Three language policy controversy: महाराष्ट्र सरकार ने त्रिभाषा नीति के फैसले पर लगाई रोक, हिंदी भाषा थोपे जाने के आरोपों के बीच लिया फैसला

महाराष्ट्र सरकार ने त्रिभाषा नीति के फैसले पर लगाई रोक, हिंदी भाषा थोपे जाने के आरोपों के बीच लिया फैसला
  • हिंदी की अनिवार्यता को लेकर महाराष्ट्र सरकार का बड़ा फैसला
  • त्रिभाषा नीति को किया स्थगित
  • समीक्षा और क्रियान्वयन के लिए किया समिति का गठन

डिजिटल डेस्क, मुंबई। महाराष्ट्र की महायुति सरकार ने त्रिभाषा नीति पर फिलहाल रोक लगा दी है। सरकार ने यह फैसला जनता और विपक्षी दलों के विरोध के बाद लिया। प्रदेश की फडणवीस सरकार ने इस नीति से जुड़े अपने संशोधित सरकारी आदेश (जीआर) को वापस ले लिया है। इसके साथ ही इस पॉलिसी के रिव्यू के लिए एक कमेटी के गठन करने का ऐलान किया है।

नीति का केंद्र बिंदु मराठी ही रहेगा - सीएम फडणवीस

सीएम देवेंद्र फडणवीस ने नीति को स्थगित करने का ऐलान किया। उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा, "सरकार ने त्रिभाषा नीति पर जारी दोनों जीआर रद्द कर दिए हैं। त्रिभाषा नीति लागू करने के लिए समिति का गठन किया है। आज कैबिनेट बैठक में हमने निर्णय लिया है कि त्रिभाषा नीति किस प्रकार लागू की जानी चाहिए, इस पर विचार के लिए डॉ. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक समिति बनाई जाएगी। यह समिति सभी संबंधित पक्षों से चर्चा करेगी और उसकी रिपोर्ट के आधार पर ही त्रिभाषा नीति लागू की जाएगी। इसलिए त्रिभाषा नीति पर जारी दोनों शासकीय आदेश (जीआर) रद्द किए जा रहे हैं। हमारे लिए इस नीति का केंद्र बिंदु मराठी ही रहेगा।"

उन्होंने आगे कहा, "मराठी के संदर्भ में जो सो रहे हैं उन्हें उठाया जा सकता है, लेकिन जो दिखावा कर रहे हैं, उन्हें नहीं। कर्नाटक और यूपी जैसे राज्यों ने अपनी शैक्षणिक नीति लागू कर दी है। 16 अक्टूबर 2020 को उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में एक जीआर (सरकारी आदेश) जारी किया गया था। इसके तहत रघुनाथ माशेलकर की अध्यक्षता में 18 सदस्यों की एक समिति गठित की गई थी।

इस समिति में शामिल थे थोरात, येवले, राजन वेळुकर, सपकाळ, जी. डी. जाधव, विजय पाटील, नितीन पुजार, अभय वाघ, निरंजन हिरानंदानी, भारत आहुजा, देविदास गोल्लर, मिलिंद साटम, अजित जोशी, विजय कदम (शिवसेना उद्धव गुट के उपनेता), धनराज माने आदि। यह एक मराठी और शिक्षाविदों की विशेषज्ञ समिति थी।"

मुख्यमंत्री ने बाताया कि उद्धव ठाकरे ने 101 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी थी। रिपोर्ट में उनकी तस्वीर भी है, संपादक भी उपस्थित थे, हालांकि वे पीछे खड़े हैं। मैं खबरों में नहीं जाता, मैं रिपोर्ट की बात करता हूं। रिपोर्ट के पृष्ठ क्रमांक 56 पर यह अनुशंसा दी गई है कि एक उपसमूह बनाया गया था, जिसमें सुखदेव थोरात, नागनाथ कोतापल्ली, विजय कदम भी शामिल थे.उन्होंने सिफारिश की थी कि अंग्रेजी और हिंदी भाषा पहली से बारहवीं तक पढ़ाई जाए। मराठी को प्राथमिकता देना जरूरी बताया गया, लेकिन हिंदी का उल्लेख भी किया गया।

'उद्धव कैबिनेट ने किए थे साइन'

सीएम फडणवीस ने कहा कि शिवसेना (उद्धव गुट) के उपनेता भी उस समिति में थे और उन्होंने ही यह अनुशंसा की थी। 14 सितंबर 2021 को यह रिपोर्ट सौंपी गई थी। 7 जनवरी 2022 को यह रिपोर्ट कैबिनेट में प्रस्तुत की गई। उद्धव ठाकरे की कैबिनेट ने इस पर हस्ताक्षर किए। इसलिए यह कहना गलत है कि उस रिपोर्ट को स्वीकार करते समय त्रिभाषा सूत्र मान्य नहीं किया गया था।

तब माशेलकर समिति की रिपोर्ट को स्वीकार किया गया था और इसे लागू करने के लिए एक समिति का गठन किया गया था। उसी समिति के मुताबिक अब जो GR निकाले गए हैं, वे आए हैं। 2025 में पहला GR निकाला गया, जिसमें मराठी अनिवार्य भाषा थी, दूसरी अंग्रेज़ी और तीसरी हिंदी बताई गई. जब इस पर सवाल उठे, तो 17 जून को सरकार ने स्पष्ट किया कि तीसरी भाषा कोई भी भारतीय भाषा हो सकती है।

Created On :   29 Jun 2025 9:41 PM IST

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