Nagpur News: डिप्रेशन की शिकार महिला डॉक्टर आईसीयू में भर्ती, घटना के पीछे की वजह स्पष्ट नहीं - उपचार जारी

डिप्रेशन की शिकार महिला डॉक्टर आईसीयू में भर्ती, घटना के पीछे की वजह स्पष्ट नहीं - उपचार जारी
  • महिला डॉक्टर की हालत स्थिर
  • तनाव मुक्ति की सलाह देने वाले ही देते हैं तनाव

Nagpur News. देशभर के सरकारी मेडिकल कॉलेजों व अस्पतालों में निवासी डॉक्टर दिन-रात ड्यूटी करने से वे मानसिक तनाव में आ रहे हैं। इससे डॉक्टरों के अवसादग्रस्त होना और आत्महत्या जैसी घटनाएं सामने आ रही हैं। शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (मेडिकल) के श्वसन रोग विभाग की एक महिला जूनियर निवासी डॉक्टर को तनाव के कारण आईसीयू में भर्ती किया गया है।

कोई खुलकर बोलने को तैयार नहीं

रविवार को यह महिला डॉक्टर अवसादग्रस्त स्थिति में पाए जाने के कारण उसे आईसीयू में भर्ती किया गया है। फिलहाल उसकी हालत स्थिर बताई गई है। खबर लिखे जाने तक अवसादग्रस्त होने के पीछे की वजह स्पष्ट नहीं हो सकी। माना जा रहा है कि अधिक काम का दबाव इसका कारण हो सकता है। फिलहाल इस मामले पर कोई भी खुलकर बोलने को तैयार नहीं है। मेडिकल के मानसिक स्वास्थ्य विभाग की टीम महिला डॉक्टर की निगरानी कर रही है।

फेमा की हेल्पलाइन पर लगातार आ रहीं शिकायतें

कुछ दिनों पहले एम्स की एक छात्रा ने फांसी लगाकर आत्महत्या की है। नागपुर में तीन साल में 4 विद्यार्थियों ने आत्महत्या की है। आत्महत्या के कारणों को गंभीरता से देखा जा रहा है। मेडिकल में रविवार को महिला डॉक्टर के अचानक अवसाद में जाने से एक बार फिर यह मुद्दा चर्चा में आ गया है। मेडिकल कॉलेजों में रहने वाले निवासी डॉक्टरों पर मानसिक दबाव लगातार बढ़ रहा है। देशभर के सरकारी मेडिकल कॉलेजों व अस्पतालों में निवासी डॉक्टर दिन-रात काम करते हैं। रोज 16 से 18 घंटे की ड्यूटी आम बात है। खासकर ज्यूनियर डॉक्टरों पर काम का सबसे ज्यादा बोझ होता है। फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन (फेमा) की हेल्पलाइन पर लगातार ऐसी शिकायतें आ रही हैं।

जिम्मेदारी निभाने की जरूरत

डॉ. संजय बंसल, समन्वयक, फेमा के मुताबिक हेल्पलाइन पर संपर्क करने वाले छात्रों और डॉक्टरों की पहचान गुप्त रखी जाती है। इसी कारण वे अपनी समस्याएं खुलकर बताते हैं। संस्था ने काउंसलिंग के लिए मानसोपचार विशेषज्ञ उपलब्ध कराए हैं, फिर भी शिकायतों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इस स्थिति से निपटने के लिए भावनात्मक रूप से अभिभावक की तरह जिम्मेदारी निभाने की आवश्यकता है।

तनाव मुक्ति की सलाह देने वाले ही देते हैं तनाव

शिकायत के बाद वरिष्ठ डॉक्टर या विभागाध्यक्ष तनाव मुक्त रहने की सलाह देते हैं, लेेकिन उन्हीं के द्वारा काम का अत्यधिक दबाव बनाए जाने की शिकायतें मिल रही हैं। अधिकतर निवासी डॉक्टरों ने बताया कि उन पर काम का अत्याधिक दबाव बनाकर अतिरिक्त काम करवाया जाता है। अंतिम वर्ष के पीजी छात्रों को प्रबंध (थीसिस) जमा करना होता है, जिसमें पास या फेल करना प्राध्यापक के हाथ में होता है। इसका लाभ उठाकर जुनियर डॉक्टरों पर सबसे अधिक बोझ डाल दिया जाता है। शिकायत करने के लिए कोई सुरक्षित व गोपनीय व्यवस्था नहीं है। नींद पूरी नहीं होने से चिड़चिड़ापन और मानसिक तनाव बढ़ जाता है। एमडी के पहले वर्ष में तो 24 घंटे तक लगातार काम करना पड़ता है। कई डॉक्टर दिन-रात वार्ड में ही रहते हैं, जिससे मानसिकता अस्थिर व नकारात्मक होने का खतरा बना है।

Created On :   24 Nov 2025 6:40 PM IST

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