बॉम्बे हाई कोर्ट: योगी पर आधारित फिल्म के प्रमाणन पर दो दिनों में लें फैसला, अमेरिकी बच्चे को गोद लेने का कोई मौलिक अधिकार नहीं

योगी पर आधारित फिल्म के प्रमाणन पर दो दिनों में लें फैसला, अमेरिकी बच्चे को गोद लेने का कोई मौलिक अधिकार नहीं

    Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने योगी आदित्यनाथ पर आधारित फिल्म "अजय: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ ए योगी (अजय)’ के प्रमाणन पर केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) को दो दिन में फैसला लेने का निर्देश दिया है। फिल्म के निर्माताओं ने प्रमाणन के लिए उनके आवेदन पर जल्द से जल्द फैसला करने के निर्देश देने का अनुरोध करते हुए याचिका दायर किया है। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते-डेरे और डॉ. नीला गोखले की पीठ के समक्ष सीबीएफसी के वरिष्ठ वकील अभय खांडेपारकर का बयान दिया कि वे दो कार्य दिवसों के भीतर आवेदन पर फैसला करेंगे। पीठ ने अपने आदेश में कहा कि अब विचार के लिए कुछ भी शेष नहीं है। सीबीएफसी द्वारा लिए गए निर्णय की सूचना उसी दिन याचिकाकर्ताओं को देनी होगी। हमने मामले के गुण-दोष पर कोई टिप्पणी नहीं की है। यह फिल्म शांतनु गुप्ता द्वारा लिखित पुस्तक "द मॉन्क हू बिकेम चीफ मिनिस्टर" से प्रेरित है, जो कथित तौर पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जीवन पर आधारित है। याचिकाकर्ताओं ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला है कि सीबीएफसी ने एक ‘निराधार' मांग की है, जिसमें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) से अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) लेने की बात कही गई है। याचिकाकर्ता सीबीएफसी द्वारा उत्तर प्रदेश के सीएमओ से एनओसी की गलत, असंगत और निराधार मांग से व्यथित है। जबकि सिनेमैटोग्राफ अधिनियम या उसके तहत बनाए गए नियमों के तहत ऐसी कोई आवश्यकता मौजूद नहीं है। यह ध्यान देने योग्य है कि ऐसी गलत आवश्यकता और अनुरोध न केवल याचिकाकर्ता के पेशेवर हितों के लिए बेहद हानिकारक है, बल्कि उसके वित्तीय हितों के लिए भी हानिकारक है। फिल्म 1 अगस्त, 2025 को सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली है

    किसी भारतीय को अमेरिकी बच्चे को गोद लेने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है, भले ही वह भारतीय माता-पिता से पैदा हुआ हो.... बॉम्बे हाई कोर्ट

    उधर बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि किसी भारतीय को अमेरिकी बच्चे को गोद लेने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है, जो बच्चा जेजे अधिनियम और उसके अंतर्गत विनियमों के दायरे में नहीं आता, भले ही वह भारतीय माता-पिता से पैदा हुआ हो। न ही अमेरिकी राष्ट्रीयता वाले बच्चे के किसी भारतीय नागरिक द्वारा गोद लिए जाने के किसी मौलिक अधिकार का कोई उल्लंघन है। अदालत ने अमेरिका में जन्मे बच्चे को गोद लेने की भारतीय दंपत्ति की याचिका खारिज कर दी। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति नीला गोखले की पीठ ने कहा कि बच्चा किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम और दत्तक ग्रहण विनियमों के प्रावधानों के अनुसार देखभाल और संरक्षण की जरूरत वाले बच्चे या कानून के साथ टकराव वाले बच्चे की परिभाषा में नहीं आता है। जे.जे.अधिनियम या दत्तक ग्रहण विनियमों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो विदेशी नागरिकता वाले बच्चे को रिश्तेदारों के बीच भी गोद लेने का प्रावधान करता हो, जब तक कि बच्चे को देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता न हो या बच्चा कानून का उल्लंघन न कर रहा हो। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता की समस्या का समाधान केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन एजेंसी (कारा) द्वारा सुझाए गए तरीके से आसानी से किया जा सकता है। बच्चे को नागरिकता अधिनियम 1955 के तहत भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करना होगा और फिर जे.जे. अधिनियम के तहत प्रक्रिया का पालन करना होगा। हम इस याचिका को स्वीकार करने के लिए इच्छुक नहीं हैं। दंपति को अमेरिकी कानूनों और प्रक्रियाओं के अनुसार अमेरिका से बच्चे को गोद लेने की सभी आवश्यक औपचारिकताएं पूरी करनी होगी, जिसके बाद ही वे गोद लिए गए विदेशी बच्चे को भारत लाने के लिए गोद लेने के बाद की प्रक्रिया को आगे बढ़ा सकते हैं। दंपति ने अपने रिश्तेदारों के बच्चे को गोद लेने की मांग की, जो जन्म से अमेरिका का नागरिक है। कारा ने दंपति को भावी दत्तक माता-पिता के रूप में पंजीकृत करने से इनकार कर दिया, क्योंकि दत्तक ग्रहण विनियम किसी अमेरिकी नागरिक को गोद लेने की सुविधा नहीं देते हैं। कारा के अनुसार किशोर अधिनियम के प्रावधान केवल तभी गोद लेने की अनुमति देते हैं, जब बच्चे को देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता हो या वह कानून का उल्लंघन करने वाला बच्चा हो। बच्चे का जन्म 2019 में अमेरिका में हुआ था, लेकिन याचिकाकर्ता दंपत्ति उसे कुछ महीने की उम्र में ही भारत ले आए। तब से लड़का उनके साथ रह रहा है और वे उसे गोद लेने के इच्छुक थे। कारा ने पीठ को बताया कि वह उस देश में लागू कानूनों के तहत बच्चे को पहले अमेरिका में गोद लिए जाने के बिना गोद लेने की मंजूरी नहीं दे सकता।

