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Nagpur News: रेलवे पटरियों पर खतरे में वन्यजीवों की जिंदगी, मालगाड़ी की टक्कर से बाघ की मौत

- बल्लारशाह–गोंदिया लाइन पर हादसा
- ट्रेनें बन रही हैं बाघों और तेंदुओं का काल
Nagpur News. जंगल का राजा कहलाने वाला बाघ अब इंसानी विकास की रफ्तार की चपेट में आ रहा है। कभी अपनी दहाड़ से जंगल को गूंजाने वाले ये वन्यजीव अब रेलवे पटरियों पर अपनी जान गंवा रहे हैं। जहां एक ओर हाईवे पर वन्यजीवों के लिए सुरक्षित कॉरिडोर बनाने की योजनाएं तैयार की जा रही हैं, वहीं रेलवे ट्रैक पर बाघों और तेंदुओं की जिंदगी हर दिन खतरे में है।
ताजा मामला सोमवार सुबह का है, जब बल्लारशाह–गोंदिया रेलवे लाइन पर टी-40 नामक बाघ ‘बिट्टू’ की मालगाड़ी से टक्कर में दर्दनाक मौत हो गई। यह बाघ प्रसिद्ध बाघ ‘जय’ का बेटा था। इस घटना ने एक बार फिर रेलवे पटरियों पर वन्यजीवों की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
रेलवे ट्रैक : वन्यजीवों का ‘मौत का रास्ता’
बल्लारशाह–गोंदिया रेलवे लाइन अब तक 18 बाघों की जान ले चुकी है। यह ट्रैक घने जंगलों और वन्यजीवों के मार्गों के बीच से गुजरता है — जो उनके लिए किसी अभिशाप से कम नहीं।
चंद्रपुर, तडाली, भांदक, राजूरा और बल्लारशाह जैसे इलाकों में जंगल और रेलवे ट्रैक बिल्कुल सटे हुए हैं। किरतगढ़, मरामझीरी, कोला पत्थर और धाराखोह जैसे घाट सेक्शन में अक्सर वन्यजीव पटरियों पर आ जाते हैं और तेज रफ्तार ट्रेनों की चपेट में आकर मारे जाते हैं।
पिछले वर्ष चनाखा गांव (राजूरा तहसील) में एक तेंदुए की ट्रेन से टक्कर में मौत हुई थी। इससे पहले भी इसी लाइन पर तीन बाघों की मौत हो चुकी है। करीब तीन साल पहले जुनोना जंगल में दो बाघ शावकों के शव ट्रैक पर मिले थे, जबकि तीसरा शावक पास ही मृत पाया गया था। ये सभी ताडोबा-अंधारी टाइगर रिजर्व क्षेत्र के थे — जो देश में बाघों की सर्वाधिक आबादी के लिए जाना जाता है।
क्यों हो रहे हैं ये हादसे?
- जंगल और रेलवे ट्रैक की करीबी दूरी इन हादसों की मुख्य वजह है।
- मध्य रेलवे (नागपुर मंडल) और दक्षिण-पूर्व मध्य रेलवे के कई हिस्सों में ट्रैक सीधे जंगली इलाकों से गुजरते हैं।
- अर्जुनी-वडसा, सालेकसा और दरेकसा जैसे क्षेत्रों में वन्यजीवों का ट्रैक पर आना आम हो गया है।
- तेज रफ्तार मालगाड़ियां और घने जंगलों से गुजरते रेलवे मार्ग वन्यजीवों के लिए ‘मौत का फंदा’ बनते जा रहे हैं।
पशुप्रेमियों की पुकार
पशुप्रेमी और पर्यावरणविद लंबे समय से रेलवे ट्रैकों पर वन्यजीवों की सुरक्षा को लेकर ठोस कदम उठाने की मांग कर रहे हैं। उनके अनुसार, रेलवे लाइनों के पास अंडरपास या ओवरपास (वाइल्डलाइफ कॉरिडोर) बनाए जाने चाहिए, ताकि जानवर सुरक्षित रूप से एक जंगल से दूसरे में जा सकें, लेकिन अब तक इन सुझावों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।
अब यादों में ताडोबा का गौरव ‘बिट्टू’
ताडोबा-अंधारी टाइगर रिजर्व, जो देशभर में बाघों की सबसे बड़ी आबादी के लिए प्रसिद्ध है, अब लगातार हो रहे हादसों से सुर्खियों में है। बाघ ‘बिट्टू’ (टी-40) की मौत ने यह सोचने पर मजबूर कर अब सिर्फ योजनाओं की बातें नहीं, बल्कि ठोस कदमों की जरूरत है।
क्या रेलवे और वन विभाग मिलकर इन निर्दोष जंगली जीवों की जान बचा पाएंगे, या फिर रेलवे पटरियां यूं ही बाघों और तेंदुओं का काल बनती रहेंगी?
Created On :   13 Oct 2025 7:45 PM IST