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मिशन राजीपो: महंत स्वामी महाराज की दिव्य दृष्टि से हुआ वैश्विक संस्कार, हजारों बालक संस्कृत से संस्कार की ओर अग्रसर

- शुद्धता, अनुशासन और करुणा का जीवन अपनाते हुए वैश्विक संस्कार
- 40,000 बालक संस्कृत से संस्कार की ओर अग्रसर हुए
- संस्कृत-अध्ययन की गहन दृष्टि
Mumbai News : BAPS के महंत स्वामी महाराज की बड़ी पहल के तहत 40,000 से अधिक बच्चे संस्कृत सीख रहे हैं। आज के उस युग में, जहां डिजिटल तकनीक मन को उत्तेजित तो करती है, परंतु शांति छीन लेती है, वहाँ बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था का ‘मिशन राजीपो’ एक ऐसा प्रकाश-पथ बनकर उभरा है, जहां आध्यात्मिक शिक्षा और चरित्र-निर्माण साथ-साथ चलते हैं।
महंत स्वामी महाराज की दिव्य प्रेरणा
सन् 2024 में परम पूज्य महंत स्वामी महाराज ने यह दिव्य संकल्प किया कि विश्वभर के बालक संस्कृत श्लोकों का अध्ययन और पाठ करें। उन्होंने कहा —“संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है।”
महंत स्वामी महाराज ने समझाया कि जो बालक संस्कृत श्लोकों को आत्मसात् करते हैं और उन्हें जीवन में आचरण में उतारते हैं, वे केवल आध्यात्मिक रूप से ही नहीं, बल्कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रगति करते हैं।
उनका प्रारंभिक लक्ष्य था — एक वर्ष में 10,000 बालक संस्कृत श्लोकों को कंठस्थ करें। परंतु यह प्रेरणा एक पवित्र अग्नि बनकर फैल गई। जो एक लक्ष्य था, वह शीघ्र ही एक वैश्विक आन्दोलन में परिवर्तित हो गया — और 40,000 से अधिक बालक उत्साहपूर्वक इसमें शामिल हुए।
इनमें से 15,666 बालक-बालिकाओं ने सत्संग दीक्षा ग्रंथ के सभी 315 संस्कृत श्लोकों को पूर्णतः कंठस्थ किया और परीक्षा में उत्तीर्ण हुए। हजारों अन्य बालक आज भी इस अध्ययन, चिंतन और आत्म-परिवर्तन की साधना-यात्रा में अग्रसर हैं।
संस्कृत-अध्ययन की गहन दृष्टि
- महंत स्वामी महाराज की दृष्टि केवल आध्यात्मिक नहीं, वैज्ञानिक भी थी। उन्होंने बताया कि संस्कृत का नियमित अध्ययन उच्चारण को परिष्कृत, शब्द-भंडार को समृद्ध और बुद्धि को तीक्ष्ण बनाता है।
- संस्कृत श्लोक-जप से एकाग्रता, स्पष्टता और मानसिक पवित्रता में वृद्धि होती है — जिसे आधुनिक विज्ञान भी स्वीकार करता है।
- इस प्रकार, उन्होंने संस्कृत को केवल धार्मिक भाषा नहीं, बल्कि आंतरिक अनुशासन और आत्म-परिवर्तन का विज्ञान बताया।
सत्संग दीक्षा – जीवन का दिशा-सूत्र
सत्संग दीक्षा के 315 श्लोक केवल पाठ नहीं, बल्कि जीवन-सूत्र हैं। प्रत्येक श्लोक एक नैतिक दिशा-सूचक की तरह बच्चों में निम्न गुणों का विकास करता है।
- सत्यनिष्ठा: सत्य बोलना और ईमानदारी से जीना।
- न्याय और अपरिग्रह: निष्पक्षता बनाए रखना और अनावश्यक संग्रह से दूर रहना।
- एकाग्रता और अध्ययन: मन से, लगन से सीखना।
- सेवा और करुणा: दूसरों की सहायता करना और उनके दुखों में सहभागी बनना।
- ममता और श्रद्धा: हर जीव में ईश्वर का दर्शन करना।
- आदर और आज्ञाकारिता: माता-पिता, गुरुजनों और बड़ों का सम्मान करना।
- एकता और सहयोग: सबके उत्थान में अपना उत्थान समझना।
- अनुशासन और मर्यादा: संयम और सदाचार से जीवन जीना।
- धैर्य और आत्म-नियंत्रण: क्रोध पर विजय पाकर अंतर्मन में शांति स्थापित करना।
इन श्लोकों के माध्यम से बच्चे सीख रहे हैं कि सच्चा ज्ञान वही है जो आचरण में उतरता है। वे केवल संस्कृत नहीं सीख रहे, बल्कि करुणा, नम्रता, सत्य और सामंजस्य जैसे संस्कारों को आत्मसात् कर रहे हैं — जो दिव्य जीवन का सार हैं।
वैश्विक संस्कार-आंदोलन
भारत से लेकर अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, यूएई, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और अफ्रीका तक — हजारों बालक-बालिकाओं ने इस भक्ति और अनुशासन-यज्ञ में भाग लिया।
इसके पीछे थे 103 साधुगण, 17,000 स्वयंसेवक और 25,000 अभिभावक, जिनके सामूहिक पुरुषार्थ ने इस पहल को एक विश्वव्यापी संस्कार-आंदोलन में परिवर्तित कर दिया।
मिशन राजीपो – आस्था का भविष्य, पवित्रता की शक्ति
मिशन राजीपो’ यह सिद्ध करता है कि जब संस्कार बचपन में बोए जाते हैं, तब भविष्य प्रकाश से खिल उठता है। आज के ये बालक ही कल के “परंपरा-प्रदीपक” बन रहे हैं — जो आधुनिकता के साथ आध्यात्मिकता, बुद्धि के साथ ईमानदारी, और अध्ययन के साथ प्रेम को जोड़ते हैं।
Created On :   29 Oct 2025 6:29 PM IST












