बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद पहली बार माकपा ने राष्ट्रपति शासन का किया समर्थन

For the first time after the demolition of the Babri Masjid, the CPI(M) supported the Presidents Rule.
बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद पहली बार माकपा ने राष्ट्रपति शासन का किया समर्थन
पश्चिम बंगाल बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद पहली बार माकपा ने राष्ट्रपति शासन का किया समर्थन

डिजिटल डेस्क, कोलकाता। जब भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 का सवाल आता है, तो माकपा हमेशा से ही इसका विरोध करने में बहुत मुखर रही है। लेकिन 1964 में सीपीआई के विभाजन के बाद पार्टी के पोलित ब्यूरो के नौ सदस्यों में से दो ज्योति बसु और हरकिशन सिंह सुरजीत ने एक बार अनुच्छेद 356 के प्रयोग पर बल दिया।

यह अवसर था बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हराव की ओर से बुलाई गई बैठक, जिसमें इन नेताओं यूपी में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की। इसके बाद लाल कृष्ण आडवाणी सहित कई भाजपा नेताओं ने अनुच्छेद 356 का विरोध करने पर सीपीआई (एम) का उपहास उड़ाया और दोहरा मानदंड रखने का आरोप लगाया।

पश्चिम बंगाल की वर्तमान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तत्कालीन प्रमुख विपक्षी नेता के रूप में इस उदाहरण का हवाला दिया। बसु और सुरजीत ने उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने पर जोर दिया था, यह लिब्रहान आयोग के समक्ष बसु के बयान से स्पष्ट था।

आयोग के समक्ष बसु ने कहा, ऐसी खबरें थीं कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद पर कार सेवकों द्वारा हमला किया जा सकता है। तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री नरसिम्हा राव ने 23 नवंबर, 1992 को राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक बुलाई थी। माकपा की ओर से हरकिशन सिंह सुरजीत मैं बैठक में शामिल हुआ। नरसिम्हा राव को सर्वसम्मति से मस्जिद की सुरक्षा के लिए आवश्यक उपाय करने की शक्तियां दी गईं थी। हमने पार्टी की ओर से यूपी में अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल करने की सलाह दी। हालांकि हम इसके इस्तेमाल का विरोध करते रहे हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों, टिप्पणीकारों और इतिहासकारों का मानना है कि यह वह मोड़ा था जब माकपा को अलग ²ष्टिकोण से देखा जाने लगा।

इतिहासकार और सीपीआई (एम) के कॉलेज और विश्वविद्यालय के शिक्षक प्रकोष्ठ के एक पदाधिकारी अजीत कुमार दास को लगता है कि पूरी संभावना है कि ज्योति बसु और हरकिशन सिंह सुरजीत उस समय जानते थे कि अनुच्छेद 356 के लिए उनका समर्थन सीपीआई (एम) शासित राज्यों के खिलाफ बाद में इसका इस्तेमाल करने के लिए उनके विपक्षियों को ताकत दे सकता है।

दास ने कहा, बसु एक राजनेता-सह-प्रशासक होने के नाते और सुरजीत एक व्यावहारिक मार्क्‍सवादी होने के कारण बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद के प्रभावों के खतरे को समझते थे और इसके लिए दोनों ने उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन का समर्थन करने में संकोच नहीं किया।

वयोवृद्ध राजनीतिक विश्लेषक और टिप्पणीकार अरुंधति मुखर्जी ने आईएएनएस से कहा कि बसु को एक राजनेता और एक प्रशासक के रूप में अपनी भूमिकाओं के बीच बारीक रेखा बनाए रखने की कला में महारत हासिल थी।

मुखर्जी ने कहा, मेरी राय में तत्कालीन प्रधान मंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव के साथ बैठक में बसु ने यूपी में अनुच्छेद 356 के इस्तेमाल पर इसलिए जोर दिया, क्योंकि उन्हें बाबरी मस्जिद के विध्वंस के नतीजों का एहसास था। इसके लिए उन्होंने सीपीआई (एम) के तत्कालीन महासचिव हरकिशन सिंह सुरजीत को विश्वास में लिया। बाद में बसु ने पार्टी के भीतर चर्चा के दौरान बताया कि उन्होंने अनुच्छेद 356 के लिए आवाज क्यों उठाई। यह एक अपवाद था और इसे एक सामान्य नियम के रूप में नहीं माना जा सकता है।

एक अन्य अनुभवी राजनीतिक पर्यवेक्षक निर्माल्य बनर्जी ने आईएएनएस को बताया कि यह घटनाक्रम बसु और सुरजीत की घोषित पार्टी लाइन के खिलाफ चलने की राजनीतिक साहस को दर्शाता है और यह एक ऐसे समय में हुआ जब साम्राज्यवाद और केंद्र को कोसने के पुरातन सिद्धांतों से आम कॉमरेड अभिभूत थे।

यह सीपीआई (एम) थी जो पारंपरिक रूप से किसी भी राज्य सरकार के खिलाफ धारा 356 के इस्तेमाल के खिलाफ थी, जो कांग्रेस द्वारा किसी भी गैर-कांग्रेसी राज्य सरकार के खिलाफ इस्तेमाल किया जाने वाला एक पसंदीदा और पारंपरिक उपकरण था। लेकिन तब बसु और सुरजीत अनुच्छेद 356 के लिए जोर दे रहे थे और वह भी एक कांग्रेसी प्रधानमंत्री से, जो तब अल्पसंख्यक सरकार चला रहे थे।

-आईएएनएस

सीबीटी

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Created On :   6 Dec 2022 8:31 AM GMT

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