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Nagpur News: मेडिकल हास्पिटल में लापरवाही , अंगुली में हुआ गैंगरीन, काटना पड़ा पंजा

- ऑपरेशन की प्रतीक्षा में दर्द से कराह रहे हैं
- मरीज कईयों के अंग सड़ चुके हैं
- कुछ की मौत तक हो चुकी है, जिम्मेदार कौन?
Nagpur News गरीबों के इलाज के लिए बनी महात्मा ज्योतिबा फुले जन आरोग्य योजना नागपुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में अपनी सबसे शर्मनाक स्थिति में पहुंच चुकी है। जिस योजना का उद्देश्य समाज के अंतिम व्यक्ति तक मुफ्त स्वास्थ्य सेवा पहुंचाना था, वह खुद आज ‘लाइलाज’ स्थिति में पहुंच गई है। भ्रष्टाचार, लापरवाही और सरकारी अनदेखी के चलते योजना के हजारों मरीज दर-दर भटक रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, पिछले 6-7 महीनों से मेडिकल में रिप्लेसमेंट सर्जरी के लिए आवश्यक ‘इम्प्लांट’ (अवयव) ही उपलब्ध नहीं हो रहे। मरीज महीनों से ऑपरेशन की प्रतीक्षा में दर्द से कराह रहे हैं। कईयों के अंग सड़ चुके हैं। कुछ मरीजों की मौत तक हो चुकी है। कभी डॉक्टरों की समस्या, कभी दवा की किल्लत, कभी उपचार सामग्री का अभाव तो कभी अन्य समस्याएं। इम्प्लांट के मामले में भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाया। मेडिकल के वरिष्ठ अधिकारी से लेकर विभाग प्रमुख तक ने इस विषय पर लीपापोती कर दी है।
कुछ डॉक्टर संवेदनहीन
दोनों भुक्तभोगियों ने आरोप लगाया है कि मेडिकल में आने वाले मरीजों के प्रति कुछ डॉक्टर असंवेदनशील होते हैं। इसके चलते मरीजों व उनके परिजनों को शारीरिक-मानसिक यातना सहनी पड़ती है। कई मरीज ऐसे होते हैं, जिन्हें इम्प्लांट के लिए योजना अंतर्गत मंजूरी तो मिल जाती है, लेकिन इम्प्लांट उपलब्ध नहीं होने से ऑपरेशन समय पर नहीं हो पाता है। असर यह होता है कि मर्ज और बढ़ता जाता है। मरीज को समय पर इम्प्लांट उपलब्ध कराना संबंधित विभाग की जिम्मेदारी होती है।
अलग-अलग राय…
महात्मा ज्योतिबा फुले जनस्वास्थ्य योजना से जुड़े एक बड़े अधिकारी ने बताया कि योजना अंतर्गत अप्रूवल आने के बाद यह डॉक्टरों की जिम्मेदारी है कि मरीज को इम्प्लांट उपलब्ध करा दें और समय पर ऑपरेशन हो। यदि ऐसा नहीं हो रहा है तो, यह लापरवाही का उदाहरण है।
इम्प्लांट आपूर्तिकर्ता एक डीलर ने बताया कि सरकारी अस्पतालों में जो इम्प्लांट आपूर्ति करते हैं, उन्हें समय पर आपूर्ति करनी चाहिए। आखिर उन्हें टेंडर प्रक्रिया के तहत आपूर्ति का ठेका दिया जाता है।
मेडिकल के संबंधित डॉक्टरों का यह तर्क अनुचित है कि इम्प्लांट उपलब्ध नहीं है। मेडिकल प्रशासन के अधिकारियों की यह जिम्मेदारी है कि मरीज के लिए समय पर इम्प्लांट उपलब्ध क्यों नहीं हो पाए हैं। इसके लिए संबंधित डीलर के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।
पिछले 6 महीने से मेडिकल में इम्प्लांट उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं, यह जांच का विषय है। ऐसे अनेक मरीजों की कहानियां आये दिन सामने आती है, जिस पर मेडिकल प्रशासन गंभीर दिखायी नहीं दे रहा है।
दर्द से कराहते मरीज या उनके परिजन जब डॉक्टरों या अधिकारियों से पूछताछ करते हैं, तो उन्हें सही जवाब नहीं दिया जाता। डांट-डपट व टाल-मटोल जवाब दिया जाता है।
