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जेनेरिक दवाओं की अनिवार्यता पर डॉक्टरों ने जताई नाराजगी
- कौनसी दवाई देनी है, इस पर न लगाएं प्रतिबंध
- केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया को एसोसिएशन ने लिखा पत्र
- वर्तमान प्रक्रिया जारी रहे
डिजिटल डेस्क, मुंबई. डॉक्टरों को मरीजों को केवल जेनेरिक दवाएं ही लिखनी चाहिए। ऐसा न करने पर जुर्माना लगाया जाएगा और डॉक्टरों के प्रैक्टिस करने के लाइसेंस को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया जाएगा। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के इस नए नियम पर डॉक्टरों ने नाराजगी जताई है। डॉक्टरों ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया को भेजे गए पत्र में अपनी नाराजगी जाहिर की है। पत्र में नए नियम से डॉक्टरों सहित मरीजों को आनेवाली दिक्कतों से भी अवगत कराया गया है। मरीजों को कौनसी दवाई देनी है, इस पर डॉक्टरों ने प्रतिबंध न लगाए जाने की मांग की है। देश में स्वास्थ्य देखभाल पर कुल खर्च का एक बड़ा हिस्सा फार्मास्यूटिकल्स पर खर्च होता है। जेनेरिक दवाएं ब्रांडेड दवाओं की तुलना में 30 से 40 प्रतिशत सस्ती होती हैं। इसलिए राष्ट्रीय आयोग ने मरीजों के हितों को ध्यान में रखकर जेनेरिक दवाईयां लिखने को अनिवार्य किया है। आयोग के इस फैसले पर चिकित्सा समुदाय ने आपत्ति जताई है।
दवाई लिखने और खरीदने की वर्तमान प्रक्रिया जारी रहे
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन जूनियर डॉक्टर नेटवर्क के राज्य समन्वयक डॉ. रजत चांडक ने कहा कि यह निर्णय डॉक्टरों के साथ -साथ मरीजों के लिए भी परेशानी भरा है। उन्होंने कहा कि मरीजों को सस्ती दवाइयां मिलनी चाहिए, इसके पक्ष में चिकित्सा समुदाय भी है। लेकिन हर बीमारी के लिए प्रत्येक दवाई का अणु (मॉलिक्यूल) और ग्राम लिखना संभव नहीं है। इससे मरीजों को दवाई खरीदने में और डॉक्टरों को इलाज करने में परेशानी हो सकती है। ऐसी स्थिति में कई बार मरीजों को दवाई की मात्रा भी अधिक दिए जाने का खतरा बना रहेगा। इसलिए एसोसिएशन ने दवाई लिखने और खरीदने की वर्तमान प्रक्रिया को बनाए रखने की मांग की है। एसोसिएशन ने इस आशय का पत्र भी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री को भेजा है।
डॉ. संतोष कदम, महासचिव-इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के मुताबिक जेनेरिक दवाएं न लिखने पर जुर्माना भी लगेगा, ऐसा कहना उचित नहीं है। मरीज को किस समय कौन सी दवा देनी चाहिए, यह डॉक्टर भली भांति जानते हैं। केवल जेनेरिक दवाएं लिखना है, यह आग्रह ठीक है, लेकिन मरीज को कौन सी दवा देनी है, इस पर प्रतिबंध लगाना गलत है।
डॉ. दीपक बैद, पूर्व अध्यक्ष-एसोसिएशन ऑफ मेडिकल कंसल्टेंट्स के मुताबिक जेनेरिक दवाएं लिखी जानी चाहिए। इसे हम स्वीकार करते हैं। लेकिन जेनेरिक दवाई पर मरीज को निर्णय लेने दीजिए। यदि वह ब्रांडेड दवाई वहन नहीं कर सकता, तो वह जेनेरिक दवा लेगा। चिकित्सा आयोग का फैसला डॉक्टरों के अधिकारों पर कुठाराघात है।
डॉ. अविनाश सुपे, पूर्व डीन- केईएम अस्पताल के मुताबिक यह फैसला साल 2002 का है। इस बार इसे लागू करते हुए दंडात्मक प्रावधान किया गया है। जेनेरिक दवाएं लिखने में कोई दिक्कत नहीं है, इसके लिए नागरिकों में व्यापक जागरूकता पैदा करने की जरूरत है। कई लोगों को ब्रांडेड दवाओं और जेनेरिक दवाओं के बीच अंतर बताना होगा। इस बारे में संवाद करके दवाएं लिखने की जरूरत है।
Created On :   16 Aug 2023 5:13 PM IST