भास्कर एक्सक्लूसिव: बिहार में किस पार्टी का कितना दबदबा? ग्राफ की मदद से चंद सेकंड में समझें राज्य का चुनावी समीकरण

बिहार में किस पार्टी का कितना दबदबा? ग्राफ की मदद से चंद सेकंड में समझें राज्य का चुनावी समीकरण
  • बिहार में इस साल है विधानसभा चुनाव
  • राज्य में अभी से ही सियासत तेज
  • आरजेडी और अन्य पार्टी लगा रही पूरा जोर

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बिहार में इस साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, जिसे लेकर सियासत तेज है। सभी पार्टियों ने अभी से ही तैयारियां तेज कर दी है। राज्य में रैली का दौर भी अभी से शुरू हो गया है। अगर सब कुछ ठीक रहता है, तो नवंबर के आखिर तक विधानसभा चुनाव संपन्न हो जाएंगे। राज्य में इस वक्त एनडीए की सरकार है और नीतीश कुमार सीएम हैं। हालांकि, राज्य में कई सालों से हंग असेंबली का पैटर्न देखने को मिला है। ऐसे में समझते हैं कि इस बार के बिहार चुनाव में कौन-सी पार्टी चुनावी रैली के दौरान अपना दमखम दिखाते नजर आएंगे।

आरजेडी का रहेगा दबदबा!

पिछले बार साल 2020 के बिहार विधासनभा चुनाव के दौरान आरजेडी सबसे ज्यादा सीट जीतकर राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनेगी। आरजेडी ने पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के नेतृत्व में पिछले चुनाव में 75 सीट जीती थीं। राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की स्थापना 5 जुलाई 1997 को दिल्ली में लालू प्रसाद यादव ने की थी। यह पार्टी जनता दल से टूटकर बनी। इसके बाद लालू पर चारा घोटाले के आरोपों के कारण बिहार के मुख्यमंत्री पद छोड़ने का दबाव बढ़ा। लालू ने जनता दल छोड़कर आरजेडी का गठन किया, जिसमें रघुवंश प्रसाद सिंह, कांति सिंह सहित 17 लोकसभा और 8 राज्यसभा सांसद शामिल हुए।

आरजेडी का मुख्य आधार बिहार में रहा, जहां इसने सामाजिक न्याय, पिछड़े वर्गों, दलितों और अल्पसंख्यकों के उत्थान पर जोर दिया। लालू प्रसाद यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी के नेतृत्व में पार्टी ने 1997 से 2005 तक बिहार में शासन किया। इस दौरान लालू की "जंगल राज" छवि विवादास्पद रही, जिसमें कानून-व्यवस्था और भ्रष्टाचार के आरोप प्रमुख थे।

2000 के दशक में आरजेडी यूपीए गठबंधन का हिस्सा बनी और केंद्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 2013 में चारा घोटाले में लालू की सजा के बाद पार्टी कमजोर हुई, लेकिन उनके बेटों तेजस्वी और तेजप्रताप यादव ने नेतृत्व संभाला। 2024 तक, आरजेडी बिहार में विपक्षी महागठबंधन की प्रमुख पार्टी है, जो सामाजिक समावेश और क्षेत्रीय मुद्दों पर सक्रिय है।

जेडीयू करेगी वापसी!

पिछले चुनाव में एनडीए की ओर से नीतीश कुमार की पार्टी केवल 43 सीटों पर सिमट कर रह गई थी। जनता दल (यूनाइटेड) (जेडीयू) की स्थापना 30 अक्टूबर 2003 को हुई, जब जनता दल से अलग हुए समता पार्टी और अन्य नेताओं ने मिलकर इसे बनाया। इसका गठन नीतीश कुमार और जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्व में हुआ, जो बिहार में सामाजिक न्याय और सुशासन पर केंद्रित था। जेडीयू का आधार मुख्य रूप से बिहार और झारखंड में रहा। 2005 में नीतीश कुमार के नेतृत्व में जेडीयू ने बिहार में एनडीए गठबंधन के साथ सरकार बनाई, जिसने लालू प्रसाद यादव के शासन को समाप्त किया। नीतीश का सुशासन मॉडल विकास और कानून-व्यवस्था के लिए प्रसिद्ध हुआ।

2013 में जेडीयू ने एनडीए से नाता तोड़ा, लेकिन 2017 में फिर गठबंधन किया। 2022 में जेडीयू ने महागठबंधन के साथ सरकार बनाई, जो बाद में टूट गई। 2024 में जेडीयू फिर एनडीए में शामिल हुई। पार्टी का फोकस पिछड़े वर्ग, अल्पसंख्यक और विकास पर रहा।

