नागपुर मंडल: 750 ट्रैकमैन को मिले जीपीएस ट्रैकर

750 ट्रैकमैन को मिले जीपीएस ट्रैकर
  • पटरियों पर गश्त का काम आसान
  • ट्रैकमैन को मिले जीपीएस ट्रैकर

डिजिटल डेस्क, नागपुर. मीलों लंबी पटरियों पर काम करनेवाले ट्रैकमैन को अब रेलवे अधिकारी एक मिनट में ढूंढ रहे हैं। दरअसनल ट्रैकमैन को जीपीएस से जोड़ा गया है। अब तक 350 ट्रैकमेन को जीपीएस एनबल्ड डिवाइस दिए थे, लेकिन अब मध्य रेलवे नागपुर मंडल में इसका आंकड़ा 750 पर पहुंचा है। जिससे काम और आसान हो गया है। इससे ट्रैकमैन की सही स्थिति का पता चल रहा है। मध्य रेल पर कुल 3143 जीपीएस ट्रैकर उपलब्ध कराए गए हैं। जिसमें मुंबई मंडल: 666 जीपीएस ट्रैकर, भुसावल मंडल: 750 जीपीएस ट्रैकर, नागपुर मंडल: 750 जीपीएस ट्रैकर, - पुणे मंडल: 322 जीपीएस ट्रैकर, सोलापुर मंडल: 655 जीपीएस ट्रैकर दिए हैं।

ट्रैकमैन का गलत इस्तेमाल

मध्य रेलवे के नागपुर मंडल अंतर्गत 2 हजार 3 सौ के करीब रेलवे ट्रैक हैं। नागपुर से मुंबई, दिल्ली, हावड़ा तीनों दिशाओं में फैली इन पटरियों पर प्रति दिन 125 यात्री गाड़ियां व 250 मालगाड़ियां दौड़ती रहती हैं। ऐसे में हर घंटे इनकी मरम्मत जरूरी होती है। ताकि इनकी सुरक्षा बनी रहे। इंजीनियरिंग विभाग की ओर से कुल 3 हजार 90 ट्रैकमैन नागपुर मंडल अंतर्गत काम पर लगे रहते हैं। वीरानी पटरियों पर कौन कहां काम कर रहा है। इस बारे में जानकारी निकालने के लिए अधिकारियों को इनके पीछे घूमने के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है। जो मुमकिन नहीं है। ऐसे में कई जूनियर अधिकारी ट्रैकमैन का गलत इस्तेमाल करते हैं। उनसे ड्युटी टाइम में ही निजी काम कराया जाता है, हालांकि रेकॉर्ड में उन्हें रेलवे का काम करते दिखाई दिया जाता है। ऐसे में उपरोक्त नई नीति के कारण ऐसे ट्रैकमैन पर नजर रखी जा सकती है।

प्राकृतिक आपदा के वक्त ज्यादा सहयोग

अपने सेक्शन अंतर्गत इंजीनियर एक वक्त में कितने ट्रैकमैन कहां काम कर रहे हैं। इस बात का अंदाजा लगा सके। इसी तरह कई रेलवे पटरियां जंगलों के बीच से होकर गुजरती हैं। ऐसे में सेक्शन में बाघ, भालू, तेंदुआ जैसे जानवरों से कई बार ट्रैकमैन को सामना करना पड़ता है। कई बार हमले में ट्रैकमैन बुरी तरह जख्मी भी हो जाते हैं। उनके पास मदद के लिए कोई नहीं होता है, क्योंकि आस-पास में कौन है, इस बारे में जानकारी नहीं मिलती है। लेकिन जीपीएस से घटना के बाद आस-पास के ट्रैकमैन को तुरंत मदद के लिए भेजा जा सकेगा। इसी तरह प्राकृतिक आपदा के वक्त भी इनका सहयोग अब की तुलना में बहुत ज्यादा मिलेगा। कई बार बारिश आदि में ट्रेनें लैंड स्लाइडिंग, डिरलमेंट का शिकार हो जाती है। ऐसे में तुरंत घटना के आस-पास मौजूद रहनेवाले ट्रैकमैन को सूचना देकर जल्द से जल्द मदद पहुंचाई जा सकेगी।

Created On :   21 Oct 2023 5:39 PM IST

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