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सीनेट चुनाव उम्मीदवार का नामांकन फॉर्म खारिज करने का कुलपति का आदेश रद्द
- मुंबई विश्वविद्यालय (एमयू) के सीनेट चुनाव का मामला
- उम्मीदवार के नामांकन फॉर्म को खारिज करने कुलपति का आदेश रद्द
- बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने मुंबई विश्वविद्यालय के कुलपति के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें उन्होंने एक उम्मीदवार के सीनेट चुनाव नामांकन को खारिज कर दिया था। अदालत ने विश्वविद्यालय के पूरी तरह से नौकरशाही दृष्टिकोण पर नाराजगी व्यक्त की।
न्यायमूर्ति गौतम एस. पटेल और न्यायमूर्ति नीला के. गोखले की खंडपीठ के समक्ष बॉम्बे फिजिकल कल्चर एसोसिएशन (बीपीसीए) के सदस्य संजय बाबूराव शेटे की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (एनएएसी) प्रमाणपत्र के अभाव में विश्वविद्यालय सीनेट के लिए उनके नामांकन फॉर्म को अस्वीकार करने के एमयू के फैसले को चुनौती दी गयी।
याचिकाकर्ता ने एनएएसी द्वारा बीपीसीए के कॉलेज ऑफ फिजिकल एजुकेशन और मुंबई के प्रिंसिपल को एक ई-मेल दिखाया, जिसने इस साल 30 मार्च को पुष्टि की कि संस्थान को पांच साल की अवधि के लिए मान्यता दी गई थी। एमयू द्वारा 12 जून को उनका नामांकन खारिज कर दिया था।याचिकाकर्ता ने 14 जून को कुलपति के समक्ष अपील की, जिसके तहत उनके पास एनएएसी द्वारा अनुमोदित दो संस्थानों की सूची थी, जिसमें याचिकाकर्ता के कॉलेज को सूची में दूसरे स्थान पर दिखाया गया था।
वरिष्ठ अधिवक्ता मिहिर देसाई और अधिवक्ता अजिंक्य एम उदाने ने दलील दिया कि कॉलेज को पहले भी कई चक्रों के लिए मान्यता दी गई थी और याचिकाकर्ता ने पहले भी सीनेट में काम किया है। यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता द्वारा वास्तविक भौतिक प्रमाणपत्र या कम से कम वास्तविक प्रमाणपत्र नहीं भेजा गया था। उत्तरदाताओं ने यह भी तर्क दिया कि प्राचार्य को एनएएसी से पत्र व्यवहार करना चाहिए था और प्रमाणपत्र प्राप्त करना चाहिए था।
खंडपीठ ने कहा कि हम इस पूरी तरह से नौकरशाही दृष्टिकोण की सराहना करने में विफल हैं। विश्वविद्यालय को सीधे एनएएसी से पत्राचार करने और पुष्टि प्राप्त करने से कोई नहीं रोक सका। अब जो ई-मेल हमें दिखाया गया है। वह पर्याप्त है। यदि विश्वविद्यालय चाहे, तो वह एनएएसी से जांच कराने के लिए स्वतंत्र है। यदि विश्वविद्यालय को अंततः यह पाता है कि एनएएसी ने संबंधित कॉलेज को मान्यता नहीं दी है, तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि याचिकाकर्ता को तुरंत सीनेट में अपनी सीट से इस्तीफा देना होगा।
फिर विश्वविद्यालय जो चाहे कदम उठा सकता है, लेकिन इस तरह के तथ्यों पर नामांकन कैसे खारिज किया जा सकता है। अदालत ने याचिकाकर्ता की दलील स्वीकार कर ली। एमयू के रजिस्ट्रार-सह-रिटर्निंग अधिकारी द्वारा पारित आदेश और विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा पारित 16 जून के आदेश को रद्द कर दिया। अदालत ने याचिकाकर्ता को शर्तों पर चुनाव लड़ने की अनुमति दी।
Created On :   27 Jun 2023 8:56 PM IST