सोशल मीडिया पर छलका दर्द: शिक्षिका बोलीं - अब औपचारिकता बना शिक्षकों का सम्मान, डॉ बोधनकर ने सुझाए टिप्स

शिक्षिका बोलीं - अब औपचारिकता बना शिक्षकों का सम्मान, डॉ बोधनकर ने सुझाए टिप्स
  • बच्चों, अभिभावकों और शिक्षकों के बीच सकारात्मक संवाद जरूरी हैं
  • तीनों को समान काउंसलिंग की जरूरत
  • बच्चों को सही गलत का आंकलन सिखाएं, लाइफ स्टाइल पर पड़ा प्रभाव
  • डॉ बोधनकर ने सुझाए टिप्स
  • अनुशासन का मतलब दबाव नहीं, भले की है बात

Nagpur News. तजिन्दर सिंह। इस डिजिटल युग में बच्चों को शिक्षा के साथ ही मानवीय मूल्यों, भावनाओं और संवेदनाओं का पाठ पढ़ाना भी जरूरी हो गया है। बच्चों और शिक्षकों के साथ अभिभावकों के बीच एक भावनात्मक रिश्ता होता है, लेकिन बदलते वक्त में यह भावनात्मक रिश्ता कमजोर होता दिख रहा है, कुछ दिन पहले सेकेंडरी स्कूल की शिक्षिका गुरमीत कौर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर वीडियो जारी कर अपनी पीड़ा व्यक्त की। उन्होंने कहा कि बच्चों और शिक्षकों के बीच का भावनात्मक रिश्ता पहले जैसा नहीं रहा और विद्यार्थियों में शिक्षकों के प्रति सम्मान की कमी दिखने लगी है। फिल्हाल गुरमीत कौर गाजियाबाद के एक स्कूल में पढ़ा रही हैं। शिक्षण क्षेत्र में 20 साल से अधिक का अनुभव है। गुरमीत कौर ने कहा कि इतने सालों में टीचिंग करने के बाद सोचा था कि शायद कोई वक्त आएगा, जब टीचर्स को पहले ही सम्मान मिलेगा। जिस तरह वे अपने शिक्षकों की करती थीं। उनका कहना है कि हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस पर बच्चे बधाई देते हैं, उसके बाद पूरे साल लगता है जैसे अब शिक्षकों का उतना महत्व नहीं रहा। उन्होंने पैरेंट्स से अपील करते कहा है कि अपने बच्चों के साथ शिक्षकों की बात भी सुनें। केवल बच्चों का पक्ष लेने से उनपर नकारात्मक असर पड़ता है। जब्कि बच्चों को सही गलत का आंकलन करना सिखाया जाना चाहिए। गुरमीत ने कहा कि अनुशासन में एक मीठी-सी सख्ती है। अगर शिक्षक थोड़े सख्त नहीं होंगे, तो बच्चों को अनुशासन कौन सिखाएगा?”


पहले और अब का फर्क

उन्होंने अपने विद्यार्थी जीवन को याद करते हुए कहा – “जब हम पढ़ते थे, तब शिक्षक की बात हमें माता-पिता की सीख जैसी लगती थी। लेकिन अब वह भावनात्मक जुड़ाव टूट चुका है। टीचर्स पर बच्चों की जिम्मेदारी है, उन्हें सही-गलत समझाने का जिम्मा शिक्षकों के साथ ही अभिभावकों का भी है।”


अभिभावक बिट्‌टू मारवा का कहना है कि परिवार के बाद बच्चे शिक्षकों के पास होते हैं। अभिभावकों की जिम्मेदारी है कि वे हर रोज बच्चों की काउंसलिंग करें, उनसे दिनचर्या को लेकर सवाल करें, टीचर्स के प्रति आदर और सम्मान का भाव समझाएं। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि इस दौर में शिक्षकों, छात्रों और अभिभावकों के बीच संवाद की कमी से सामंजस्य प्रभावित हो रहा है। जिसे प्रभावी होने के साथ ही सकारात्मक होना जरूरी है।


बिट्‌टू मारवा का कहना है कि वे बच्चों की मनोदशा को लेकर कई आलेख पढ़ चुके हैं, इन दिनों बदले खानपान और जंक फूड ने बच्चों की लाइफ स्टाइल पर खासा प्रभाव डाला है। पहले बच्चे मैदान में खेलने जाते थे, पसीना बहाते थे, उससे उनकी एनर्जी खपत होती थी, लेकिन इंटरनेट और मोबाइल सहित ऑनलाइन गेम्स ने बच्चों की सकारात्मक उर्जा को नकारात्म मोड़ देना शुरु कर दिया है। ऐसे में शिक्षकों को इस बात का ख्याल रखना होगा कि वे बच्चों के साथ नकारात्मक शब्दों के प्रयोग नहीं करें, इससे उनके स्वभाव पर असर पढ़ता है।


