यूपी की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे जयंत चौधरी?

Jayant Chaudhary will play an important role in UP politics?
यूपी की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे जयंत चौधरी?
यूपी विधानसभा चुनाव 2022 यूपी की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे जयंत चौधरी?

डिजिटल डेस्क, लखनऊ। उत्तर प्रदेश में पहले दो चरणों का मतदान पूरा होने के साथ ही राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के अध्यक्ष जयंत चौधरी की लड़ाई लगभग खत्म हो गई है। अब सवाल यह है कि क्या जयंत चौधरी, जो पिछले साल अपने पिता चौधरी अजीत सिंह के निधन के बाद चुनावी राजनीति में पहली बार स्वतंत्र पदार्पण कर रहे हैं, पार्टी के लिए खोई हुई जमीन फिर से हासिल करेंगे और एक राजनीतिक ताकत के रूप में उभरेंगे? जयंत के सामने न केवल अपने पिता, बल्कि दादा और पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत चौधरी चरण सिंह की विरासत को आगे बढ़ाने की चुनौती है।

2014 के बाद से रालोद के आधार और उसकी लोकप्रियता में गिरावट आई है, जब मुजफ्फरनगर दंगों के बाद अधिकांश जाट भाजपा के साथ चले गए थे। साल 2017 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनावों में इस ओर रुझान और मजबूत हुआ और रालोद राज्य की राजनीति में पूरी तरह से किनारे हो गया।

हालांकि पिछले पांच वर्षों में जयंत पश्चिमी यूपी के गांवों का दौरा कर रहे हैं, खाप नेताओं से मिल रहे हैं और जाटों के साथ अपने संबंधों को सुधार रहे हैं। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ सालभर के किसानों के आंदोलन ने रालोद को खोई हुई जमीन वापस पाने का मौका दिया है। जयंत ने आंदोलन को समर्थन दिया और किसानों ने भी उनकी उपस्थिति से नाराजगी नहीं जताई, जब उनकी ओर से अन्य राजनीतिक दलों को दूर रहने के लिए कहा गया था।

जयंत को अब अपने पिता के निधन के बाद जाटों की सहानुभूति है और उनके समर्थक नए जाट-मुस्लिम मिलन से काफी हद तक उत्साहित हैं। इस लिहाज से रालोद के लिए मौसम अनुकूल रहा है। बागपत के एक किसान सर्वेश त्यागी कहते हैं, वह चौधरी परिवार का छोरा (बेटा) है और उसकी देखभाल करना हमारी जिम्मेदारी है, क्योंकि उसके परिवार में कोई बड़ा नहीं बचा है। मैं और कई अन्य, उसे एक बेटे के रूप में देखते हैं और जब भी जरूरत होगी हम उसका मार्गदर्शन करेंगे। जयंत 2014 में भाजपा की हेमा मालिनी से अपनी लोकसभा सीट हार गए थे और उनकी पार्टी चुनाव में कोई भी करिश्मा दिखाने में नाकाम रही थी।

2017 में, रालोद ने छपरौली में एक सीट जीती थी, लेकिन उनकी पार्टी का एकमात्र विधायक 2018 में भाजपा में शामिल हो गया। रालोद के प्रवक्ता अनिल दुबे कहते हैं, भाजपा के शीर्ष नेताओं ने जयंत को लुभाने की कोशिश की, और वे रालोद-सपा गठबंधन को तोड़ने में नाकाम रहे। इस बात से जाहिर होता है कि भाजपा हमारे नेता की लोकप्रियता से डरी हुई है। इस चुनाव के बाद रालोद एक ताकत के रूप में फिर से उभरने जा रही है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर रालोद ने भाजपा के साथ गठबंधन किया होता तो उसे और अधिक लाभ हो सकता था, लेकिन जाहिर तौर पर जयंत ने किसानों के मूड पर प्रतिक्रिया दी और गठबंधन के लिए समाजवादी पार्टी को चुना।

राजनीतिक भविष्य बताने वालों का यह भी मानना है कि अगर चुनाव त्रिशंकु होते हैं तो जयंत चौधरी राज्य की राजनीति में महत्वपूर्ण नेता के रूप में उभर सकते हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षक ने कहा, अगर किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है, तो सपा और भाजपा दोनों जयंत चौधरी तक पहुंचेंगे और अगर रालोद को पर्याप्त संख्या में सीटें मिलती हैं और वह ऐसी स्थिति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

(आईएएनएस)

Created On :   15 Feb 2022 5:00 PM GMT

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