बॉम्बे हाई कोर्ट: लोकल विस्फोट मामले में फांसी की सजा पाए 5 दोषियों समेत सभी 12 बरी, सबूत नहीं तो सजा नहीं

लोकल विस्फोट मामले में फांसी की सजा पाए 5 दोषियों समेत सभी 12 बरी, सबूत नहीं तो सजा नहीं
2006 के मुंबई लोकल ट्रेन विस्फोट के मामले में फांसी की सजा पाए 5 दोषियों समेत सभी 12 दोषियों को किया बरी

Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को 2006 के मुंबई लोकल ट्रेन बम विस्फोटों के मामले में 12 दोषियों को बरी कर दिया। अदालत ने माना कि अभियोजन पक्ष दोषियों के खिलाफ अहम गवाह और सबूत पेश करने में विफल रहा। गवाहों के माध्यम से किसी भी ठोस प्रकृति का कोई साक्ष्य नहीं पेश कर सका। लोकल ट्रेन बम विस्फोटों में 189 लोग मारे गए थे और 800 से अधिक लोग घायल हुए थे। इस मामले में 19 साल बाद फांसी की सजा पाए पांच दोषियों समेत सभी 12 दोषियों को अदालत से बरी हुए हैं।

न्यायमूर्ति अनिल किलोर और न्यायमूर्ति श्याम चांडक की विशेष पीठ ने अपने आदेश में सभी 12 दोषियों को बरी करते हुए अभियोजन पक्ष के गंभीर खामियों की ओर इशारा किया गया। पीठ ने कहा कि प्रमुख गवाह अविश्वसनीय थे और पहचान परेड संदिग्ध थी। दोषियों के दिए गए इकबालिया बयान एक जैसे होने से बचाव पक्ष के यातना देकर इकबालिया बयान लेने की दलील सही साबित हुई।

पीठ ने यह भी कहा कि बचाव पक्ष ने शिनाख्त परेड पर गंभीर सवाल उठाए थे। कई गवाह असामान्य रूप से लंबे समय तक कुछ तो चार साल से भी ज़्यादा समय तक चुप रहे और फिर अचानक आरोपी की पहचान कर ली। यह असामान्य है। पीठ ने पाया कि एक गवाह ने घाटकोपर विस्फोट सहित कई

क्राइम ब्रांच के मामलों में गवाही दी थी, जिससे उसकी गवाही अविश्वसनीय हो गई। कई गवाह यह बताने में विफल रहे कि वे वर्षों बाद अचानक आरोपी को कैसे याद कर पाए और उसकी पहचान कैसे कर पाए?

पीठ ने कहा कि मुकदमे के दौरान कुछ गवाहों से पूछताछ भी नहीं की गई। आरडीएक्स और अन्य विस्फोटक सामग्री जैसी बरामदगी के मामले में अभियोजन पक्ष फोरेंसिक लैब पहुंचने तक यह साबित नहीं कर सका कि सबूत विश्वसनीय है।अभियोजन पक्ष अपने मामले को उचित संदेह से परे साबित करने में पूरी तरह से विफल रहा।

पीठ ने विशेष महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) अदालत के अक्टूबर 2015 के फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें पांच को मौत की सजा और सात को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। दोषी ठहराए गए 12 लोगों में से एक कमाल अंसारी की 2021 में नागपुर जेल में बंद रहते हुए कोरोना काल के दौरान मृत्यु हो गई थी। बाकी 11 दोषी 19 साल सलाखों के पीछे बिताए हैं। अभियुक्तों का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता युग मोहित चौधरी ने कहा कि यह फैसला गलत तरीके से कैद किए गए लोगों के लिए आशा की किरण होगा। पीठ ने जवाब दिया कि हमने अपना कर्तव्य निभाया और यह हमारी जिम्मेदारी थी। सरकारी वकील राजा ठाकरे ने फैसले को स्वीकार करते हुए कहा कि यह फैसला भविष्य के मुकदमों के लिए एक मार्गदर्शक प्रकाश का काम करेगा।

जिनके खिलाफ सबूत नहीं होंगे, उन्हें सजा नहीं हो सकती है-थिप्से

बांबे हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश अभय थिप्से ने कहा कि हाई कोर्ट ने सभी सबूतों और गवाहों के छानबीन के बाद 5 दोषियों को फांसी की सजा समेत 12 दोषियों को बरी करने का अपना फैसला सुनाया है। इससे यह साबित हुआ है कि जिनके खिलाफ सबूत नहीं होंगे, उन्हें सजा नहीं हो सकती है। जहां तक ट्रायल कोर्ट के फैसले का सवाल है, तो कई बार गंभीर मामलों में भी दबाव में फैसले ले लिए जाते हैं। इसी तरह पुलिस पर भी मामलों को जल्द सुलझाने का दबाव होता है, वे ऐसे लोगों को गिरफ्तार कर लेते है, जिनके खिलाफ सबूत पेश नहीं कर पाते हैं।

श्री थिप्से ने कहा कि यह कोई पहला मामला नहीं है। कई मामलों में ट्रायल कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट ने बदल दिया है। इस मामले में दोषियों के खिलाफ पुख्ता गवाह और अहम सबूत नहीं पाए गए हैं। हाई कोर्ट के फैसले को देखते हुए हम मान सकते हैं कि जो लोग 19 साल से जेल में बंद हैं, वे निर्दोष हैं।

Created On :   21 July 2025 9:34 PM IST

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