बॉम्बे हाई कोर्ट: पत्नी की हत्या के दोषी की आजीवन सजा बरकरार, भिवंडी की निरक्षर आदिवासी महिलाओं की भी सुनी गुहार

पत्नी की हत्या के दोषी की आजीवन सजा बरकरार, भिवंडी की निरक्षर आदिवासी महिलाओं की भी सुनी गुहार
  • अदालत ने न्यूनतम पत्नी की हत्या के दोषी की 20 वर्ष के कारावास की सजा पूरा करने की शर्त हटाई
  • भिवंडी की निरक्षर आदिवासी महिलाओं की हाई कोर्ट ने सुनी गुहार

Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने पत्नी की कुल्हाड़ी मार कर हत्या के दोषी व्यक्ति की आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा है। अदालत ने माना कि व्यक्ति का बेटा मयूर एक विश्वसनीय गवाह है। वह एक स्वाभाविक गवाह है। उसने पति-पत्नी के बीच अक्सर होने वाले झगड़ों के बारे में भी गवाही दी थी। हालांकि अदालत ने उसके खिलाफ न्यूनतम 20 वर्ष के कारावास की सजा पूरा करने की शर्त हटा दी है। न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल और न्यायमूर्ति अद्वैत सेथना की पीठ ने अनिल सीताराम गोसावी की याचिका पर कहा कि यह बिल्कुल स्पष्ट था कि वह अपनी पत्नी से द्वेष रखता था। उससे और उसकी पत्नी के बीच कोई झगड़ा नहीं हुआ था। याचिकाकर्ता का आचरण स्पष्ट रूप से क्रूर है। उसने बिना किसी कारण के प्रतिभा के सिर पर घातक हथियार (कुल्हाड़ी) से दो वार किए। वह घर से यह चिल्लाते हुए बाहर आया कि उसने अपनी पत्नी की हत्या कर दी है और वह दूसरों को भी मार डालेगा। इसलिए हमें नहीं लगता कि यह मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 300 के अपवाद 4 के अंतर्गत आता है। पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने यह साबित कर दिया है कि याचिकाकर्ता ने भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के अंतर्गत दंडनीय अपराध किया है। हम सेशन कोर्ट के न्यायाधीश द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों से सहमत हैं। उन्होंने आरोपी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाती है। हम न्यायाधीश के भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखते हैं। हालांकि उसके न्यूनतम 20 वर्ष के कारावास को पूरा करने की शर्त को हटा दी जाती है। 18 जून 2013 को याचिकाकर्ता की पत्नी प्रतिभा को एक निजी कंपनी में तीसरी पाली में अपनी ड्यूटी पर जाना था। याचिकाकर्ता और प्रतिभा घर पर थे। उनके बच्चे स्कूल से लौट आए थे। उनके बेटे मयूर को होटल जाने के लिए पैसे चाहिए थे। मयूर और प्रतिभा ने बटुआ ढूंढ़ा। मयूर उस बटुए को याचिकाकर्ता को नहीं देना चाहता था। प्रतिभा ने भी याचिकाकर्ता को बटुआ छीनने से रोका। उसी समय याचिकाकर्ता ने एक कुल्हाड़ी निकाली और प्रतिभा के सिर पर दो वार किए। मृतक की बहन ज्योति की शिकायत पर नारायणगांव पुलिस स्टेशन में हत्या का मामला दर्ज कर याचिकाकर्ता पति को गिरफ्तार कर लिया था।

भिवंडी की निरक्षर आदिवासी महिलाओं की हाई कोर्ट ने सुनी गुहार

उधर बॉम्बे हाई कोर्ट ने निरक्षर आदिवासी महिलाओं की गुहार सुनते हुए उनके खिलाफ निचली अदालत द्वारा जारी नोटिस को रद्द कर दिया है। अदालत ने माना कि याचिकाकर्ता अशिक्षित आदिवासी महिलाएं हैं। इसलिए निचली अदालत के समक्ष अपील दायर करने में लगभग 9 महीने की देरी के लिए क्षमा का मामला बनता है। निचली अदालत ने दीवानी मामले की सुनवाई के दौरान महिलाओं के हाजिर नहीं होने पर नोटिस जारी किया था। न्यायमूर्ति माधव जामदार की एकल पीठ ने आदिवासी शेवंती कालू गुंड की याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा दिए गए विस्तृत कारणों पर निचली अदालत द्वारा विचार नहीं किया गया है। इसलिए आक्षेपित आदेश विकृत है। पीठ ने कहा कि विलंब क्षमा के लिए पर्याप्त कारण दिए गए हैं और रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो यह दर्शाता है कि विलंब जानबूझकर या दुर्भावनापूर्ण कारण से किया गया है। यह तथ्य कि याचिकाकर्ता अशिक्षित आदिवासी महिलाएं हैं। इसलिए निचली अदालत के समक्ष अपील दायर करने में लगभग 9 महीने की देरी के लिए क्षमा का मामला बनता है। भिवंडी के जिला न्यायाधीश द्वारा पारित 21 मार्च 2025 के आदेश को रद्द किया जाता है। याचिकाकर्ताओं के वकील अनुपस्थित रहे और निचली अदालत न्यायाधीश ने यह माना था कि देश में हर जगह गांवों और शहरों में लोग मोबाइल फोन का उपयोग कर रहे हैं। इसलिए याचिकाकर्ता किसी भी स्थान से कानूनी कार्यवाही की स्थिति की जांच सकती थीं? न्यायाधीश ने 16 जून 2025 को अंतिम निपटान के लिए याचिकाकर्ता को नोटिस जारी किया। याचिकाकर्ताओं ने जिला अदालत के नोटिस जारी करने को हाई कोर्ट में चुनौती दी। याचिकाकर्ताओं के वकील ने दलील दी कि वे निचली अदालत के समक्ष उपस्थित नहीं हो सकीं, क्योंकि उन्हें तारीखों की जानकारी नहीं थी। वे निरक्षर आदिवासी महिलाएं हैं, उन्हें कोई कानूनी ज्ञान नहीं है। उनके वकील ने उन्हें मामले की तारीखों और चरण के बारे में सूचित नहीं किया था

Created On :   9 Sept 2025 9:38 PM IST

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