुकी है। लेकिन विधानसभा में महिलाएं अपने हक के लिए सवाल करें तो उन्हें अधिक से अधिक विधान भवन में पहुंचाने से कतराती है। जहां से वो अपने लिए अपने हित में कानून बना सकें, और उनको लागू भी करवा सकें। रसोई और घर की चार दिवारों से निकलकर महिलाएं कब सियासत की चाबी अपने हाथ में लेगी।
महिला वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए महागठबंधन ने भी जीविका दीदी को नियमित करने, वेतन बढ़ाने जैसे वादे भले भी किए हैं। लेकिन प्रतिनिधित्व नहीं देना चाहती। पुरुष प्रधानता की ये सामाजिक सोच राजनीति से कब गायब होगी। एनडीए ने एक करोड़ महिलाओं को लखपति दीदी बनाने से लेकर डायरेक्ट आर्थिक मुहैया कराने का वादा भले ही किया है। लेकिन पार्टियों ने प्रभुत्व और संख्या के अनुरूप महिलाओं को टिकट नहीं दिए हैं? चुनावी राजनीति में उन्हें वो हिस्सेदारी नहीं मिली, जिसकी संख्या के आधार पर आधी हिस्सेदारी और भागीदारी बनती है। इसकी वो हकदार भी हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए की तरफ से कुल 34 जबकि महागठबंधन की ओर से 30 महिला प्रत्याशिओं को चुनावी जंग के मैदान में उतारा है। गठबंधनों में बात की जाए तो महिलाओं को सबसे अधिक टिकट देने वाली पार्टी आरजेडी है। 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ रही बीजेपी और जेडीयू ने 13-13 महिलाओं को टिकट दिया है। जो 13 प्रतिशत से भी कम है। एनडीए में 29 सीटों पर चुनाव लड़ रही एलजेपी (आर) ने 5 महिला उम्मीदवारों को मौका दिया गया है. इसे पहले के चुनाव में छह सीटों पर महिला उम्मीदवार उतारे थे। लेकिन एक उम्मीदवार का नामांकन निरस्त हो गया।
6 सीटों पर चुनाव लड़ रही हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा ने दो सीटों पर महिलाओं को चुनावी मैदान में उतारा है। उन्होंने बहू और समधन को टिकट दिया है। छह सीटों पर चुनाव लड़ रही राष्ट्रीय लोक मोर्चा से उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पत्नी स्नेहलता को उम्मीदवार बनाया है। वह सासाराम से चुनाव लड़ रही हैं और पार्टी की इकलौती महिला उम्मीदवार हैं।
महागठबंधन में कुल सात पार्टियां . आरजेडी, कांग्रेस, सीपीआई, सीपीएम, सीपीआई (एमएल), वीआईपी, आईआईपी है। महागठबंधन से कुल 30 महिलाओं को टिकट दिया है। महागठबंधन में सबसे अधिक 143 सीटों पर चुनाव लड़ रही आरजेडी ने 24 , 61 पर चुनाव लड़ रही कांग्रेस ने 5 ,14 सीटों में से वीआईपी ने 1 , 20 सीट वाली सीपीआई (एमएल) ने, 9 सीट वाली सीपीआई ने , 4 सीटों वाली सीपीएम ने प्रत्याशी महिलाएं उतारी हैं। आरजेडी की एक महिला कैंडिडेंट का नामांकन निरस्त होने से 23 महिलाएं उम्मीदवार ही मैदान में है। लेफ़्ट की तीनों पार्टियों को मिलाकर केवल एक महिला प्रत्याशी चुनावी मैदान में नज़र आती हैं। दीघा विधानसभा से सीपीआई (एमएल) की इकलौती महिला उम्मीदवार दिव्या गौतम हैं, जबकि सीपीआई, सीपीएम ने किसी भी महिला को टिकट नहीं दिया है।
नए प्लेयर के तौर पर बिहार विधानसभा चुनाव में 40 प्रतिशत महिलाओं को टिकट देने की हुंकार भरने वाले जनसुराज के प्रशांत किशोर ने भले ही 243 सीटों पर उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे हैं लेकिन सिर्फ 25 महिलाओं को ही चुनावी मैदान में उतारा है।
2020 के विधानसभा चुनाव में कुल 370 महिलाएं चुनावी मैदान में उतरीं, उनमें से 26 महिला विधायक विधानसभा में पहुंची। 2015 में कुल 272 महिला उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतंरी थीं। 28 महिला विधायक विधानसभा पहुंची। 2010 में कुल महिला उम्मीदवारों की संख्या 214 थी,32 महिलाएं विधानसभा पहुंचने में सफल रहीं। कांग्रेस ने तब 32 और आरजेडी ने 11 महिलाओं को टिकट दिया, लेकिन एक भी नहीं जीती।
आपको बता दें चुनावों में महिला मतदाताओं की भूमिका संख्या की अहमियत के साथ लगातार बढ़ रही है, पुरूषों की तुलना में महिलाओं का वोट परसेंट हमेशा से अच्छा रहा है। यानी वोटिंग में पुरुष वोटरों की अपेक्षा महिलाएं बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही है। पुरुष प्रधानता की सोच रखने वाली राजनीतिक पार्टियों और उनके राजनेता ने सामाजिक स्तर पर ये भ्रांतियां फैलाई है कि राजनीति महिलाओं के लिए अच्छी नहीं है, इसकी वजह से राजनीति से महिलाओं की दूरी विकसित भारत के सपने को अधूरा करती है, क्योंकि महिलाओं को एक बात जरूर याद रखना चाहिए कि राजनीति वह सिस्टम से जिससे आपके घर के राशन और रोटी से लेकर आपके जीने की रणनीति तय होती है।
Created On :   1 Nov 2025 2:36 PM IST












