Pune City News: फैमिली डॉक्टर से ज्यादा जरूरी होगा प्राकृतिक खेती करने वाला किसान

फैमिली डॉक्टर से ज्यादा जरूरी होगा प्राकृतिक खेती करने वाला किसान
  • प्राकृतिक खेती पर आधारित सम्मेलन में बोले राज्यपाल आचार्य देवव्रत
  • केंचुए से मिलते हैं 17 हजार पोषक तत्व
  • पारंपरिक बीजों का संरक्षण जरूरी

भास्कर न्यूज, पुणे। हमारे देश में रासायनिक खेती के कारण मानव स्वास्थ्य के सामने गंभीर चुनौती खड़ी हो गई है। इससे निपटने के लिए प्राकृतिक खेती प्रभावी विकल्प है और आने वाली पीढ़ियों का स्वास्थ्य सुरक्षित रखने के लिए हर परिवार को फैमिली डॉक्टर से भी अधिक प्राकृतिक खेती करने वाला किसान आवश्यक होगा।

यह बात राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने मंगलवार को पुणे में कही। वे शिवाजीनगर स्थित कृषि महाविद्यालय में आयोजित एक दिनी प्राकृतिक खेती सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर बोल रहे थे। राज्यपाल ने कहा कि मिट्टी के सूक्ष्म जीव पोषक तत्व पौधों तक पहुंचाते हैं, लेकिन रासायनिक खेती में ये सूक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं, जिससे मिट्टी की गुणवत्ता घटती है। यूरिया में मौजूद नाइट्रोजन से नाइट्रस ऑक्साइड बनता है, जिससे कैंसर जैसे रोग बढ़ रहे हैं। इससे मुक्ति केवल प्राकृतिक खेती ही दे सकती है।

केंचुए से मिलते हैं 17 हजार पोषक तत्व

उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती के कारण मिट्टी में बढ़ने वाले केंचुए 10 फीट तक गहरे छिद्र बनाते हैं, जिससे बरसाती पानी जमीन में समाता है। देसी केंचुए जीवनकाल में 40 से 50 हजार केंचुए पैदा करते हैं। उनके जीवनचक्र के अंत में मिट्टी को 17 प्रकार के पोषक तत्व मिलते हैं। जीवामृत के उपयोग से मिट्टी में सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ती है। देसी गाय के गोबर में उपयोगी जीवाणु अत्यधिक होते हैं। गोबर, गोमूत्र, गुड़, दाल का आटा और बड़े वृक्षों के नीचे की रसायन रहित मिट्टी मिलाकर जीवामृत पांच दिनों में तैयार होता है। बचे हुए गोबर से घन जीवामृत बनाया जा सकता है। इससे उत्पादन बढ़ता है और पौष्टिक अन्न प्राप्त होता है।

पारंपरिक बीजों का संरक्षण जरूरी

आचार्य देवव्रत ने कहा कि रासायनिक खेती की पद्धति पश्चिमी देशों से आई है। कभी भारतीय मिट्टी में कार्बनिक कार्बन की मात्रा लगभग 1.5% थी, जो अब 0.5% से भी कम रह गई है। यह तत्व मिट्टी के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और इसके कम होने से भूमि बंजर होने का खतरा बढ़ गया है। साथ ही रासायनिक खेती खर्चीली होने से किसान कर्ज में डूब रहे हैं। पारंपरिक बीजों को संरक्षित नहीं किया गया तो विदेशी बीजों पर निर्भरता बढ़ेगी। इसलिए कृषि विश्वविद्यालयों को पारंपरिक बीजों पर अधिक शोध कर उन्हें जलवायु परिवर्तन व रोगों के प्रति अधिक प्रतिरोधक बनाने की आवश्यकता है।

किसानों को समझाएं प्राकृतिक खेती का महत्व

कृषि मंत्री दत्तात्रय भरणे ने कहा कि आज कृषि बाजार में उत्पादन से अधिक गुणवत्ता को महत्व दिया जा रहा है, इसलिए खेती में बदलाव की जरूरत है। वैज्ञानिक और कृषि विश्वविद्यालय किसानों को प्राकृतिक खेती का महत्व समझाएं। कृषि विभाग भविष्य में प्राकृतिक खेती के प्रसार के लिए सकारात्मक कार्य करेगा। उन्होंने कहा कि राज्यपाल ने गुरुकुल की 200 एकड़ भूमि पर प्राकृतिक खेती सफलतापूर्वक की है। उनका अनुभव राज्य के लिए मार्गदर्शक सिद्ध होगा। कृषि विभाग के प्रधान सचिव विकासचंद्र रस्तोगी ने राज्य में प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन देने संबंधी जानकारियां देते हुए कहा कि महाराष्ट्र ने इस दिशा में प्रयास शुरू किए हैं और प्राकृतिक खेती का क्षेत्र बढ़ाने के लिए और अधिक प्रयास किए जाएंगे।

यह भी बोले महामहिम…

जंगल के पेड़ बिना किसी रासायनिक खाद के भी सदा हरे रहते हैं, इसलिए हमें प्रकृति की ओर लौटना चाहिए।

किसानों को फसलों की हानि से उबारने के लिए पशुपालन उत्तम पूरक व्यवसाय है। पशु संवर्धन विभाग को अधिक दूध देने वाली देसी गायों की नस्ल विकसित करने के लिए अधिक शोध करना चाहिए।

सम्मेलन के माध्यम से प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए सार्थक सुझाव सामने आना चाहिए।

Created On :   19 Nov 2025 3:08 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story