Mumbai News: महात्मा गांधी की शिक्षाओं पर स्थापित शिक्षण संस्थान के कर्मचारियों के साथ निष्पक्ष व्यवहार करें

महात्मा गांधी की शिक्षाओं पर स्थापित शिक्षण संस्थान के कर्मचारियों के साथ निष्पक्ष व्यवहार करें
  • अदालत ने 7 साल से प्रोबेशन पर कार्यरत सहायक प्रोफेसर को किया स्थाई
  • गांधी की शिक्षाओं पर स्थापित शिक्षण संस्थान के कर्मचारियों के साथ निष्पक्ष व्यवहार करें

Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि अगर कोई शैक्षणिक संस्थान महात्मा गांधी की शिक्षाओं पर स्थापित है, तो उसे अपने सभी कर्मचारियों के साथ बिना किसी भेदभाव के निष्पक्ष व्यवहार करना चाहिए। अदालत ने 7 साल से प्रोबेशन पर कार्यरत सहायक प्रोफेसर को स्थाई किया। न्यायमूर्ति रवींद्र घुगे और न्यायमूर्ति अश्विन भोबे की पीठ ने पाया कि याचिकाकर्ता रेशु सिंह को 20 जून 2018 को दो साल के लिए प्रोबेशन पर भारतीय विद्या भवन के मुंबादेवी आदर्श संस्कृत महाविद्यालय में सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया था। दो साल की प्रोबेशन पूरा करने के बावजूद उन्हें स्थाई नहीं किया गया, जिसके कारण उन्होंने हाई कोर्ट में याचिका दायर किया। पीठ ने कहा कि हमें आश्चर्य है कि याचिकाकर्ता एक महिला शिक्षिका है, जिसे 6 साल और 10 महीने तक प्रोबेशन पर काम करने के लिए मजबूर किया गया। यह हमारी न्यायिक विवेक को भी झकझोरता है। एक शिक्षक के साथ इस तरह का व्यवहार नहीं किया जा सकता। जिस तरह से याचिकाकर्ता के साथ व्यवहार किया गया है, वह कम से कम शोषण के बराबर है।

पीठ ने कहा कि संस्था भारतीय विद्या भवन का आदर्श वाक्य "अमृतम तू विद्या’ है, जिसका अर्थ है "ज्ञान अमृत है’। पीठ ने कॉलेज के लेटरहेड पर टिप्पणी की, जिसमें लिखा है कि महात्मा गांधी के आशीर्वाद से इसकी स्थापना की गई है। पीठ ने कहा कि इसमें कोई विवाद नहीं है कि मोहनदास करमचंद गांधी राष्ट्रपिता ‘महात्मा गांधी' हैं। अगर इस कॉलेज को ‘महात्मा' की शिक्षाओं से प्रेरित होकर काम करना है, तो हम उम्मीद करेंगे कि हर कर्मचारी के साथ उचित व्यवहार किया जाए और किसी भी तरह का शोषण न हो।

याचिकाकर्ता ने जून 2020 तक अपनी प्रोबेशन अवधि पूरी कर ली थी, फिर भी उसकी नियुक्ति को स्थायी नहीं की गई। उसने अप्रैल और अक्टूबर 2021 के बीच कई ईमेल भेजे, लेकिन उसे कोई जवाब नहीं मिला। इसके बाद कॉलेज के प्रिंसिपल ने उसका मामला प्रबंध समिति के अध्यक्ष को भेज दिया, जिन्होंने रिकॉर्ड देखने के बाद दिसंबर 2021 में प्रशासन को उसकी नियुक्ति को स्थायी करने की सिफारिश की। इसके बावजूद उसे स्थाई नहीं किया गया, तो उन्होंने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। याचिका में सिंह ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) विनियम 2018 का हवाला दिया, जो दो साल से अधिक समय तक प्रोबेशन अवधि बढ़ाने पर रोक लगाता है।

Created On :   12 May 2025 3:34 PM

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