कृषि भूमि पर हजारों ले-आउट प्रशासन व भूखंड धारकों के लिए बने सिर दर्द

कृषि भूमि पर हजारों ले-आउट प्रशासन व भूखंड धारकों के लिए बने सिर दर्द
  • अनधिकृत ले-आउट का नहीं हो पा रहा एनए
  • नियमितीकरण के लिए एनए जरूरी
  • प्रमाणपत्रों के लिए बिल्डरों की रुचि नहीं

डिजिटल डेस्क, नागपुर। शहर सीमा से सटे गांव की कृषि भूमि पर हजारों ले-आउट तैयार हुए हैं, जो अब प्रशासन व भूखंड धारकों के लिए सिर दर्द साबित हो रहे हैं। नागपुर सुधार प्रन्यास को अनधिकृत ले-आउट के नियमितीकरण की जिम्मेदारी दी गई, लेकिन गुंठेवारी कानून, ग्रीन बेल्ट, यलो बेल्ट व कृषि भूमि के पेंच में फंसे अनधिकृत ले-आउट का नियमितीकरण करना नासुप्र के लिए टेढ़ी खीर बन गया है। नागपुर सुधार प्रन्यास द्वारा हजारों अनधिकृत ले-आउट की पहचान कर उनके नियमितीकरण की योजना तैयार की गई थी। इससे नासुप्र के खजाने में 350 करोड़ से अधिक रकम विकास शुल्क के रूप में जमा होती। अनधिकृत ले-आउट की जांच करने पर पता चला कि कुछ ले-आउट कृषि योग्य भूमि पर तैयार हुए हैं, कुछ ग्रीन बेल्ट में आरक्षित हैं, कुछ को यलो बेल्ट की श्रेणी में रखा गया है। ग्रीन बेल्ट की श्रेणी में चिह्नित अनधिकृत ले-आउट का नियमितीकरण इसलिए नहीं किया जा सकता कि इस भूमि को शहर की हरियाली के लिए आरक्षित रखा गया है। यलाे बेल्ट का अर्थ ऐसा भू-क्षेत्र है, जहां के कुछ हिस्से का उपयोग निवास के लिए व कुछ हिस्से का उपयोग कृषि के लिए किया जा रहा है। ऐसे क्षेत्र में अनधिकृत ले-आउट हों, तो उनका नियमितीकरण किया जा सकता है।

गुंठेवारी कानून के तहत भी अटका : वर्ष 2001 में राज्य में गुंठेवारी कानून लागू किया गया। उसके बाद राज्य सरकार द्वारा गुंठेवारी विकास अधिनियम में विशेष प्रावधान कर 31 दिसंबर 2020 तक गुंठेवारी क्षेत्र की भू-संपत्ति को नियमित करने का निर्णय लिया गया था। गुंठेवारी कानून से तात्पर्य वह जमीन, जिस पर किसी प्रकार का अतिक्रमण नहीं है, निजी मिल्कियत है व नागरी जमीन अधिनियम के तहत आती है। इस प्रकार की जमीन पर अनधिकृत ले-आउट का नियमितीकरण करने का प्रावधान है। बशर्ते इस जमीन का उपयोग निवास के लिए किया जा रहा हो, नगर रचना विभाग द्वारा नियमानुसार ले-आउट तैयार किया गया हो तथा भूमि का वर्गीकरण अकृषक के रूप में।

नियमितीकरण के लिए एनए जरूरी

यह आम धारणा है कि शहर सीमा में शामिल इलाकों में तैयार अनधिकृत ले-आउट का नियमितीकरण करने के लिए भूमि का अकृषक प्रमाणपत्र जरूरी नहीं है। भूमि अभिलेख विभाग सर्वेक्षण के जरिए ऐसे ले-आउट में भू-खंड धारक का नाम प्रापर्टी कार्ड (आखिव पत्रिका) में दर्ज कर लेगा। इसी आधार पर नागपुर सुधार प्रन्यास द्वारा भूखंडों का नियमितीकरण करने का निर्णय लिया गया। अब कहा जा रहा है कि जब तक भूमि का अकृषक प्रमाणपत्र संलग्न नहीं किया जाएगा, तब तक भूखंड का नियमितीकरण नहीं किया जा सकता। हजारों ले-आउट का अकृषक प्रमाणपत्र नहीं है, जिससे इन ले-आउट में घर बनाकर रह रहे तथा भूखंड नियमितीकरण की आस लगाए लाखों भूखंडधारक अधर में लटके हुए हैं। इन्हें न तो बैंक से कर्ज मिल रहा है न ही अपने भूखंड का स्वामित्व पूरी तरह से हासिल हुआ है।

प्रमाणपत्रों के लिए बिल्डरों की रुचि नहीं

अनधिकृत ले-आउट में प्लॉट खरीदने वाले यदि अपने प्लॉट का अकृषक प्रमाणपत्र हासिल करना चाहें, तो वह भी संभव नहीं है। नियमानुसार किसी एक प्लॉट के लिए अकृषक प्रमाणपत्र जारी नहीं किया जाता। अधिकारियों के मुताबिक समूचे ले-आउट को ही अकृषक श्रेणी में समाहित करने के लिए आवेदन करना होता है। ऐसे अधिकांश बिल्डर, डेवलपर्स हैं, जिन्होंने बगैर अकृषक प्रमाणपत्र हासिल किए ले-आउट तैयार किए और उन्हें बेच दिया। अब वे अकृषण प्रमाणपत्र प्राप्त करने में रुचि नहीं रखते हैं।

Created On :   22 May 2023 7:10 PM IST

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