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Nagpur News: जंगलों की भाषा समझने वाले अरण्य ऋषि से जुड़ी हैं नागपुर की यादें

- मारुति चितमपल्ली का 93 वर्ष की आयु में निधन
- कुछ ही दिनों पहले ही मिला था पद्मश्री
Nagpur News अरण्य ऋषि (वन) के नाम से प्रख्यात मारुति चितमपल्ली का बुधवार को सोलापुर में 93 वर्ष की आयु में निधन हो गया। सोलापुर में जन्मे चितमपल्ली काम के लिए विदर्भ आए और यहीं बस गए। यह शोकांतिका रही कि विदर्भ के जंगलों की वनसंपदा को दुनिया के सामने लाने वाले तपस्वी चितमपल्ली को अंतिम समय में वनविभाग का सहयोग नहीं मिला। इसका अफसोस वह कई बार जता चुके थे। वन विभाग की उदासीनता के कारण एक बार उन्हें पद्मश्री से वंचित होना पड़ा। हालांकि बाद में उन्हें यह सम्मान मिला। 30 अप्रैल 2025 को महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार प्रदान किया।
जब अकेलापन छा गया : पहले पत्नी, फिर बेटी के निधन से उनके जीवन में अकेलापन छा गया। जब तक शरीर मजबूत था, तब तक चितमपल्ली विचलित नहीं हुए। वन साधना की पांच तपस्याओं का अभ्यास करते रहे। इसके लिए एकांत जरूरी था। बेटी की मृत्यु के बाद नागपुर में अकेले रहना कठिन हो गया। इससे प्राणी-कोश, वृष-कोश निर्माण के काम में बाधा का भय उन्हें परेशान करता रहा। इसलिए अपने स्वभाव के विपरीत उन्होंने वर्धा स्थित हिंदी विश्वविद्यालय से अनुरोध किया। विश्वविद्यालय व्यवस्थापन ने तुरंत उनके रहने की व्यवस्था की। तीन महीने के लिए वर्धा गए चितमपल्ली तीन साल तक वहीं रहे। उन्होंने वहां एक ऐतिहासिक विश्वकोश बनाया। यह सैकड़ों वर्षों तक वनप्रेमियों के काम आएगा।
अंबाझरी पार्क के नामकरण की मांग : नागरिकों ने नागपुर के अंबाझरी जैव विविधता पार्क का नाम मारुति चितमपल्ली के नाम पर रखने की मांग की। लेकिन वन विभाग ने आंखें मूंद लीं। हालांकि जब वन विभाग को पता चला कि मत्स्यकोश और वृक्षकोश बनाने का काम अधूरा है, तो विभाग ने इसका जिम्मा लिया। अकेलेपन के कारण उन्हें 88 साल की उम्र में नागपुर छोड़ना पड़ा।
वनों से रहा विशेष जुड़ाव : जंगलों से उनका जुड़ाव गहरा था। पत्नी की मृत्यु के बाद भी उन्होंने नागपुर नहीं छोड़ा। कुछ समय के लिए वह नवेगांवबांध चले गए। फिर लक्ष्मी नगर आ गए। वह हमेशा कहते थे कि उन्होंने विदर्भ के जंगलों जैसी समृद्धि कहीं नहीं देखी। इसे दुनिया के सामने लाने के लिए उन्होंने विदर्भ के सैकड़ों जंगलों की पैदल यात्रा की। जो कुछ हाथ लगा, उसका संकलन कर नागपुर के अपने घर में उसे पुस्तक का रूप दिया। 25 पुस्तकों के जरिये उन्होंने विदर्भ के जंगलों की समृद्धि सामने लाई।
13 भाषाएं सीखीं : मारुति चितमपल्ली (जन्म: 12 नवंबर 1932) एक प्रसिद्ध मराठी वन्यजीव विशेषज्ञ, पक्षी विज्ञानी, वृक्ष विशेषज्ञ और लेखक थे। उन्होंने पक्षीकोश, प्राणीकोश, मत्स्यकोश और वृक्षकोश जैसे प्रोजेक्ट्स पर काम किया। प्राणी कोश में भारत के 450 से अधिक प्राणियों की जानकारी है, जबकि वृक्ष कोश में 4,000 से अधिक वनस्पतियों का विवरण शामिल है। उन्होंने 25 से अधिक पुस्तकें लिखीं, जिनमें जंगलाचं देणं (1985), रानवाटा (1991), रातवा (1993), आनंददायी बगळे (2002) और नीलवंती शामिल हैं। कोयंबटूर के स्टेट फॉरेस्ट सर्विस कॉलेज से प्रशिक्षण लेने के बाद महाराष्ट्र सरकार की वन सेवा में 36 वर्षों तक सेवा की, जहां वे उप-मुख्य वन संरक्षक के पद तक पहुंचे। उन्होंने मराठी, संस्कृत, हिंदी, तेलुगु, कन्नड़ सहित 13 भाषाएं सीखीं, जो उनके शोध कार्य में उपयोगी रहीं।
Created On :   19 Jun 2025 5:04 PM IST