जीतनराम मांझी की पार्टी भी कर सकती है खेल

हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) की स्थापना 8 मई 2015 को जीतन राम मांझी ने की, जब उन्हें जनता दल (यूनाइटेड) से निष्कासित किया गया। मांझी, जो 2014-2015 में बिहार के मुख्यमंत्री रहे, ने नीतीश कुमार के नेतृत्व में जेडीयू से अलग होकर यह पार्टी बनाई। इसका गठन दलित और महादलित समुदायों, विशेष रूप से मुसहर और भुइयां, के हितों को बढ़ावा देने के लिए हुआ। पार्टी का मुख्य आधार बिहार है, जहां यह सामाजिक न्याय और सुशासन के मुद्दों पर जोर देती है।

2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में हम ने एनडीए के साथ गठबंधन किया, लेकिन 21 सीटों पर लड़ने के बावजूद केवल एक सीट जीती, जो मांझी ने स्वयं जीती। 2024 में मांझी ने गया लोकसभा सीट से जीत हासिल की और केंद्र में एमएसएमई मंत्री बने। हम की रणनीति बिहार और झारखंड में प्रभाव बढ़ाने की रही, जहां मांझी ने 2024 में 10 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की। पार्टी चार विधायकों के साथ बिहार में एनडीए की महत्वपूर्ण सहयोगी है, जो गठबंधन की स्थिरता में अहम भूमिका निभाती है।

चिराग पासवान की पार्टी का हाल पिछले चुनाव था बेहाल

पिछले चुनाव के दौरान चिराग पासवान की पार्टी ने एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ा था। इसके बाद उसे केवल 1 ही सीट मिल पाई थी। हालांकि, इस बार चिराग पासवान की पार्टी एलजेपीआर इस बार पहली बार बिहार विधानसभा चुनाव में उतरने जा रही है। साथ ही, वह इस बार एनडीए के साथ मिलकर भी चुनाव लड़ने जा रही है।

लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) (एलजेपीआर) की स्थापना 2021 में चिराग पासवान के नेतृत्व में हुई, जब मूल लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) का विभाजन हुआ। यह विभाजन रामविलास पासवान के निधन के बाद उनके भाई पशुपति कुमार पारस और चिराग के बीच नेतृत्व विवाद के कारण हुआ। निर्वाचन आयोग ने मूल पार्टी के प्रतीक को फ्रीज कर दोनों गुटों को नए नाम और प्रतीक दिए। एलजेपीआर का फोकस दलित, पिछड़े वर्ग और सामाजिक न्याय पर है।

2023 में नागालैंड विधानसभा चुनाव में एलजेपीआर ने 15 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, 2 सीटें (पुघोबोटो और टोबू) जीतीं और 8.65% वोट शेयर के साथ वहां "राज्य पार्टी" का दर्जा प्राप्त किया। 2024 के लोकसभा चुनाव में बिहार में एनडीए के साथ गठबंधन में 5 सीटों (हाजीपुर, जमुई, खगड़िया, समस्तीपुर, वैशाली) पर लड़ा और सभी जीता। चिराग पासवान केंद्रीय मंत्री बने।

बीजेपी का हाल कैसा रहेगा?

2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी एनडीए (जेडीयू, हम, एलजेपीआर) के जरिए महागठबंधन को कड़ी टक्कर देने की उम्मीद की जा रही है। बीजेपी विकास, सुशासन और नीतीश कुमार के साथ गठबंधन पर जोर दे रही है, लेकिन महागठबंधन (आरजेडी, कांग्रेस, लेफ्ट) और प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी को चुनौती पेश कर रही हैं। राज्य में जातिगत समीकरण, बेरोजगारी और बाढ़ जैसे मुद्दे अहम रहेंगे। हाल के सर्वे में बीजेपी को 25-33% वोट शेयर मिलने की उम्मीद है।

2020 में बीजेपी ने 110 सीटों पर चुनाव लड़ा और 74 सीटें जीतीं, जिसका वोट शेयर 23.1% था। एनडीए ने 125 सीटें जीतकर सरकार बनाई, जिसमें जेडीयू ने 43, हम और वीआईपी पार्टी ने 4-4 सीटें जीतीं। वहीं, महागठबंधन ने 110 सीटें जीतीं, जिसमें आरजेडी को 75, कांग्रेस को 19 और लेफ्ट को कुल 16 सीटें मिली थीं।

बता दें कि, इस बार के भी बिहार विधासनभा चुनाव में लेफ्ट और अन्य कई पार्टियों का भी दबदबा रहने वाला है। इसमें चुनावी रणनीतिकार और सलाहकार प्रशांत किशोर की नई नवेली जन सुराज पार्टी को भी कम नहीं आंका जा सकता है। यह पार्टी भी पूरे जोरों के साथ बिहार चुनाव की दिशा बदलने में लगी हुई है।

Created On :   29 May 2025 5:07 PM IST

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