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Nagpur News: अंगदान के प्रति शिक्षित व अशिक्षित दोनों में अविश्वास, पाखंड व मान्यताएं हावी

- पाखंड व पुरानी मान्यताओं का डर
- नकारात्मक सोच बड़ी बाधा
Nagpur News. ठाणे निवासी 10 साल का कैवल्य। परिवार का इकलौता लाल। खेलने-कूदने की उम्र। कुछ दिन पहले अचानक उसकी तबीयत बिगड़ी। उसे एक निजी अस्पताल में भर्ती किया गया। 9 दिन उपचार चला, लेकिन प्रतिसाद नहीं मिला। उसे ठाणे से नागपुर एक निजी अस्पताल में लाया गया, लेकिन सुधार नहीं हुआ। तमाम जांच के बाद उसे ब्रेन डेड घोषित किया गया। अंगदान समुपदेशन टीम व डॉक्टरों ने माता-पिता को अंगदान का महत्व समझाया। दु:खी माता-पिता ने अपने गम को एक ओर रख कैवल्य का अंगदान करने का निर्णय लिया। उनके इस निर्णय से चार मरीजों को नया जीवन मिला। कैवल्य का हृदय चेन्नई में 7 साल की बच्ची में धड़क रहा है। वहीं दोनों किडनी व लिवर नागपुर में मरीजों पर प्रत्यारोपित की गई। 2013 से 30 जुलाई 2025 तक 178 परिजनों ने अंगदान का निर्णय लेने की हिम्मत दिखायी। बावजूद अंगदान के मामले में नागपुर विभाग पिछड़ा है।
पाखंड व पुरानी मान्यताओं का डर
इसके पीछे समाज में फैला पाखंड व पुरानी मान्यताएं हैं। जनमानस की सोच अब भी इससे बंधी है। परिणामस्वरूप यहां केवल 5 फीसदी परिजन ही मृतकों के अंगदान के लिए तैयार हो पाते हैं, जबकि तामिलनाडु में अंगदान 75 फीसदी हो चुका है। नागपुर विभाग के जोनल ट्रांसप्लांट को-ऑर्डिनेशन सेंटर (जेडटीसीसी) के अनुसार यहां अप्रैल 2013 में अंगदान की शुरूआत हुई थी। अब तक 178 बार अंगदान हो चुका है। अंगदान का प्रमाण कम होने से यहां सैकड़ों की संख्या में जरूरतमंद मरीज प्रतीक्षा सूची में हैं। सूत्रों ने बताया कि, वर्तमान में किडनी के इंतजार में 815 से अधिक व लिवर के इंतजार में 210 से अधिक मरीज हैं। वैसे ही हृदय और फेफड़ों के जरूरतमंदों की भी बड़ी संख्या है। हर साल 3 अगस्त काे राष्ट्रीय अंगदान दिवस मनाया जाता है। अंगदान के मामले में शिक्षित व अशिक्षित दोनों वर्ग में अविश्वास की भावना है। इसके अलावा अन्य नकारात्मक मानसिकता है, जो अंगदान करने में बड़ी बाधा है।
नकारात्मक सोच बड़ी बाधा
जेडटीसीसी सूत्रों के अनुसार नागपुर विभाग (विदर्भ) में अंगदान के मामले में आमजनों के बीच जागरूकता का अभाव है। इसके लिए संस्थाएं काम तो बहुत कर रही हैं, लेकिन जब तक सामान्यजन इस कार्य के लिए आगे नहीं आएंगे, तब तक इसका प्रमाण बढ़ पाना मुश्किल है। पूरी दुनिया में अंगदान को लेकर संतोषजनक परिणाम सामने आ चुके हैं। वहीं, तामिलनाडु में अंगदान का प्रमाण 75 फीसदी तक पहुंच गया है, जबकि विदर्भ में यह प्रमाण केवल 5 फीसदी ही है। इसके पीछे पुरानी मान्यताएं, पाखंड, तरह-तरह की मनगढ़ंत कहानियां, पुरानी पारंपारिक विचारधारा आदि कारण है। अंगदान के बाद परिवार पर विपरीत परिणाम होने का डर, मृत शरीर विकृत होने या अन्य नकारात्मक सोच का जन्म हो जाता है। जिसके चलते अंगदान के लिए ‘ना’ कहा जाता है। वहीं, अंगदान के मामले में दाता परिवार अर्थलाभ की चाहत रखते हैं, जो संभव नहीं हो पाता, क्योंकि अंगदान में पैसे का लेन-देन प्रतिबंधित है।
सकारात्मक सोच की आवश्यकता
डॉ. संजय कोलते, अध्यक्ष, जेडटीसीसी, नागपुर विभाग के मुताबिक अंगदान के लिए ‘ना’ करने का कोई कारण नहीं है। शिक्षित और अशिक्षित दोनों ही ‘ना’ कर देते हैं, जबकि अंगदान के लिए सामान्य जनों को स्वयं पहल करनी चाहिए, लेकिन यह पहल नहीं की जाती। उनके भीतर अविश्वास का भाव होता है। वे पाखंड से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। कुछ मामले में आर्थिक लाभ की अपेक्षा भी की जाती है, जबकि यह कार्य नि:स्वार्थ भाव से किया जाने वाला दान है। जिससे अंगदान का प्रमाण कम हो रहा है। जब तक सामान्यजन स्वयं इस कार्य के लिए आगे नहीं आएगा, तब तक इसका प्रमाण नहीं बढ़ेगा। हजाराें जरूरतमंद मरीज अंगों की प्रतीक्षा में हैं, उन्हें बचाकर नया जीवन देने का काम अंगदान के माध्यम से ही हो सकता है। अंगदान के प्रति सकारात्मक सोच को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
Created On :   3 Aug 2025 8:35 PM IST