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Nagpur News: एम्स की छात्रा ने फांसी लगाकर की आत्महत्या - आईपीएस अधिकारी की थी बेटी, मानसिक तनाव की आशंका

- आत्महत्या को लेकर कई तरह की अटकलें
- आईपीएस अधिकारी की बेटी थीं समृद्धि
- समृद्धि के मोबाइल, लैपटॉप और निजी डायरी जब्त कर ली
Nagpur News. मिहान स्थित एम्स (AIIMS) में बुधवार शाम एक दर्दनाक मामले ने पूरे चिकित्सा संस्थान और प्रशासनिक वर्ग को झकझोर दिया। एम्स की प्रथम वर्ष की डर्मेटोलॉजी छात्रा समृद्धि कृष्णकांत पांडे (24) ने संदिग्ध परिस्थितियों में आत्महत्या कर ली। उन्होंने ब्राउन रंग की ओढ़नी से फांसी लगाई थी। समृद्धि, सीआरपीएफ पुणे में पदस्थ वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी और डीआईजी कृष्णकांत पांडे की बेटी थीं। इस घटना ने न केवल संस्थान, बल्कि पूरे प्रशासनिक वर्ग को भी स्तब्ध कर दिया है। फिलहाल मानसिक तनाव को आत्महत्या का संभावित कारण माना जा रहा है। सोनेगांव पुलिस ने आकस्मिक मृत्यु का मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।
फ्लैट में मिला लटका शव
पुलिस सूत्रों के अनुसार, समृद्धि मिहान स्थित ‘मंजिश अपार्टमेंट, शिव कैलास’ नामक परिसर में अपनी सहपाठी सुहानी के साथ रहती थीं। बुधवार शाम करीब 7 बजे, जब सुहानी कॉलेज से वापस लौटी, तो मुख्य दरवाजा अंदर से बंद था। संदेह होने पर उसने पीछे के दरवाजे से झांका, तो देखा कि समृद्धि पंखे से लटकी हुई हैं। उसने तुरंत पुलिस को सूचना दी।
सोनेगांव पुलिस मौके पर पहुंची और दरवाजा तोड़कर शव को नीचे उतारा। पोस्टमार्टम के लिए शव को एम्स अस्पताल भेजा गया। पुलिस के अनुसार, घटना के समय समृद्धि फ्लैट में अकेली थीं। कोई सुसाइड नोट बरामद नहीं हुआ है।
सोनेगांव थानेदार नितीन मगर के मार्गदर्शन में जांच शुरू है। पुलिस ने समृद्धि के मोबाइल, लैपटॉप और निजी डायरी जब्त कर ली है, ताकि आत्महत्या के पीछे के कारणों का पता लगाया जा सके।
जांच अधिकारी ने बताया कि मामले के हर पहलू की बारीकी से जांच की जा रही है। छात्रा के सहपाठियों, दोस्तों और प्रोफेसरों से भी पूछताछ की जाएगी ताकि यह स्पष्ट हो सके कि वे हाल के दिनों में किन परिस्थितियों से गुजर रही थीं।
तनाव में थीं समृद्धि?
