धर्मातरण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने वकील से कहा, कुछ धर्मो के बारे में कथनों पर विचार करें

In the case of conversion, the Supreme Court told the lawyer, consider the statements about some religions
धर्मातरण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने वकील से कहा, कुछ धर्मो के बारे में कथनों पर विचार करें
नई दिल्ली धर्मातरण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने वकील से कहा, कुछ धर्मो के बारे में कथनों पर विचार करें

डिजिटल डेस्क,  नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जबरन धर्मातरण के खिलाफ याचिका दायर करने वाले एक याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि याचिका में कुछ धर्मो के संबंध में दिए गए कथनों पर विचार करें। एक पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने जस्टिस एमआर शाह और एस रवींद्र भट की पीठ के समक्ष कहा कि अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा कुछ धर्मो के खिलाफ दायर याचिका में कुछ बहुत ही गंभीर और कष्टप्रद आरोप हैं और उन्हें मामले में पक्षकार बनाने की मांग की गई है।

वकील ने कहा कि कुछ धर्मो के अनुयायियों के बारे में आरोप लगाया गया है कि वे दुष्कर्म और हत्या के आरोपों में घिरे हैं। पीठ ने उपाध्याय का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद पी. दातार से इस मुद्दे को देखने को कहा। इसने वकील से मौखिक रूप से कहा, आप कृपया विचार करें कि यह आरोप क्या है .. इस पर विचार करें और इसे मॉडरेट करें।

दवे ने तर्क दिया कि ये कथन आपके लॉर्डशिप की फाइल पर नहीं होने चाहिए और अदालत को उन्हें इसे वापस लेने के लिए कहना चाहिए। पीठ ने कहा कि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता उपलब्ध नहीं थे और सुनवाई को 9 जनवरी तक के लिए स्थगित कर दिया।

5 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जबरन धर्मातरण का मुद्दा एक बहुत गंभीर मुद्दा है और इस बात पर जोर दिया कि दान का स्वागत है, लेकिन दान का उद्देश्य धर्मातरण नहीं होना चाहिए। शीर्ष अदालत ने केंद्र को धर्मातरण विरोधी कानूनों और अन्य प्रासंगिक सूचनाओं के संबंध में विभिन्न राज्य सरकारों से आवश्यक प्रतिक्रिया प्राप्त करने के बाद एक विस्तृत जवाब दाखिल करने की अनुमति दी।

गुजरात सरकार ने अपनी लिखित प्रतिक्रिया में कहा, यह विनम्रतापूर्वक प्रस्तुत किया गया है कि 2003 का अधिनियम (गुजरात धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम, 2003) एक वैध रूप से गठित कानून है और विशेष रूप से 2003 के अधिनियम की धारा 5 का प्रावधान है, जो पिछले 18 वर्षो से क्षेत्र में है और इस प्रकार कानून का एक वैध प्रावधान है, ताकि 2003 के अधिनियम के उद्देश्य को प्राप्त किया जा सके और समाज के आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर वर्गो के अधिकारों की रक्षा करके गुजरात राज्य के भीतर सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखी जा सके।

राज्य सरकार ने कहा कि गुजरात हाईकोर्ट ने 2003 के अधिनियम की धारा 5 के संचालन पर रोक लगा दी, जो वास्तव में एक व्यक्ति को अपनी इच्छा से एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित होने के लिए एक सक्षम प्रावधान है।

राज्य सरकार ने कहा कि हाईकोर्ट इस बात की सराहना करने में विफल रहा कि 2003 के अधिनियम की धारा 5 के संचालन पर रोक लगाने से अधिनियम का पूरा उद्देश्य प्रभावी रूप से विफल हो गया। इसने आगे कहा कि 2003 के कानून को मजबूत करने के लिए गुजरात धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 2021 पारित किया गया था।

शीर्ष अदालत उपाध्याय द्वारा धोखे से धर्म परिवर्तन और धर्म परिवर्तन के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, क्योंकि यह अनुच्छेद 14, 21 और 25 का उल्लंघन करता है।

 

(आईएएनएस)

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ bhaskarhindi.com की टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.

Created On :   13 Dec 2022 1:00 AM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story