संतोषजनक जबाब नहीं : मेडिकल में आये दिन मरीजों या उनके परिजनों को किसी न किसी समस्या से दो-चार होना पड़ता है। इम्प्लांट के मामले में भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाया। मेडिकल के वरिष्ठ अधिकारी से लेकर विभाग प्रमुख तक ने इस विषय पर लीपापोती कर दी है। ऑर्थो डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ. सुमेध चौधरी और योजना के वरिष्ठ डॉ. संजू मेडा ने इस विषय बताया कि ‘हमारे डिपार्टमेंट में तो रेगुलर बेसिस पर जॉइंट रिप्लेसमेंट हो रहा है। शायद किसी और विभाग में समस्या हो। अगर किसी मरीज को तकलीफ है तो संबंधित डॉक्टर मिलना चाहिए।’ एक डॉक्टर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इम्प्लांट की कमी है।
यह लापरवाही नहीं, अपराध है : यह मामला केवल अव्यवस्था का नहीं, यह एक सुनियोजित लापरवाही और प्रशासनिक अपराध है। गरीब लोग मर रहे हैं, अपाहिज हो रहे हैं, और जवाबदेही लेने वाला कोई नहीं है। मुख्यमंत्री के शहर के सरकारी हॉस्पिटल का यह हाल है, तो गरीब मरीज कहां जाएं। इम्प्लांट के मामले में मरीजों को परेशान किया जा रहा है। मिलीभगत होने का संदेह है। जांच होनी चाहिए। यदि गरीब मरीजों को न्याय नहीं मिला तो आंदोलन किया जाएगा। - सचिन बिसेन, एक्शन एनजीओ प्रमुख
योजना में मंजूरी, लेकिन नहीं हो पाया ऑपरेशन : नागपुर निवासी 35 साल की अर्चना (परिवर्तित नाम) ने बताया कि दुर्घटना में उसके दाेनों पैर की कटोरी टूट गई है। मेडिकल में डॉक्टरों ने 6 महीने तक दवा देना जारी रखा। बताया गया कि दवा से ही ठीक हो जाएगा। 6 महीने बाद जब अर्चना मेडिकल पहुंची, तो कहा गया कि डॉक्टर उपलब्ध नहीं है। शादी में व्यस्त हैं। कुछ दिन और रुकने के लिए कहा। 4 अप्रैल को ऑपरेशन करना निश्चित किया। फिर ऑपरेशन टाल दिया। वजह इम्प्लांट उपलब्ध नहीं थे। डॉक्टर ने 2 महीने और इंतजार करने को कहा। महिला चल-फिर नहीं सकती। ऑपरेशन के दौरान लगने वाले इम्प्लांट के लिए जरूरी राशि महात्मा ज्योतिबा फुले जन स्वास्थ्य योजना अंतर्गत मंजूर हो चुकी है, लेकिन ऑपरेशन नहीं हो पाया है।
उपचार नहीं हो पाया, फैलती गई बीमारी : नागपुर निवासी 55 साल के अभय (परिवर्तित नाम) के पैर की अंगुली में गैंगरीन हुआ था। मेडिकल के डॉक्टरों की असंवेदनशीलता के चलते समय पर उपचार नहीं हो पाया। निजी अस्पताल में अभय के पैर का पंजा काट दिया गया। बावजूद बीमारी फैलती रही। एक स्वयंसेवी संस्था के सहयोग से दोबारा मेडिकल ले जाया गया। गंभीरता को देखते हुए डॉक्टरों ने घुटने तक पैर काट दिया। युवक को कृत्रिम पैर लगाना है। वह मेडिकल में ही भर्ती है। स्वास्थ्य योजना अंतर्गत पैर लगाने की प्रक्रिया पूरी करनी है। अभय ने बताया कि पहली बार ही मेडिकल के डॉक्टर दखल लेते तो पैर काटने की नौबत नहीं आती।
इनसे मिलने पहुंचे
डीन राज गजभिए :
दिनांक: 11 जून, 2 :00 बजे दोपहर )
सुपरिटेंडेंट डॉ. अविनाश गावंडे (दिनांक: 11 जून , 2 :20 बजे दोपहर)
ऑर्थो के एचओडी डॉ. सुमेध चौधरी (दिनांक: 10 जून , 7 :37 बजे शाम) (11 जून को अस्पताल में मौजूद नहीं थे )
योजना के वरिष्ठ अधिकारी डॉ. संजू मेडा (दिनांक: 11 जून , 2:40 बजे दोपहर)
(संतोषजनक उत्तर नहीं मिला)
Created On : 12 Jun 2025 11:47 AM IST