बॉम्बे हाई कोर्ट: राऊत के सहयोगी व्यवसायी सुजीत पाटकर को मिली जमानत, परिवहन अनुबंधों में एससी एसटी आरक्षण बरकरार

राऊत के सहयोगी व्यवसायी सुजीत पाटकर को मिली जमानत, परिवहन अनुबंधों में एससी एसटी आरक्षण बरकरार
  • बॉम्बे हाई कोर्ट से शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट नेता संजय राउत के सहयोगी व्यवसायी सुजीत पाटकर को मिली जमानत
  • बॉम्बे हाई कोर्ट ने सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के परिवहन अनुबंधों में अनुसूचित जाति (एससी) एवं अनुसूचित जनजाति (एसटी) बोलीदाताओं के लिए आरक्षण को रखा बरकरार

Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट से करोड़ों रुपए के कोविड सेंटर घोटाले में शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट ) नेता संजय राउत के सहयोगी व्यवसायी सुजीत पाटकर को जमानत मिल गई। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पाटकर को गिरफ्तार किया था। हाल ही में विशेष पीएमएलए अदालत ने उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया था। न्यायमूर्ति अमित बोरकर की पीठ ने सुजीत पाटकर की जमानत याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि जुलाई 2023 में गिरफ्तारी के बाद आरोपी द्वारा जेल में बिताए गए समय, मुकदमे की शुरुआत में हुई देरी और सह-आरोपियों के साथ समानता पर विचार किया गया। याचिकाकर्ता बिताई गई हिरासत अवधि, सह-आरोपियों की समानता के आधार और मुकदमे की शुरुआत में हुई देरी को ध्यान में रखते हुए जमानत पर रिहा होने का हकदार है। पीठ ने पाटकर को एक लाख रुपए का निजी मुचलका भरने का आदेश दिया और कुछ अन्य शर्तें भी लगाईं। पिछले नवंबर में एक विशेष अदालत द्वारा उनकी जमानत याचिका खारिज किए जाने के बाद पाटकर ने राहत के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। विशेष अदालत ने पाया था कि आरोपी और उसके सहयोगियों ने एक आपराधिक साजिश रची और महामारी के दौरान लोगों की जान बचाने के बजाय उनके जीवन से खिलवाड़ किया। ईडी ने पाटकर को जुलाई 2023 में गिरफ्तार किया था। आरोप है कि पाटकर और अन्य आरोपियों ने एक कोविड जंबो सेंटर चलाने का ठेका हासिल करने के बाद डॉक्टरों और कर्मचारियों की कम तैनाती करके मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) के साथ धोखाधड़ी की थी। ईडी की जांच में पाया गया था कि फर्जी बिल और वाउचर तैयार करके आपराधिक आय अर्जित करने की साजिश रची गई थी। पाटकर लाइफलाइन हॉस्पिटल मैनेजमेंट सर्विसेज के चार भागीदारों में से एक थे, जिन्हें वर्ली में एक कोविड-19 जंबो सेंटर चलाने का ठेका दिया गया था। ईडी ने पाटकर के खिलाफ मुंबई पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर के आधार पर मनी लांड्रिंग का मामला दर्ज किया था।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के परिवहन अनुबंधों में अनुसूचित जाति (एससी) एवं अनुसूचित जनजाति (एसटी) बोलीदाताओं के लिए आरक्षण को रखा बरकरार

उधर बॉम्बे हाई कोर्ट ने सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के परिवहन अनुबंधों में अनुसूचित जाति (एससी) एवं अनुसूचित जनजाति (एसटी) बोलीदाताओं के लिए आरक्षण को बरकरार रखा है। अदालत ने कहा कि संवैधानिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु उद्यमियों के सामाजिक और आर्थिक उत्थान हेतु चुनिंदा वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान राज्य द्वारा की गई एक सकारात्मक कार्रवाई है। कुछ बीपीसीएल ठेकेदारों ने याचिका में केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय द्वारा जारी 1994 की एक नीति के तहत एससी एवं एसटी के बोलीदाताओं और एमएसई को वरीयता दिए जाने को चुनौती दी गई थी। मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति संदीप मार्ने की पीठ ने पेट्रोलियम परिवहन ठेकेदारों द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया। पीठ ने कहा कि सामाजिक आरक्षण के अलावा, सूक्ष्म, मध्यम और लघु उद्यमों, महिला उद्यमियों आदि जैसे उद्यमियों के विभिन्न वर्गों को आर्थिक प्रोत्साहन देने के प्रावधान किए गए हैं। इन सभी उपायों का उद्देश्य उन चुनिंदा उद्यमियों के वर्ग में वाणिज्य को बढ़ावा देना है, जिन्हें अपनी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि, संसाधनों की कमी, अवसरों की कमी आदि के कारण खुली बोलीदाताओं के साथ प्रतिस्पर्धा करने में कठिनाई होती है। पीठ ने कहा कि ऐसे कदमों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं माना जा सकता। भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए कोई असमानता पैदा करने के बजाय ऐसे उपाय समाज में चुनिंदा वर्ग के व्यक्तियों के आर्थिक उत्थान को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सकारात्मक कार्रवाई की ओर हैं। ऐसे उपाय भारत के संविधान में निहित समानता खंड का कोई उल्लंघन नहीं करते हैं। बीपीसीएल के लिए पेट्रोलियम उत्पादों के परिवहन में लगे मौजूदा ठेकेदारों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। महाराष्ट्र में बीपीसीएल के मनमाड संयंत्र से पांच वर्षीय अनुबंध के लिए अगस्त 2024 में एक नई निविदा जारी होने के बाद उन्होंने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। ठेकेदारों ने निविदा की कुछ शर्तों पर आपत्ति जताई थी, जो केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय द्वारा जारी 1994 की नीति के अनुसार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति बोलीदाताओं और सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों (एमएसई) को तरजीही का दर्जा प्रदान करती थीं।याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति बोलीदाताओं के लिए कम सुरक्षा जमा और वाहन स्वामित्व की कम आवश्यकता जैसी शर्तें और छूट असंवैधानिक थीं। 1994 के दिशानिर्देशों का कोई कानूनी बल नहीं है और ये संविधान के अनुच्छेद 19(1)(जी) के तहत उनके व्यापार करने के अधिकार का उल्लंघन करते हैं।सरकारी ठेकों में आरक्षण अनुच्छेद 15 और 16 के तहत अनुमत नहीं है, जो केवल सार्वजनिक रोजगार पर लागू होते हैं। बीपीसीएल ने जवाब दिया कि याचिकाकर्ताओं ने निविदा प्रक्रिया में भाग लिया था और अतीत में भी इसी तरह की शर्तों के तहत अनुबंध स्वीकार किए थे। बीपीसीएल ने कहा कि उन्हें वर्तमान निविदा को चुनौती देने से रोक दिया गया है। सरकार ने इन दिशानिर्देशों का बचाव संविधान के अनुच्छेद 46 के तहत सकारात्मक कार्रवाई के एक वैध रूप में किया, जिसका उद्देश्य कमजोर वर्गों के आर्थिक हितों को बढ़ावा देना है।

Created On :   16 July 2025 9:04 PM IST

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