सुरक्षा: अब सैटेलाइट टैग लगाकर उड़ान भरेंगे पेंच व ताड़ोबा में गिद्ध

अब सैटेलाइट टैग लगाकर उड़ान भरेंगे पेंच व ताड़ोबा में गिद्ध
  • पीठ पर लगे टैग की सहायता से इन पर नजर रखी जाएगी
  • देशभर में गिद्धों की संख्या तेजी से कम हो रही
  • 3 महीने से इन्हें विभिन्न तरह के प्रशिक्षण दिए जा रहे

सचिन मोखारकर , नागपुर । पेंच व्याघ्र प्रकल्प व ताड़ोंबा में गिद्धों की संख्या बढ़ाने की कवायदें जारी हैं। लंबी चोंच वाले गिद्ध हरियाणा से लाए गए हैं। उन्हें जल्द ही सैटेलाइट टैग लगाकर जंगल में छोड़ा जाएगा। इनका प्रशिक्षण लगभग पूरा होने को है। जून महीने के पहले सप्ताह में इन्हें छोड़ा जाएगा। इनके पीठ पर लगे टैग की सहायता से इन पर नजर रखी जाएगी। इनके प्रशिक्षण का पूरा जिम्मा वन विभाग ने बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसायटी को दिया है।

देश में तेजी से संख्या कम हो रही है : देशभर में गिद्धों की संख्या तेजी से कम हो रही है, जिसके कारण इन्हें बचाने के लिए उपाय योजना शुरू है। हरियाणा, असम, मध्य प्रदेश, प.बंगाल जैसे राज्य में ब्रीडिंग कर इनकी संख्या बढ़ाई जा रही है। वन विभाग ने विदर्भ के पेंच व ताड़ोबा के जंगलों में भी बाहर से गिद्ध लाकर छोड़ने का निर्णय लिया गया था। इसमें बीएनएचएस संस्था ने साथ दिया है।

3 माह से प्रशिक्षण जारी : इसके बाद 20 जनवरी को बाहरी राज्य से नागपुर के पेंच व्याघ्र प्रकल्प में व ताड़ोबा में 10 लंबी चोंच वाले गिद्ध लाए गए थे। उन्हें एवियरी में रखा गया, ताकि यहां उनको प्रशिक्षित किया जा सके। करीब 3 महीने से इन्हें विभिन्न तरह के प्रशिक्षण दिए जा रहे हैं। इन्हें अलग-अलग वन्यजीवों का मांस खाने के लिए दिया जा रहा है।

कॉलर आईडी की तरह काम करेगा : प्रशिक्षण लगभग पूरा हो गया है। छोड़ने के बाद भी इन पर नजर रखने के लिए इनके पीठ पर सैटेलाइट टैग लगाया जाएगा, जिसका वजन 50 ग्राम होगा। इस यंत्र के माध्यम से वन विभाग इनकी गतिविधियों पर नजर रख सकेगी। यह यंत्र ठीक उसी तरह काम करेगा, जिस तरह बाघ के गले में लगा कॉलर आईडी काम करता है।

4 करोड़ से घटकर 60 हजार पहुंची संख्या...जानें क्यों गिद्ध जरूरी : भारत में तेजी से विलुप्त हो चुके प्राकृतिक सफाईकर्मी गिद्धों को लेकर वन विभाग गंभीर है। गिद्ध संरक्षण कार्य योजना 2020-2025 के अनुसार देश में गिद्धों की मौजूदा आबादी के संरक्षण के लिए प्रत्येक राज्य में कम-से-कम एक "सुरक्षित गिद्ध क्षेत्र’ की योजना बनाई गई है।

मवेशियों के लिए बड़े पैमाने पर दर्दनाशक के रूप में डाईक्लोफिनेक का उपयोग भारत में गिद्धों की गिरती जनसंख्या का एक प्रमुख कारण है। भारत में गिद्धों की जनसंख्या बहुत तेजी से गिर रही है। 1990 में देश में गिद्धों की कुल संख्या लगभग 4 करोड़ थी, जो से आज घटकर 60 हजार से भी कम हो गई है।

गिद्ध पर्यावरण के प्राकृतिक सफाईकर्मी होते हैं। वे पशुओं के मृत शरीर का भक्षण कर पोषक चक्र की प्रक्रिया को गति प्रदान करते हैं। गिद्ध मृत शरीर का निपटारा कर संक्रामक बीमारियों के फैलाव को रोकते हैं। गिद्धों के पाचन तन्त्र में उन रोगाणुओं को नष्ट करने की क्षमता होती है जो मनुष्यों में खतरनाक संक्रामक बीमारी पैदा करते हैं।

बता दें कि जब तक गिद्ध का बच्चा उड़ने के काबिल नही हो जाता ,तब तक उसकी देखभाल नर और मादा बारी-बारी से करते हैं। सामान्यतः एक गिद्ध 5 साल की आयु में प्रजनन करता है। आयु करीब-करीब 50 से 55 साल होती है।

ग्रामीण क्षेत्रों में तेंदुओं द्वारा मानव बस्तियों पर बढ़ते आक्रमण की घटनाओं के पीछे गिद्धों की घटती जनसंख्या है। श्वानों की बढ़ती जनसंख्या के फलस्वरूप उनका भक्षण करने वाले तेंदुओं की जनसंख्या में भी वृद्धि हुई है। ऐसे स्थानों पर तेंदुए कुत्तों के शिकार के लिए मानव बस्तियों पर धावा बोलते हैं और बहुधा मानव बच्चों को अपना शिकार बना लेते हैं।

प्रशिक्षण अंतिम चरण में : गिद्धों का प्रशिक्षण अंतिम चरण में है। अब इन्हें सैटेलाइट टैग लगाकर जून माह में जंगल में छोड़ा जाएगा, ताकि इन पर नजर बनी रहे। -किशोर रीठे, संचालक, बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी

Created On :   16 May 2024 7:45 AM GMT

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