कॉमनवेल्थ असोसिएशन ऑफ हेल्थ एंड डिसेबिलिटी, यूके के कार्यकारी निदेशक डॉ. उदय बोधनकर ने कहा कि यदि स्कूलों में बच्चों और उनके मातापिता के साथ टीचर्स की काउंसलिंग भी शुरु हो जाए, और बच्चों को एक दूसरे के प्रति आदर का भाव सिखाया जाए, तो बुलिंग और कॉलेजों में होने वाली रैगिंग जैसी समस्याएं लगभग समाप्त हो जाएंगी।

डॉ. उदय बोधनकर ने बताया कि पहले संयुक्त परिवार हुआ करते थे, बच्चों की परवरिश का बड़ा जिम्मा दादा-दादी के हाथ होता था। इससे बच्चों में सिबलिंग्स को देखते हुए एक साथ आगे बढ़ने का भाव आता था, लेकिन जबसे न्यूक्लियर फैमिली यानी छोटे परिवारों का चलन बढ़ा है, साथ ही सिंगल चाइल्ड होने के कारण ऐसे बच्चे दूसरों के साथ आसानी से घुल मिल नहीं पाते, यह भी एक बड़ा कारण है, बच्चों में किसी बात को सहन करने की शक्ति कम होती है और उनमें व्यवहारिक ठहराव कम दिखता है। बच्चे घर पर जैसा माहौल देखते हैं, वैसा ही स्कूल में भी लाते हैं, इसलिए घर में पैरेंट्स को एक दूसरे के प्रति सम्मानजनक और उदार रहना चाहिए। घर में बड़ों का सम्मान करने की आदत नहीं होगी, माता-पिता खुद आलोचना करते होंगे, तो यह भाव बच्चों में भी आने लगते हैं।

आज के दौर में बच्चे ज्यादा स्वतंत्र माहौल में बड़े होते हैं, अनुशासन को दबाव समझने लगते हैं, कई बार शिक्षक अनुशासन की बात करते हैं, तो उन्हें लगता है कि यह उनकी "फ्रीडम" छीन रहे हैे।

कुछ टीचर्स का मानना है कि जब भी शिक्षक बच्चों को सुधारने के लिए सख्ती दिखाते हैं, कई पालक तुरंत बच्चे का पक्ष लेते हैं। इससे बच्चों के मन में यह संदेश जाता है कि “टीचर गलत हैं, मैं सही हूँ।” यह भी बच्चों की मानसिकता पर विपरीत प्रभाव डालता है।


डॉ. उदय बोधनकर ने कहा कि बच्चों, अभिभावकों और शिक्षकों के बीच सकारात्मक संवाद जरूरी हैं। इसके लिए तीनों को समान काउंसलिंग की जरूरत है।

  • माता-पिता खुद शिक्षक का सम्मान करें और बच्चों को भी सिखाएं।
  • टीचर्स को बच्चों की भाषा और रुचि के हिसाब से पढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए
  • बच्चा किसी मानसिक दबाव से गुजर रहा है, तो इसके व्यवहार में परिवर्तन होगा, इसे लेकर टीचर्स और अभिवाभवकों को सकारात्मक पहल करनी चाहिए।
  • बच्चों को समझाना चाहिए कि अनुशासन का मतलब दबाव नहीं, बल्कि उनके भले के लिए है।

डॉ. उदय बोधनकर ने कहा कि बच्चों को काउंसलिंग और मोटिवेशनल सत्रों से जोड़ना चाहिए। अभिभावकों की अत्यधिक अपेक्षाएं छात्रों पर मानसिक दबाव बढ़ाती हैं, जिससे शिक्षक–छात्र संबंध भी प्रभावित होता है। जब्कि इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि शिक्षकों का सहानुभूतिपूर्ण और सहभागी दृष्टिकोण छात्रों की शैक्षिक और भावनात्मक प्रगति में मदद करता है। ऐसे में मनोवैज्ञानिक सहयोग (Psychological Support Systems) सामंजस्य बनाए रखने का सबसे प्रभावी साधन है। जिसके नतीजे सकारात्मक ही नहीं बच्चों के उज्जवल भविष्य का मार्गदर्शन कर सकते हैं।


निष्कर्श और निदान

बच्चों के जीवन की आधारशिला अभिभावक और शिक्षक मिलकर रखते हैं। ऐसे में दोनों की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। शिक्षकों को यह समझना चाहिए कि अभिभावक अपने बच्चों को लेकर किन कठिनाइयों और चिंताओं से गुजर रहे हैं। इसी प्रकार, अभिभावकों को भी यह ध्यान रखना जरूरी है कि शिक्षकों को बच्चों के भविष्य को संवारने में किन चुनौतियों और दबावों का सामना करना पड़ता है।

खास बात है इन सबके बीच सबसे महत्वपूर्ण तत्व है – आपसी सामंजस्य और सहयोग। जब शिक्षक और अभिभावक एक-दूसरे को समझते हैं और मिलकर काम करते हैं, तभी बच्चों का समग्र विकास संभव हो पाता है।


Created On :   12 Sept 2025 7:15 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story