शिवसेना के बागी नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, अयोग्य ठहराए जाने की कार्यवाही का फ्लोर टेस्ट पर कोई असर नहीं पड़ेगा

Rebel leaders of Shiv Sena told in Supreme Court, disqualification proceedings will have no effect on floor test
शिवसेना के बागी नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, अयोग्य ठहराए जाने की कार्यवाही का फ्लोर टेस्ट पर कोई असर नहीं पड़ेगा
महाराष्ट्र सियासी संकट शिवसेना के बागी नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, अयोग्य ठहराए जाने की कार्यवाही का फ्लोर टेस्ट पर कोई असर नहीं पड़ेगा

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। शिवसेना के बागी विधायकों ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि 16 विधायकों के खिलाफ अयोग्यता की कार्यवाही का गुरुवार को होने वाले फ्लोर टेस्ट पर कोई असर नहीं पड़ेगा। इसके साथ ही बागी नेताओं ने कहा कि असल में वे ही शिवसेना का प्रतिनिधित्व करते हैं और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना तो एक आशाहीन अल्पमत में है। बागी विधायकों का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल ने न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया कि शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि विधायकों के खिलाफ अयोग्यता की कार्यवाही का सदन में फ्लोर टेस्ट पर कोई असर नहीं पड़ता है।

उन्होंने शिवसेना के बागी नेताओं के हवाले से कहा, हम शिवसेना हैं और हम शिवसेना (अन्य अल्पसंख्यक नहीं) का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने अदालत को बताया कि 39 असंतुष्ट विधायक हैं, जिनमें से 16 को अयोग्यता नोटिस दिया गया है और इस बात पर जोर दिया गया है कि लोकतांत्रिक प्रणाली सदन के पटल पर होती है। कौल ने कहा कि उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना पार्टी के भीतर ही एक निराशाजनक अल्पमत में है। उन्होंने कहा कि खरीद-फरोख्त को रोकने का सबसे अच्छा तरीका फ्लोर टेस्ट कराना है।

कौल ने कहा कि अगर फ्लोर टेस्ट में अधिक देरी होती है, तो संविधान को नुकसान होगा। पीठ ने तब पूछा कि क्या मुख्यमंत्री जिस क्षण अनिच्छा दिखाते हैं, वह प्रथम दृष्टया यह विचार देता है कि उन्होंने सदन का विश्वास खो दिया है। कौल ने तब शिवराज सिंह चौहान (2020) में शीर्ष अदालत के फैसले का हवाला दिया, जिसमें विश्वास मत इस मुद्दे से एक अलग क्षेत्र में संचालित होता है कि क्या विधायकों ने इस्तीफे का स्वैच्छिक कार्य शुरू किया है या दलबदल विरोधी कानून के प्रकोप को (संविधान की दसवीं अनुसूची) झेला है।

उन्होंने कहा कि जब तक स्पष्ट मनमानी न हो, एक राज्यपाल को शक्ति परीक्षण के लिए बुलाने के लिए पूरी तरह से अधिकृत माना गया है और यह मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के अधीन नहीं है। शिवसेना के मुख्य सचेतक सुनील प्रभु का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिया कि अध्यक्ष के हाथ बंधे समय फ्लोर टेस्ट होना उचित नहीं होगा और अदालत से आग्रह किया कि या तो अध्यक्ष को अयोग्यता की कार्यवाही का फैसला करने की अनुमति दी जाए या फिर फ्लोर टेस्ट न होने दिया जाए। मामले में सुनवाई चल रही है।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को होने वाले फ्लोर टेस्ट के खिलाफ शिवसेना के मुख्य सचेतक (चीफ व्हिप) सुनील प्रभु की याचिका पर बुधवार को आदेश सुरक्षित रख लिया। सुनवाई के दौरान प्रभु ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई अपनी याचिका में महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार को गुरुवार (30 जून) को बहुमत साबित करने के लिए महाराष्ट्र के राज्यपाल के निर्देश को अवैध करार दिया। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सुनील प्रभु से सवाल किया कि अगर किसी सरकार ने सदन में बहुमत खो दिया है और विधानसभा अध्यक्ष को समर्थन वापस लेने वालों को अयोग्य घोषित करने के लिए कहा जाता है, तो क्या राज्यपाल को फ्लोर टेस्ट का इंतजार करना चाहिए?

प्रभु का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की अवकाश पीठ के समक्ष दलील दी कि राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करने के लिए बाध्य हैं। उन्होंने कहा कि राज्यपाल मंत्रियों की सलाह पर काम कर सकते हैं या नहीं कर सकते हैं, लेकिन वे किसी भी हाल में विपक्ष की सलाह पर काम नहीं कर सकते हैं। सिंघवी ने कहा कि अगर गुरुवार को बागी विधायकों को वोट देने की अनुमति दी जाती है, तो अदालत उन विधायकों को वोट देने की अनुमति देगी, जिन्हें बाद में अयोग्य घोषित किया जा सकता है, जो लोकतांत्रिक सिद्धांतों के खिलाफ है।

इस पर, बेंच ने सिंघवी से पूछा कि मान लीजिए कि एक सरकार को पता है कि उन्होंने सदन में बहुमत खो दिया है और अध्यक्ष को समर्थन वापस लेने वालों को अयोग्यता नोटिस जारी करने के लिए कहा जाता है। फिर उस समय, राज्यपाल को फ्लोर टेस्ट बुलाने की प्रतीक्षा करनी चाहिए या फिर वह स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकते हैं? पीठ ने पूछा, राज्यपाल को क्या करना चाहिए? क्या वह अपने विवेक का प्रयोग कर सकते हैं? सुनील प्रभु ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर महाराष्ट्र के राज्यपाल के उस निर्देश को चुनौती दी है, जिसमें मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को गुरुवार को बहुमत साबित करने के लिए कहा गया है। शिवसेना की इस याचिका में दलील दी गई है कि अभी बागी विधायकों के खिलाफ अयोग्य ठहराए जाने की कार्रवाई पूरी नहीं हुई है, ऐसे में बहुमत साबित करने का निर्देश पारित नहीं किया जाना चाहिए।

 

सोर्स- आईएएनएस

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Created On :   29 Jun 2022 4:30 PM GMT

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