पुलिस सूत्रों के अनुसार, समृद्धि पिछले कुछ समय से तनाव में थीं। हालांकि, परिवार ने अभी तक किसी व्यक्तिगत या शैक्षणिक दबाव की पुष्टि नहीं की है। सूत्रों का कहना है कि समृद्धि अत्यंत मेधावी छात्रा थीं, लेकिन हाल के दिनों में उनका स्वभाव थोड़ा अंतर्मुखी हो गया था। घटना की जानकारी मिलते ही उनके माता-पिता पुणे से नागपुर पहुंचे। एम्स प्रशासन ने छात्रा की मृत्यु पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए कहा कि हम पुलिस जांच में पूरी तरह सहयोग कर रहे हैं। साथ ही छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर काउंसलिंग सेवाएं सशक्त करने की प्रक्रिया शुरू की जा रही है। संस्थान ने बताया कि पहले से सक्रिय काउंसलिंग सेल को और मजबूत किया जाएगा ताकि भविष्य में किसी अन्य छात्र को ऐसी स्थिति का सामना न करना पड़े।
मेडिकल छात्रों पर बढ़ता मानसिक दबाव
यह घटना एक बार फिर मेडिकल छात्रों पर बढ़ते मानसिक दबाव की ओर संकेत करती है। विशेषज्ञों के अनुसार, कठिन शैक्षणिक पाठ्यक्रम, निरंतर प्रतिस्पर्धा, सामाजिक एकाकीपन और प्रदर्शन के दबाव के कारण कई छात्र मानसिक रूप से टूट जाते हैं। हाल के वर्षों में देशभर के मेडिकल कॉलेजों में छात्र आत्महत्याओं के मामले बढ़े हैं, जिससे मेडिकल शिक्षा में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की जा रही है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही पुलिस आगे की कार्रवाई तय करेगी। फिलहाल, समृद्धि के फोन डेटा, कॉल रिकॉर्ड और सोशल मीडिया गतिविधियों की गहन जांच जारी है।
साल 2020 में सक्षम प्राधिकारी की स्वीकृति से जारी आदेश के तहत रेज़िडेंट डॉक्टरों के तैयार कार्य घंटों के अभिलेख के तहत रेज़िडेंसी योजना के दिशा-निर्देशों का सख्ती से पालन करने को कहा गया है। जिसके तहत कुछ बिन्दु समझाए गए हैं।
- रेज़िडेंट डॉक्टरों की निरंतर सक्रिय ड्यूटी सामान्यतः प्रति दिवस 12 घंटे से अधिक नहीं होगी। कार्य की आवश्यकता के अनुसार रेज़िडेंट डॉक्टरों को प्रत्येक सप्ताह एक अवकाश (रोटेशन के आधार पर) प्रदान किया जाएगा।
- रेज़िडेंट डॉक्टरों को ऑन-कॉल ड्यूटी पर भी रखा जा सकता है, जो एक बार में 12 घंटे से अधिक नहीं होगी।
- जूनियर रेज़िडेंट डॉक्टरों को सामान्यतः सप्ताह में 48 घंटे कार्य करना होगा और किसी भी स्थिति में लगातार 12 घंटे से अधिक नहीं,
- यह ध्यान में रखते हुए कि कार्य के घंटे कार्यभार एवं चिकित्सकीय कार्य हेतु डॉक्टरों की उपलब्धता के अनुसार लचीले रहेंगे।
सूत्रों के मुताबिक तय समय से ज्यादा या 36 घंटे तक काम से मानसिक तनाव बढ़ने लगता है। काम करने के लिए प्रतिदिन सात से आठ घंटे की नींद जरूरी है। पिछले साल अगस्त 2024 में राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के टास्क फोर्स ने देशभर के डॉक्टरों के कामकाज को लेकर कई अहम सिफारिशें की थीं। टास्क फोर्स का कहना हथा कि रेजिडेंट डाक्टरों से सप्ताह में 74 घंटे से अधिक काम नहीं लेना चाहिए। साथ ही टास्क फोर्स की रिपोर्ट में सभी डॉक्टरों का वेतनमान दिल्ली एम्स के स्तर के होने की वकालत की गई थी। मेडिकल छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण पर राष्ट्रीय टास्क फोर्स ने सिफारिशों में कहा था कि डाक्टरों को हर सप्ताह एक दिन की छुट्टी मिलनी चाहिए। मेडिकल छात्रों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए प्रतिदिन सात से आठ घंटे की नींद आवश्यक है। अधिक समय तक काम करना डाक्टरों की शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं। इससे मरीजों की सुरक्षा भी प्रभावित होती है। यदि काम अधिक हो तो अस्पताल या मेडिकल कालेज अधिक चिकित्सा अधिकारियों को नियुक्त करे।
Created On :   13 Nov 2025 7:21 PM IST