    बॉम्बे हाई कोर्ट ने मुंबई हवाई अड्डे के पास बूचड़खाने और मांस की दुकानें खोलने को लेकर बीएमसी को पहले के निर्देशों का पालन करने का दिया आदेश

    बॉम्बे हाई कोर्ट ने मुंबई हवाई अड्डे के पास अवैध बूचड़खाने और मांस की दुकानें खोलने को लेकर बीएमसी को पहले के निर्देशों का पालन करने का आदेश दिया है। पिछले आदेश में अदालत ने मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) को मुंबई हवाई अड्डे के 10 किलोमीटर के भीतर द्वारा अवैध बूचड़खाने और मांस की दुकानों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया था। अखिल भारतीय कृषि गौ सेवा संघ की ओर से वकील सिद्ध विद्या दायर याचिका जनहित याचिका में दावा किया गया कि बीएमसी मुंबई हवाई अड्डे के आस-पास खुले अवैध बूचड़खाने और मांस की दुकानों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रही है। मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति संदीप मार्ने की पीठ ने कहा कि मुंबई हवाई अड्डे के आस-पास खुले अवैध बूचड़खाने और मांस की दुकानों के खिलाफ कार्रवाई करने का पहले निर्देश दिया गया है। एक ही विषय पर अलग-अलग याचिकाओं में निर्देश जारी नहीं किया जा सकता है। याचिकाकर्ता के वकील सिद्ध विद्या ने दलील दी कि पहली याचिकाओं पर अदालत के दिए गए निर्देशों का बीएमसी पालन नहीं कर रही है। यहां तक कि बकरीद के समय बीएमसी ने जिन मांस दुकानों को बकरीद पर कुर्बानी की अनुमति दी थी, उसमें मुंबई अवाई अड्‌डे के सटी मांस की दुकान भी थी। हवाई अड्‌डे से 10 किलोमीटर के भीतर अवैध बूचड़खाने और मांस की दुकाने खोले पर प्रतिबंध है। इससे हवाई जहाज के लैंडिंग के दौरान मांस के लिए मडराने वाले पक्षियों से बड़ा हादसा हो सकता है। यह भारतीय वायुयान अधिनियम 1934 की धारा 10 का उल्लंघन भी है। जनहित याचिका में 15 जून 2025 को पुलिस की जोगेश्वरी (पूर्व) में अवैध बूचड़खाने पर पुलिस की छापेमारी का उल्लेख किया गया है, जिसमें पुलिस ने भारतीय वायुयान अधिनियम 1934 की धारा 10 का उल्लंघन के तहत कार्रवाई की थी। पुलिस ने जिस अवैध बूचड़खानों पर छापेमारी की कार्रवाई की, वह मुंबई के विलेपार्ले स्थित हवाई के टर्मिनस एक से महज 6 किलोमीटर की दूरी पर था। पहले बीएमसी से इसको लेकर कई शिकायत की गई थी, लेकिन बीएमसी कोई कार्रवाई नहीं की। पीठ ने बीएमसी को पहले दिए गए आदेशों पर अमल करने का निर्देश देते हुए जनहित याचिका का निपटारा कर दिया।

    Created On :   17 July 2025 9:25 PM IST

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