आयुर्वेदिक औषधीय पौधों का चिकित्सकीय उपयोग एवं खरीफ फसल बुआई तैयारी पर ऑनलाईन प्रशिक्षण सम्पन्न!

Online training completed on medical use of Ayurvedic medicinal plants and preparation of Kharif crop sowing!
आयुर्वेदिक औषधीय पौधों का चिकित्सकीय उपयोग एवं खरीफ फसल बुआई तैयारी पर ऑनलाईन प्रशिक्षण सम्पन्न!
आयुर्वेदिक औषधीय पौधों का चिकित्सकीय उपयोग एवं खरीफ फसल बुआई तैयारी पर ऑनलाईन प्रशिक्षण सम्पन्न!

डिजिटल डेस्क | सिवनी कृषि विज्ञान केंद्र सिवनी के खाद्य विज्ञान विशेषज्ञ जी.के.राणा द्वारा आयुर्वेदिक औषधीय पौधों का चिकित्सकीय उपयोग विषय पर ऑनलाईन प्रशिक्षण दिया गया। जिसमें जिले के लगभग 35 किसान भाईयों एवं बहनों ने भाग लिया। प्रशिक्षण आयुर्वेदिक औषधियों का इतिहास, महत्व तथा रोगों से लड़ने की क्षमता के बारे में बताया गया जिसमें मुख्यतः आयुर्वेद जो कि संस्कृत पर दो शब्दों आयुर एवं वेद से मिलकर बना है। जिसमें आयुर का अर्थ है दीर्घायु एवं वेद का अर्थ विज्ञान या पद्धिति है। आज हम जिस जीवन शैली को जी रहे है वह हमारे तथा समाज के लिए प्रतिकूल साबित होती जा रही है। जिसके लिए कुछ छोटे-छोटे बदलाव हमारे जीवन में हमारे स्वास्थय के लिए लाभकारी व महत्वपूर्ण अवश्य होंगे।

विश्व में लगभग 500 वर्ष पुरानी सभ्यताओं में भारत का सबसे पुराना चिकित्सकीय ज्ञान है। जो मुख्यतः वनस्पतियों पर आधारित है और इन्हीं महत्वों को ध्यान में रखते हुए भारतीय सभ्यता में पेड पौधों की पूजा अर्चना की जाती है। जिससे की उनका संरक्षण, विस्तार प्रवर्धन व संवर्धन हो सके एवं वे अगली पीढी के लिए विरासत के रूप में मिल सके। आज हम कोरोना जैसी महामारी से जूझ रहे है जिसमें मुख्यतः गिलोय का काढा, तुलसी का अर्क, हल्दी जीरा, धनिया और लहसुन जैसे मसाले, तुलसी, दालचीनी, काली मिर्च, शुण्ठी, मुनक्का से निर्मित हर्बल चाय/काढा दिन मे एक से दो बार पिये। गोल्डन मिल्क 150 मि.ली. गर्म दूध में आधा चम्मच हल्दी मिलाकर दिन में एक या दो बार लेना चाहिए। इसमें से अधिकतर औषधियां हमारे रसोई में भी उपलब्ध रहती है।

जिनका हम उपयोग कर अपने शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाकर कोरोना जैसी महामारी से लड सकते है। साथ ही केंद्र के मृदा वैज्ञानिक डॉ के.के. देशमुख द्वारा कृषकों को मृदा परीक्षण का महत्व मृदा परीक्षण के आधार पर अनुषंसित पौध पोषक तत्वों का उपयोग करने, ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई का महत्व आदि पर जानकारी दी गयी। इनके द्वारा बताया गया कि फसल अवषेष प्रबंधन से पौध पोषक तत्वों का पुर्नचक्रण होता है जिससे कि लगभग 60-70 प्रतिशत पौध पोषक तत्व मृदा में पुनः पहुंच जाते है जिनका उपयोग आगामी बोई जाने वाली फसलों को होता है। सूक्ष्म पौध पोषक तत्वों का उपयोग मृदा परीक्षण के आधार पर ही किया जाये। जिंक का उपयोग तीन वर्ष में एक बार या हर चैथी फसल में किया जाना चाहिए। जिंक को फासफोरस युक्त उर्वरक के साथ मिलाकर फसलों में उपयोग नहीं करना चाहिए। प्रशिक्षण कार्यक्रम में रिलायंस फाउंडेशन सिवनी के टीम लीडर श्री दिव्या पाण्डेय एवं उनकी टीम का सहयोग रहा।

Created On :   26 May 2021 1:12 PM IST

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