बदलाव की बयार: भीषण गर्मी में पहली बार लहलहाई दूधिया ज्वार

बदलाव की बयार: भीषण गर्मी में पहली बार लहलहाई दूधिया ज्वार

डिजिटल डेस्क, छिंदवाड़ा/सौंसर। बहुफसलीय खेती के लिए ख्याति प्राप्त छिंदवाड़ा जिले के किसान अलग-अलग तरह के नवाचार कर रहे हैं। कुछ ऐसा ही नवाचार सौंसर के किसानों ने किया है जिन्होंने भीषण गर्मी में ज्वार की फसल तैयार कर एक फसल संस्कृति खोज ली है। इस फसल से किसानों को अनाज के साथ गर्मी में पशुओं के लिए कड़बी के रूप में हरा चारा भी मिल रहा है।

आम तौर पर ज्वार की फसल खरीफ सीजन में ही ली जाती है, लेकिन अनियमित बारिश के कारण ज्वार के दाने काले होने या उत्पादन में कमी के चलते किसानों का ज्वार से मोह भंग होने लगा था। सौंसर तहसील में जायद यानी गर्मी में सर्वाधिक मूंगफली और दूसरे नंबर में मूंग का उत्पादन लिया जाता है। ज्वार फसल की पहली बार खेती कर रहे ये किसान क्षेत्र के अन्य किसानों के लिए मॉडल साबित हो रहे हैं। खासियत यह है कि इन किसानों ने स्वयं की प्रेरणा से ज्वार की खेती का नवाचार किया है। गर्मी में ज्वार की फसल लेकर इन किसानों ने मूंगफली व मूंग फसल का विकल्प तैयार कर दिया है।

इन किसानों ने किया प्रयोग

सौंसर निवासी व प्याज का बंपर उत्पादन लेने वाले किसान सेवानिवृत्त शिक्षक सीके सहस्त्रबुद्धे (गुरुजी) ने गुजरखेड़ी स्थित खेत में डेढ़ एकड़ में ज्वार की फसल ली है। हिवराखंडेरायवार में अरविंद वि_लराव मुले व बंडू असुटकर ने एक-एक एकड़ में ज्वार फसल ली है। बीते पांच साल में खरीफ में भुट्टों पर पक्षियों का हमला और फसल को जंगली सुअरों द्वारा नुकसान पहुंचाने से किसानों ने ज्वार फसल से दूरी बना ली थी। जायद में मक्का के उत्पादन को देखकर किसानों ने ज्वार की खेती के नवाचार का निर्णय लिया और उन्हें जबदस्त परिणाम मिला है।

डेढ़ एकड़ में महज २० हजार लागत

किसानों ने चर्चा में बताया कि ज्वार फसल में लागत कम और उत्पादन अधिक है। गर्मी में तेज धूप होने से ज्वार के भुट्टे को पक्षी नुकसान नहीं पहुंचाते वही जंगली सुअरों का प्रकोप कम रहता है। गर्मी के कारण कीट और बीमारी की संभावना कम होती है। किसान सीके सहस्त्रबुद्धे बताते है कि डेढ़ एकड़ में 6 किलो बीज, बोवनी, खरपतवार व मजूदर पर 20 हजार की लागत आई हैं। उत्पादन लगभग 25 क्विंटल यानी प्रति एकड़ लगभग १६ क्विंटल होने का अनुमान है। बाजार में ज्वार के भाव इस समय 4 हजार रुपए प्रति क्विंटल है। यानी ढेड़ एकड़ में लगभग १ लाख रुपए का अनाज प्राप्त होगा। इसके अलावा पशुओं के लिए चारे के रूप में 50 हजार की कड़बी होगी।

किसानों ने ऐसे किया नवाचार

फरवरी माह के पहले पखवाड़े में ज्वार की बोवनी की गई। बोवनी के लिए सीड ड्रिल का सहारा लिया।

लगभग १०० दिन में पांच बार सिंचाई की आवश्यकता पड़ी। तीन माह में फसल में किसी तरह का कीट प्रकोप नहीं हुआ।

खरीफ सीजन की तुलना में फसल में खरपतवार भी बेहद कम रहा इसलिए खरपतवार नाशक की आवश्यकता नहीं हुई।

फसल को पक्षियों से बचाने खेत के आसपास बांस में मछली लटका दी इससे पक्षियों खेतों से दूरी बना ली।

इन फसलों के लिए तैयार हुआ विकल्प

गर्मी में ज्वार की फसल मूंगफली और मंूग फसल के विकल्प बन सकती है।

जो किसान जनवरी माह में आलू या लहसुन की फसल निकालते हैं वे सिंचाई की सुविधा होने पर गर्मी में ज्वार की फसल ले सकते हैं।

दुधारू पशु पालक किसानों के लिए गर्मी की ज्वार दोहरा लाभ देने वाली साबित होगी। प्रति एकड़ औसत १५ क्विंटल ज्वार उत्पादन के साथ किसानों को जून और जुलाई माह तक पौष्टिक चारा उपलब्ध होगा।

इनका कहना है

किसानों ने किए प्रयास में उत्पादन अधिक होने की संभावना है। आगामी वर्ष से किसानों का मागदर्शन करेंगे और बीज उपलब्ध कराने की भी व्यवस्था बनाएंगे।

योगेश भलावी, प्रभारी वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी

Created On :   29 May 2023 12:17 PM IST

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