विधानसभा चुनाव 2023: धौलपुर में राजपूत,जाटव, मीणा,गुर्जर,कुशवाह और ब्राह्णण वोटर्स तय करते है हार जीत

धौलपुर में राजपूत,जाटव, मीणा,गुर्जर,कुशवाह और ब्राह्णण वोटर्स तय करते है हार जीत
  • धौलपुर जिले में चार विधानसभा सीट
  • मीणा, एससी, राजपूत और गुर्जर समाज का दबदबा
  • पूर्व सीएम वसुंधरा राजे सिंधिया का गृह जिला

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। धौलपुर जिले में चार विधानसभा सीट बसेड़ी,बारी,धौलपुर,राजाखेड़ा आती है। चुनाव में बीजेपी, कांग्रेस और बीएसपी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलता है। जिले में मीणा, एससी , राजपूत और गुर्जर समाज के वोटर्स का अधिक दबदबा है। करौली धौलपुर जिले में करीब 22 फीसदी एससी और करीब 18 फीसदी एसटी वोटर्स है। जिले में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है, चंबल नदी, डांग और दस्यु प्रभावित इलाका होने के कारण इलाका विकास में पिछड़ा हुआ है। मुख्य रेल मार्ग से कनेक्ट होने के बावजूद जिस कधर विकास होना चाहिए उस तरह नहीं हुआ। जिले में रेत और पत्थरों का अवैध उत्खनन खूब होता है।

बसेड़ी विधानसभा सीट

2018 में कांग्रेस से खिलाडी लाल बैरवा

2013 में बीजेपी से रानी सिलोतिया

2008 में बीजेपी से सुखराम

बसेड़ी विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। 2008 में परिसीमन के बाद बयाना से अलग होकर बसेड़ी सीट अस्तित्व में आई। 2008 और 2013 में यहां से बीजेपी ने और 2018 में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। यहां एससी वोटर्स का दबदबा है, इसके अलावा मीणा और ओबीसी मतदाता भी निर्णायक भूमिका में होते है, ओबीसी में प्रमुख वोटर्स कुशवाह और गुर्जर समाज से है। 35 हजार जाटव, 30 हजार मीणा, 28 हजार राजपूत, 20 हजार ब्राह्मण, 20 हजार गुर्जर, 20 हजार कुशवाह, 12 हजार मुस्लिम, 6 हजार वैश्य, 6 हजार कोली, 6 हजार कश्यप और 15 हजार अन्य जाति के मतदाता हैं.

बसेड़ी विधानसभा का ज्यादातर हिंसा डांग है,क्षेत्र की गिनती पिछड़े इलाके के तौर पर होती है। ग्रामीण विधानसभा होने के कारण अधिकतर लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती,रेत खनन और पत्थर खनन है। यहां का दमोह झरना मुख्य पर्यटन स्थल है। यहां की जमीन के अंदर विश्व प्रसिद्ध धौलपुर स्टोन का अथाह भण्डार छिपा है जो लोगों के लिए रोजगार का साधन है। इलाके में प्राचीन समय के बौद्ध मठ भी पाए गए है।

बाड़ी विधानसभा सीट

2018 में कांग्रेस से गिरराज सिंह

2013 में कांग्रेस से गिरराज सिंह

2008 में बीएसपी से गिरराज सिंह

बाडी़ विधानसभा सीट पर कुशवाह और जाटव वोटर्स की तादाद सबसे अधिक है, जिसके चलते चुनाव में इस समुदाय के वोटर्स का प्रभाव अधिक देखने को मिलता है। इनके अलावा गुर्जर, ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य समुदाय का वोट भी चुनाव में अहम भूमिका अदा करता है। सीट को कांग्रेस का गढ़ कहा जाता है क्योंकि अब तक हुए चुनावों में 10 बार कांग्रेस, एक- एक बार बीजेपी और बीएसपी को जीत मिली है। जबकि तीन बार निर्दलीय प्रत्याशी ने बाजी मारी है।

धौलपुर विधानसभा सीट

2018 में बीजेपी से शोभारानी कुशवाह

2013 में बीएसपी से बीएल कुशवाह

2008 में बीजेपी से अब्दुल सगीर खान

राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी की दिग्गज नेता वसुंधरा राजे सिंधिया का गृह जनपद होने के नाते यहां बीजेपी का अधिक वर्चस्व है। हालांकि चुनाव में बीजेपी, कांग्रेस और बीएसपी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलती है।

आपको बता दें 2016 में हुए उपचुनाव में शोमारानी कुशवाह ने बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर जीत दर्ज की थी। इस बार शोभारानी कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में है। इनके पति बनवारी लाल कुशवाह 2013 में बीएसपी के हाथी पर सवार होकर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे।

राजाखेड़ा विधानसभा सीट

2018 में कांग्रेस से रोहित बोहरा

2013 में कांग्रेस से प्रद्युमन सिंह

2008 में बीजेपी से रविंद्र सिंह बोहरा

2003 में कांग्रेस से प्रद्युमन सिंह

1998 में कांग्रेस से प्रद्युमन सिंह

1990 में कांग्रेस से प्रद्युमन सिंह

1990 से लेकर अब तक 2008 के विधानसभा चुनाव को छोड़ दिया जाए तो यहां से हर बार कांग्रेस बाजी मारती आई है। 2008 में बीजेपी से रविंद्र सिंह बोहरा ने यहां जीत दर्ज की थी। राजाखेड़ा में सबसे अधिक वोट राजपूत समाज के लगभग 40 हजार हैं. इसके बाद ब्राह्मण और जाटव 25-25 हजार के लगभग आते हैं. कुशवाह, गुर्जर, लोधी, निषाद, त्यागी सहित अन्य जातियों के वोट भी अच्छी संख्या में है।

Created On :   26 Oct 2023 1:36 PM GMT

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