Nagpur News: हाईकोर्ट ने फैसले में कहा - दूसरे पति से भरण-पोषण की हकदार है महिला

हाईकोर्ट ने फैसले में कहा - दूसरे पति से भरण-पोषण की हकदार है महिला
  • निचली अदालत का आदेश बरकरार
  • दोनों की दूसरी शादी थी

Nagpur News. बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर किसी महिला की पहली शादी कानूनी रूप से चल रही हो, और इस बीच वह दूसरी शादी कर लेती है। कुछ दिन बाद ही विवादों के कारण दूसरा पति भी घर से निकाल देता है, तो महिला अपने दूसरे पति से सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण मांग सकती है। हाईकोर्ट ने यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के इसी संबंधी निर्णय के आधार पर सुनाया। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय सामाजिक न्याय के सिद्धांत पर आधारित है, ताकि महिलाओं को आर्थिक सुरक्षा मिल सके। यह फैसला न्यायमूर्ति एम.एम. नेर्लीकर ने सुनाया।

दोनों की दूसरी शादी थी

यह मामला गोकुल यशवंत गोपनारायण और उनकी पत्नी संगीता गोकुल गोपनारायण के बीच था। दोनों की शादी 3 जून 2008 को हुई थी। यह दोनों की दूसरी शादी थी। आरोप है कि शादी के कुछ समय बाद पति ने पत्नी के साथ दुर्व्यवहार करना शुरू किया। मारपीट कर घर से निकाल दिया। इसके बाद पत्नी ने 2010 में फौजदारी प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत भरण-पोषण के लिए अदालत में आवेदन किया।

इसलिए शादी अवैध होने का दावा

मुर्तिजापुर के न्यायिक मजिस्ट्रेट ने पत्नी के पक्ष में निर्णय देते हुए 4 हजार रुपये मासिक भरण-पोषण देने का आदेश दिया। इसके खिलाफ पति ने सत्र न्यायालय और बाद में हाईकोर्ट में अपील दायर की। पति का कहना था कि पत्नी ने अपने पहले पति का फर्जी मृत्यु प्रमाण-पत्र बनवाकर दूसरी शादी की, इसलिए यह शादी अवैध है और वह भरण-पोषण की हकदार नहीं है।

निचली अदालत का आदेश बरकरार

हाईकोर्ट ने पाया कि पति ने पत्नी के खिलाफ दो मामले और एक सिविल सूट दायर किए हैं, जो अभी लंबित हैं। इसलिए, इस मामले में केवल यह सवाल देखा गया कि पत्नी को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का हक है या नहीं और निचली अदालतों ने भरण-पोषण देने में कोई त्रुटि की है या नहीं। अदालत ने कहा कि भले ही शादी बाद में अमान्य साबित हो जाए, फिर भी महिला को भरण-पोषण मिल सकता है, क्योंकि यह सामाजिक न्याय का मामला है। सुप्रीम कोर्ट के हाल के निर्णयों का हवाला देते हुए अदालत ने स्पष्ट किया कि धारा 125 का उद्देश्य महिलाओं और बच्चों को भरण-पोषण देकर उन्हें दर-दर भटकने से बचाना है। इस आधार पर पत्नी को भरण-पोषण मिलना उसका कानूनी और नैतिक अधिकार है। अंततः हाईकोर्ट ने पति की याचिका खारिज कर दी और निचली अदालत का आदेश बरकरार रखा।

Created On :   13 Oct 2025 6:14 PM IST

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