Chhindwara News: ढह रही ग्राम खमरा की पुरातन बावड़ी, रखरखाव नहीं हुआ तो खत्म हो जाएगा अस्तित्व

ढह रही ग्राम खमरा की पुरातन बावड़ी, रखरखाव नहीं हुआ तो खत्म हो जाएगा अस्तित्व
  • बावड़ी कब बनी और किसने बनाया इसका कोई रिकार्ड ग्राम पंचायत में नहीं है।
  • ग्रामीणों के मुताबिक बारह महीने बावड़ी में पानी रहता है।

Chhindwara News: बावडिय़ों के गढ़ देवगढ़ की और बड़चिचौली की बावड़ी के अलावा जिले में कई स्थानों पर पुरातन बावडिय़ां हैं। इन्हीं में से एक बिछुआ ब्लॉक के ग्राम खमरा की पुरातन बावड़ी अपने अस्तित्व को बचाने की गुहार लगा रही है। गांव के बीच में स्थित उक्त बावड़ी ढह रही है। अभी एक हिस्सा ढहा है। रखरखाव नहीं हुआ तो आने वाले दिनों में खमरा की उक्त बावड़ी का अस्तित्व ही समाप्त हो सकता है।

पानी इतना कि बावड़ी से पूरा गांव पानी भरता है, यहां तक कि खेतों में भी कुछ लोग पंप के जरिए पानी खींच ले जाते हैं। ग्रामीणों के मुताबिक बारह महीने बावड़ी में पानी रहता है। बावड़ी कब बनी और किसने बनाया इसका कोई रिकार्ड ग्राम पंचायत में नहीं है।

जल गंगा संरक्षण अभियान...बावड़ी की सुध नहीं

जिले में जल गंगा संरक्षण अभियान चल रहा है। विभिन्न विभागों के जरिए अभियान के तहत प्राथमिकता से नदियों, नालों, तालाबों व अन्य जल स्त्रोतों के संरक्षण का कार्य कराया जा रहा है। मंत्री, नेता और अफसर अभियान में फोटो तो खिंचवा रहे हैं, लेकिन अब तक किसी का ध्यान खमरा की बावड़ी या उसके जैसे दूसरे पुराने जल स्त्रोतों की ओर नहीं गया है।

बुजुर्ग कहते हैं बचपन से देख रहे बावड़ी

खमरा के बुजुर्ग ग्रामीण सुमरन साहू बताते हैं कि जब हम छोटे थे तो पिताजी हमें बावड़ी में नहलाने के लिए ले जाया करते थे। बावड़ी में सीढ़ी से उतरकर आसानी से पानी निकाल लेते हैं। एक तरफ की दीवार ढह गई है। सुधार नहीं हुआ तो पूरी ढह जाएगी।

ग्रामीण गनाराम यादव (77) कहते हैं कि बचपन से गांव में बावड़ी देख रहे हैं। पहले पूरा गांव इस बावड़ी से ही पानी भरता था। पुरानी बावड़ी में सुधार की जरूरत है। ध्यान नहीं दिया तो पूरी धंस जाएगी।

बुजुर्ग घूडऩ चौरसिया (75) कहते हैं कि बावड़ी वर्षों पुरानी है। किसने बनाया इसकी जानकारी गांव में किसी को नहीं है। हमारे पुरखों के जमाने से बावड़ी है। अब इसके संरक्षण की जरूरत है।

जिले में बावडि़यों का इतिहास

जिले में सबसे ज्यादा बावड़ियां देवगढ़ किले व आसपास है। यहां मौजूद सैकड़ों बावड़ियां १६ वीं शताब्दी में गोंड राजाओं ने बनाई थी। देवगढ़ की कुछ बावड़ियों का जीर्णोद्धार किया गया है।

पांढुर्ना के बड़चिचौली की बावड़ी 800 साल पुरानी बताई जाती है। कहा जाता है कि उक्त बावड़ी मुगलकालीन है। उक्त पुरातन बावड़ी को देखने पर्यटक पहुंचते हैं।

Created On :   2 Jun 2025 1:27 PM IST

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