Nagpur News: ठंड से बचने के लिए बाघ, तेंदुए को मिला हीटर

ठंड से बचने के लिए बाघ, तेंदुए को मिला हीटर
  • गोरेवाड़ा व महाराजबाग में लगाए गये हीटर
  • रात में बढ़ जाती है, ठंड

Nagpur News नागपुर की सर्द हवाएं अब जोर पकड़ने लगी है। शाम ढलते ही कंपकंपी छा जाती है, और शहरवासी गर्म कपड़ों में लिपटने लगते हैं। लेकिन सोचिए, जंगल के राजा बाघ और फुर्तीले तेंदुए, जो खुले आसमान के नीचे पिंजरों में कैद हैं, वे इस ठिठुरन से कैसे लड़ेंगे? यही चिंता महाराजबाग चिड़ियाघर और गोरेवाड़ा रेस्क्यू सेंटर के रखवालों को सता रही थी और अब, उनकी कवायद शुरू हो गई है। हीटर लगाकर वन्यजीवों को गर्मी का एहसास दिलाया जा रहा है।

सोमवार से महाराजबाग में हलचल मच गई। कुल 8 हाई-टेक हीटर लगाए गए हैं, जो बाघिन, छह तेंदुओं और दर्जनों पक्षियों के पिंजरों में गर्माहट की लहर दौड़ा रहे हैं। वही गोरेवाड़ा में भी 12 से ज्यादा हीटर लगाकर बाघ, तेंदुओं को गर्मी का अहसास कराया जा रहा है। ये हीटर कोई साधारण नहीं है, कड़ाके की ठंड में ये जंगल के बाघों को घर जैसा आराम देंगे।

महाराजबाग तो नागपुर निवासियों के लिए अहम है। रोजाना सैकड़ों सैलानी यहां खींचे चले आते हैं। एक बाघिन की गरिमामयी चाल, तेंदुओं की चालाकी, भालू की भारी भरकम मस्ती, हिरणों की फुर्ती, मगरमच्छों की रहस्यमयी नजरें, सांबर-नीलगाय की शांति, लोमड़ी की चालबाजी और पक्षियों का रंगीन मेला, लेकिन प्रशासन की नजर इन सब पर है।

खाना-पानी तो ठीक, लेकिन ठंड? नवंबर की हल्की सिहरन से लेकर दिसंबर-जनवरी की हड्डी गलाने वाली सर्दी तक, कोई रिस्क नहीं। हीटर नवंबर में थोड़े 'आराम मोड' में रहते हैं, लेकिन असली कमाल जनवरी में दिखेगा, जब तापमान बहुंत कम होता है। और सिर्फ हीटर ही नहीं है। पिंजरों में 'घर जैसा कोना' बनाया गया चार दीवारें, फर्श पर सूखी पत्तियों की मोटी परत। ठंडा फर्श अब दुश्मन नहीं, बल्कि नरम बिस्तर पर वन्यजीव बैठें, लेटें, बिना कंपकंपी के। गोरेवाड़ा में भी यही तैयारी जोरों पर। वहां रेस्क्यू किए गए जानवरों को विशेष देखभाल – हीटर, पत्तियां, और पशु चिकित्सकों की निगरानी।

यह सब क्यों? क्योंकि ये वन्यजीव हमारे मेहमान हैं। पिंजरे में कैद, लेकिन दिल से आजाद है। उनकी सेहत पर ठंड का असर पड़े, तो परेशानी बढ़ सकती है। प्रशासन कहता है, "हम इंसान गर्म कमरे में सोते हैं, तो ये जंगल के वन्यजीवों के लिए भी अतिरिक्त उपाय योजना जरूरी है। यह कवायद न सिर्फ देखभाल है, बल्कि प्रकृति से प्यार की मिसाल भी है।


Created On :   11 Nov 2025 4:03 PM IST

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